Keshav Ki Lokpriya Kahaniyan by Keshav
प्रसिद्ध कथाकार केशव जैसे जीवन के साधक हैं, वैसे ही भाषा के। भाषा के सिद्ध, पीर-फकीर, जहाँ भाषा उनकी चेरी है, उनका आदेश मानने को विवश, पर वह अज्ञेय या निर्मल जैसी नहीं है। केशव की कहानियों में जीवन के सभी रंग हैं, जिन्हें उन्होंने दसों अंगुलियों से पकड़ने की कोशिश की तो वे और भी खरे कथाकार बन गए। पहाड़ी जीवन के राग-रंग का कथा-संगीत गुनगुनाते किसी गायक की तरह, जिसका गाना अच्छा तो बहुत लगता है, लेकिन कोई उसे दोहरा नहीं सकता, क्योंकि यह सिद्धि गहन-गंभीर रियाज से किन्हीं-किन्हीं सर्जकों को ही नसीब होती है। केशव की रचनाओं में कोई दोहराव नहीं है, न कथ्य में, न ही भाषा में। कोई भी विचारधारा उनके कथ्य का निर्धारण नहीं करती, न ही उनकी भाषा पर स्लोगनों का कोई दुष्प्रभाव पड़ा। जीवन के बीचोबीच से वे अपने कथ्य उठाते हैं और परिवेश में घट-अघट रहे जीवन उनकी साधना से सजी-धजी भाषा में रचना का जामा पहन लेते हैं। भाषा में कोई रचाव दिखाई नहीं पड़ता, दिखाई पड़ता है तो सिर्फ उसका वैभव, एकदम पारदर्शी, जैसे थिराए हुए जल में परिवेश के बहुरंगी दृश्य— पहाड़, पेड़, परिंदे, नदी, खड््ड, खेत, सड़क, पगडंडी, मवेशी, बच्चे, स्त्रियाँ और मर्द। सब-के-सब बोलते-बतियाते, कुछ कहते, कुछ सुनते या फिर चुपचाप, संवादलीन।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
Kindly Register and Login to Tumakuru Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Tumakuru Digital Library.
You must be logged in to post a review.
Reviews
There are no reviews yet.