Bhagwan Ne Kaha Tha by Suryabala

भगवान् ने कहा था
इसके बाद भगवान् का स्वर उदास हो आया, “मेरे इस मंदिर का सोने का कलश कब से टूटा हुआ है और मुझे अच्छी तरह मालूम है कि चढ़ावा इतना तो आता ही है कि कलश पर सोने का पत्तर चढ़वा दिया जाए। लेकिन पुजारी सब आपस में ही बाँट-बूँटकर खा जाते हैं। प्रबंध न्यासी भी इसमें काफी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। और फिर प्रेस विज्ञप्‍तियों के सहारे सरकार तक अपनी गुहार पहुँचाते हैं कि मंदिर निरंतर घाटे में जा रहा है, अनुदान की राशि बढ़ाई जानी चाहिए।”
यहाँ तक आते-आते भगवान् हताश ध्वनित हुए। अपनी स्थिति पर क्षोभ व्यक्‍त करते हुए बोले, “आप ही सोचिए, कलश का पत्तर उखड़ा होने से मंदिर की और मेरी भी इमेज बिगड़ती है या नहीं? साख भी गिरती ही है। भक्‍तों को क्या दोष दें, सोचेंगे ही कि जब इस मंदिर का भगवान् अपना ही टूटा छत्तर नहीं दुरुस्त करवा पा रहा है तो हमारे उधड़े छप्पर क्या छवाएगा! हमारी बिगड़ी क्या बनाएगा!…क्यों न किसी दूसरे, ज्यादा समर्थ भगवान् के पास चला जाए।”
—इसी पुस्तक से

प्रसिद्ध लेखिका सूर्यबाला के इस विविध विषयी व्यंग्य-संग्रह में जीवन के लगभग हर क्षेत्र की विसंगतियों-विद्रूपताओं पर करारी चोट की गई है। एक ओर जहाँ ये व्यंग्य भरपूर मनोरंजन करते हैं, वहीं दूसरी ओर पाठक को कुछ सोचने-करने पर विवश करते हैं।

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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