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Vathek

‘Woe to the rash mortal who seeks to know that of which he should remain ignorant; and to undertake that

Vathek; An Arabian Tale

“Vathek; An Arabian Tale” by William Beckford. Published by Good Press. Good Press publishes a wide range of titles that

VAZHAKU MANDRATHUKU VANTHA THEIVANGAL

பக்தர்கள் தெய்வத்தின் மீது கொண்டுள்ள நம்பிக்கையும் பக்தியும், தெய்வம் பக்தர்கள் மீது கொண்டுள்ள அன்பும் கருணையும் அலாதியானவை. அல்லும் பகலும் தன்னையே நினைத்துக் கொண்டிருக்கும் தன் பக்தனுக்கு ஓர் இன்னல் என்றால், தெய்வம் சும்மா இருக்குமா? அப்படி, அருணகிரி-முருகன், ஆதிசங்கரர்-சரஸ்வதி, சுந்தரமூர்த்தி நாயனார்-சிவபெருமான், பாவாஜி-வேங்கடவன், கச்சியப்பர்-முருகன், தருமி - சிவன், தாமாஜி-விட்டலன், பவபூதி-சரஸ்வதி, திருநீலகண்டர் - சிவன், யமுனை - கண்ணன், திரௌபதி -கிருஷ்ணன், பிரகலாதன் - திருமால், சங்கரர் - லஷ்மி தேவி, கம்பர் - கலைவாணி என்று பக்தர்களுக்காக வழக்குமன்றத்துக்குத் தெய்வங்கள் வந்த கதைகள் மிகவும் சுவாரசியமானவை. மீண்டும் மீண்டும் படிக்கத் தூண்டுபவை

Ve Kamal Ke Phool by Mukul Rani Varshney

यादों के झरोखे से मेरा प्रथम प्रयास है, जिसमें मैंने अपनी कृतियों को संगृहीत किया है। मैं कोई महान् लेखिका तो नहीं, पर अपने विद्यार्थी जीवन से ही मुझे साहित्य पढ़ने व लिखने का शौक रहा। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने के साथ मुझे निबंध और कहानी लिखने का भी शौक था। दसवीं कक्षा में मुझे मेरी कहानी स्मृति पर प्रथम पुरस्कार भी मिला। जीवन में अनेक व्यक्तियों के संपर्क में आना हुआ और उन्हें निकट से देखने-परखने का अवसर मिला। मैंने उन्हीं के चरित्र, व्यक्तित्व एवं घटनाओं को सच्चाई के साथ कागज पर उतारने की चेष्टा की है। कुछ पात्र मनोरंजक हैं तो कुछ अति करुण, तो कुछ मन और मस्तिष्क को छूनेवाले हैं। वे कमल के फूल तो मेरे लिए अविस्मरणीय ही हो गए हैं। शेष सभी पात्र भी मुझे अतिप्रिय हैं। मैंने पात्रों को अपनी मिठास भरी लोक भाषा ही बोलने दी है। आशा करती हूँ कि पढ़कर आपको भी आनंद आएगा। यह तो मेरी अपनी राय है। आपकी राय जानने की प्रतीक्षा रहेगी। ——1—— मानवीय संवेदना, पारिवारिक संबंध सामाजिक सरोकार और जीवन के विविध रंगों का समुच्चय है यह कहानी-संग्रह ‘वे कमल के फूल’। ये मर्मस्पर्शी कहानियाँ आपके हृदय को स्पंदित करेंगी और आपके मनोभावों को झंकृत कर देंगी।

Ve Pandrah Din by Prashant Pole

उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया। माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो'' ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र' उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी' हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे। कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे। फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में। स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।