Patnim Manormam Dehi… by Mridula Sinha
यह सच है कि आज देश-विदेश में विवाह योग्य भारतीय युवक-युवतियाँ इन रस्म-रिवाजों से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। वे जानना भी नहीं चाहते। संभवतः एक यह भी कारण है उनके गठबंधन के शीघ्र ढीला हो जाने या खुल जाने का यह पुस्तक लिखने का एक उद्देश्य यह भी है कि इसमें विवाह की सात्त्विकता, उपयोगिता और वैवाहिक रस्म के प्रतीकों की जानकारी दी जाए। बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है विवाह के सिद्धांत और व्यवहार में यह जानते हुए भी लेखिका ने बहुत विस्तार से हिंदू विवाह रीति, रस्मों और दोनों पक्षों की अपेक्षाओं के विषय में लिखा है; और उनका मानना है कि उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। फिर वे दिन आएँगे, जब दुनिया के कोने-कोने से भारतीय मूल के लोग पुनः भारतीयता की ओर लौटने के प्रयास में विवाह के रीति-रिवाजों को भी ढूंढेगे।
इस पुस्तक का मुख्य विषय ‘विवाह’ है। इसलिए भिन्न-भिन्न समय पर लिखे लेखों में कुछ पुनरावृत्तियाँ स्वाभाविक हैं, पर उन्हें यथास्थान रहने दिया है। बार-बार पढ़ने से हानि नहीं होगी बल्कि हनुमान चालीसा या नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के पाठ की भॉति ये पंक्तियाँ (रस्म-रिवाज) कंठाग्र हो जाएँगी ।
Publication Language |
Hindi |
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Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
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