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1000 Samjashastra Prashnottari by Mohananand Jha

एक पृथक् व स्वतंत्र विषय के रूप में समाजशास्त्र का प्रादुर्भाव पिछली शताब्दी में ही हुआ है। मनु, कौटिल्य, कन्फ्यूशियस, लाओत्से, प्लेटो, सुकरात तथा अरस्तु आदि प्रसिद्ध सामाजिक दार्शनिक हुए। सामाजिक घटनाओं के व्यवस्थित व क्रमबद्ध अध्ययन तथा विश्लेषण हेतु एक पृथक् एवं स्वतंत्र विज्ञान समाजशास्त्र का नामकरण फ्रांसीसी विद्वान् ऑगस्त कॉम्ट (1798-1857) ने किया। सन् 1876 में सर्वप्रथम येल विश्वविद्यालय, अमेरिका में समाजशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन का कार्य प्रारंभ हुआ। भारत में 1914 में बंबई विश्वविद्यालय में इस विषय का अध्ययन कार्य प्रारंभ हुआ। वर्तमान में अनेक विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र से संबंधित शोध हो रहे हैं। आज समाजशास्त्र एक स्वतंत्र एवं प्रतिष्ठित विषय के रूप में विद्यालय से विश्वविद्यालय तक के विविध पाठ्यक्रमों में शामिल है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रश्नोत्तरी शृंखला के अंतर्गत समाजशास्त्र के अति महत्त्वपूर्ण पक्षों को उद्भाषित व स्पष्ट करने का सार्थक प्रयास किया गया है। जिससे न केवल समाजशास्त्र के शिक्षार्थी एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षार्थी, बल्कि इस विषय के जिज्ञासु पाठक भी लाभान्वित होंगे।

1000 Sangh Prashnottari by Mahesh Dutt Sharma

विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उपस्थिति समाज के लगभग हर क्षेत्र में अनुभव की जा सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में चाहे किसी भी विरोधी या आलोचक ने कुछ भी आरोप क्यों न लगाया हो, कुछ भी कहा हो; परंतु जब भी अपने देशवासियों पर विपत्ति आई है, संघ के स्वयंसेवकों ने सदा जनता की सेवा की है और उसके बदले में कभी किसी चीज की अपेक्षा नहीं की। संघ के कार्यकर्ताओं (स्वयंसेवकों) ने देशभक्ति एवं निस्स्वार्थ सेवा का आदर्श प्रस्तुत किया है, जिसके चलते सर्वोदय नेता श्री प्रभाकर राव ने आर.एस.एस. को ‘रेडी फॉर सेल्फलेस सर्विस’ (निस्स्वार्थ सेवा के लिए तत्पर) का नया नाम दिया। प्रस्तुत पुस्तक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित समस्त जानकारी (तथ्यों की) वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के रूप में दी गई है। पुस्तक को तैयार करते समय संघ से संबंधित उन सभी महत्त्वपूर्ण विषयों को सम्मिलित करने का प्रयास किया गया है, जिसके बारे में आमतौर पर कम जानकारी उपलब्ध है। प्रस्तुत पुस्तक में संघ का प्रादुर्भाव, प्रार्थना, भगवा ध्वज (गुरु), शाखा, संघ शिक्षा वर्ग, संघ की भौगोलिक रचना, गणवेश, खेल, उत्सव, साहित्य, संपूर्ण संघ परिवार, संघ से जुड़ी संस्थाएँ, संघ के सभी सरसंघचालक, संघ के प्रमुख व्यक्तित्व जैसे सर्वश्री दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख, दत्तोपंत ठेंगड़ी आदि संघ द्वारा की गई समाज-सेवा आदि से संबंधित एक हजार प्रश्न दिए गए हैं। आशा है यह पुस्तक संघ के विषय में अधिकाधिक जानने के जिज्ञासु पाठकों का ज्ञानवर्धन करके उन्हें राष्ट्र-निर्माण में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए प्रेरित करेगी।

1000 Swadhinta Sangram Prashonttari by Sachin Singhal

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौर में लिखे गए साहित्य को पढ़कर ज्ञात होता है कि आजादी के दीवानों तथा राष्‍ट्राभिमानियों ने ब्रिटिश सरकार के कितने क्रूरतम अत्याचार सहे। कितने ही राष्‍ट्र-प्रेमियों ने अपना जीवन राष्‍ट्रहितार्थ बलिदान कर दिया। आज की नई पीढ़ी को स्वाधीनता संग्राम और उन बलिदानियों के विषय में से परिचित कराना आवश्यक है। आज की भागमभागवाली जीवन-चर्या में व्यक्‍ति के पास समय का अभाव है, दूसरे आज हम प्रतियोगिता के युग में रह रहे हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर यह पुस्तक वस्तुनिष्‍ठ प्रश्‍नों के रूप में अत्यंत सरल-सुबोध भाषा में लिखी गई है। इस कृति को पढ़कर भारत के स्वाधीनता संग्राम के प्रति अंतर्दृष्‍टि का विकास होता है। प्रस्तुत पुस्तक में ब्ल्यू वाटर पॉलिसी, 1857 के स्वातंत्र्य समर, क्रांतिकारियों, देशभक्‍तों कांग्रेस का गठन विभिन्न ऐक्ट, कमीशन आदेश, उस काल के समाचार पत्र-पत्रिका-पुस्तकों आदि से संबंधित एक हजार प्रश्‍न संकलित हैं। भारतीय स्वाधीनता संग्राम का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करनेवाली; विद्यार्थियों, अध्यापकों, शोधार्थियों एवं सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए समान रूप से पठनीय एवं प्रेरणादायी पुस्तक।

1000 Things Worth Knowing by Nathaniel C. Fowler Jr.

This book contains more than one thousand facts, many of which are not generally known to the average person; but all of them are of interest to humankind, and a knowledge of many of them is essential.

1000 Uttar Pradesh Prashnottari by Sanjay Kumar Dwivedi

1000 उत्तर प्रदेश प्रश्‍नोत्तरी उत्तर प्रदेश भारत का सबसे घनी आबादीवाला प्रदेश है। राजधानी लखनऊ एक ऐतिहासिक नगर होने के साथ-साथ नवाबी तहजीब के लिए प्रसिद्ध है। यह देश के उत्तरी भाग में स्थित है। स्वतंत्रता की लड़ाई में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। यह अनेक राष्‍ट्रभक्‍तों की जन्म-स्थली एवं कर्म-स्थली रहा है। देश को सर्वाधिक सांसद एवं प्रधानमंत्री देने का गौरव इसको प्राप्‍त है। यहाँ विभिन्न जाति व संप्रदाय के लोग रहते हैं। यहाँ की इतनी विविध और महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं, जिनका दुनिया में कोई शानी नहीं; जैसे—खुर्जा का पॉटरी उद्योग, बनारस की साड़ियाँ, फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग, इलाहाबाद का कुंभ, दुनिया का सातवाँ अजूबा विश्‍व-प्रसिद्ध स्मारक ताजमहल यहीं स्थित है। उत्तर प्रदेश की संपूर्ण जानकारी को 1,000 प्रश्‍नों में समेट पाना दुष्कर कार्य है। फिर भी शिक्षा, उद्योग, संस्कृति, हस्तशिल्प, पर्यटन, लोक-परंपराएँ, दर्शनीय स्थल, ऐतिहासिक महत्त्व आदि की जानकारी को सार रूप में प्रश्‍नोत्तर शैली में प्रस्तुत किया गया है। आज बढ़ती प्रतियोगिता के वातावरण में ऐसी पुस्तकों की लोकप्रियता बढ़ रही है। विद्यार्थियों के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पुस्तक।

1000 Vaastushastra Prashnottari by Madhu Khaare

व्यक्‍त‌ि के जीवन को विभिन्न शक्‍त‌ियाँ प्रभावित करती हैं । वास्तुशास्त्र एक महत्त्वपूर्ण शक्‍त‌ि है । अगर किसी व्यक्‍त‌ि के सितारे बहुत अनुकूल हैं तो वास्तु सिद्धांतों के उल्लंघनजनित विपरीत प्रभाव अधिक सीमा तक महसूस नहीं होते । लेकिन सितारे यदि अनुकूल नहीं हैं तो वे बुरी तरह महसूस होते हैं । वास्तुशास्त्र का गहन अध्ययन और उसकी तार्किक व्याख्या ऐसे सुधार के उपाय सुझाते हैं, जिसमें मुश्किल से कोई संरचनात्मक परिवर्तन शामिल होता है । इसमें अनेक कारकों का ध्यान रखा जाता है; जैसे-कमरों की आतरिक व्यवस्था, फर्नीचर आदि की स्थिति, वाहनों की पार्किंग पानी के स्रोत की स्थिति, सीढ़ियों, दरवाजे, खिड़कियाँ आदि । इनमें से किसी कारक को अलग से नहीं देखा जाना चाहिए । प्रस्तुत पुस्तक में पिछले दो दशकों के दौरान विभिन्न लोगों से विचार-विमर्श पर आधारित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्‍नों को संगृहीत किया गया है । यह पुस्तक भवन निर्माताओं एवं वास्तुशिल्पियों के लिए तो लाभदायक सिद्ध होगी ही, उनके लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी, जो वास्तु के विषय में अधिकाधिक जानना चाहते हैं ।

1000 Vishwa Prashnottari by Anish Bhasin

मानव जीवन का आरंभ सवालों से हुआ है। ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई? सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी और तारे अस्तित्व में कैसे आए? दिनरात कैसे होते हैं? महासागर, महाद्वीप, देश, दुनिया, आविष्कार, जीवजंतु जगत् इत्यादि के प्रति लोगों के मन में सदैव तरहतरह के सवाल कौंधते रहते हैं। अगर हमारे मन में सवाल नहीं उठते तो आप व हम यह नहीं जान पाते कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है या सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। दरअसल, सवाल ही हमारे दिमाग को विकसित करते हैं। सवाल ही हमारे दिमाग की खुराक है। बच्चा जब पैदा होता है, वह अबोध होता है। बढ़ने के समय उसके मन में सवाल उठते हैं और उनके जवाब से उसका दिमाग विकसित होता है। अविकसित दिमाग मांस का एक लोथड़ा भर होता है। दिमाग के विकास के लिए सवाल करना और उनका जवाब पाना बेहद जरूरी है। जेम्स वॉट की सवाल करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति ने ही उन्हें ‘महान् वैज्ञानिक’ बनाया। सवाल दरअसल वह बीज हैं, जो मानव मस्तिष्क को वट वृक्ष सरीखा विशाल बना सकते हैं। हम जितना ज्यादा सवाल करेंगे, उतना ही हमारा मस्तिष्क समृद्ध होगा। ‘1000 विश्व प्रश्नोत्तरी’ पुस्तक एक ऐसा वृहत् संकलन है, जो न केवल सवालों के प्रति आपकी जिज्ञासा बढ़ाता है, बल्कि उनके जवाब भी देता है और इस प्रकार मस्तिष्क विकास का एक सरलसहज माध्यम उपलब्ध कराता है। याद रखें, अगर आपके पास सभी जवाब हैं तो आप निश्चित रूप से सफल हैं।

101 Great Personalities Who Change the World by A.K. Gandhi

Many take birth in this world and leave without leaving a mark. It is the ones who have left footprints on the sands of time that are remembered. They are the great people who have achieved something and inspired thousands. They are the people who have strived and contributed to the world and society at large. This book is the saga of such hundred and one personalities and highlights their contribution in their respective fields. It throws light on the achievements of those who had the courage to follow their own heart and convictions, even when opposed. Their revolutionary ideas brought a change and shaped the course of history.

101 Hastiyan, Jinhonne Duniya Badal Di by Dinkar Kumar

मानव सभ्यता के इतिहास का निर्माण कुछ ऐसे असाधारण व्यक्तियों ने किया है, जो मानव जाति की स्मृतियों में सदा-सदा के लिए अमर हो गए हैं। ऐसी असाधारण हस्तियों के बगैर हम एक विकसित दुनिया की कल्पना नहीं कर सकते। संसार के ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों की कोई सूची नहीं बनाई जा सकती। प्राचीनकाल से ही इस धरती पर ऐसे कर्मठ और पुरुषार्थी व्यक्तियों का जन्म होता रहा है, जो अपने जीवन और कर्म के जरिए संसार को बदलने में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। इस पुस्तक में ऐसी ही 101 चुनी हुई हस्तियों की जीवनी प्रस्तुत की गई है। इन 101 हस्तियों में अलग-अलग श्रेणियों, यानी दर्शन, राजनीति, आविष्कार और संस्कृति आदि सभी क्षेत्रों के लोग शामिल हैं। इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों को मानव जाति के इतिहास की यात्रा करने का अवसर मिलेगा कि किस तरह मानव जाति के धार्मिक एवं दार्शनिक विकास के जरिए उसकी राजनीतिक प्रगति संभव हुई और फिर किस तरह मनुष्य की सृजन क्षमता और उद्यमशीलता का विकास संभव हो पाया।

101 Questions on Acupressure and Reflexology by Dr Ak Saxena / Dr Preeti Pai

Over a period of time, acupressure has gained a lot of prominence for the precise reason that it is free from any side effects since no medication/surgery is required. It is totally non-conventional, non- invasive and non- interventional. Moreover, it is seen that this therapy is very effective in helping patients suffering from cervical/ lumber spondylitis; sinusitis; backaches; knee pain; heel pains; sciatica; prolapsed disc; constipation; indigestion; IBS; PMS; insomnia; depression; tennis elbow; asthma; hypertension, migraine; neuro problems, etc., to name a few. There was demand from many quarters for having a book in question and answer form, answering the questions that generally trouble the mind of learners/readers about the efficacy and usefulness of this therapy. As the title of the book itself suggests, an attempt has been made to answer probable questions that may come to the mind of the reader. All possible efforts have also been made to explain the precise location of the trigger points shown in the figures with as much clarity as possible.

101 Ways to Cure Diabetes by Dr. Anil Chaturvedi

Diabetes is a demon ailment, which makes your body extremely weak by reducing the strength of your immune system and overall health. But, don’t fear as you can now take the bull by the horns with this 101 Ways To Cure Diabetes

101 Weight Loss Tips by Dr. Anil Chaturvedi

“If eating less is a punishment, eating more is surely a crime.” Dr. Anil Chaturvedi has succinctly put his thoughts in these words. One is constantly warned that excess of everything is bad: especially eating. Since the last 10-15 years, the lifestyle of people has changed drastically. It is fraught with mental tension and sedentary life, which completely rules out time for physical exercise or any physical activity that could help burn calories and mitigate health problems. The author of this book has penned down, after great research, some measures which can reduce fat and help one maintain good health. In addition, he has explained in detail the causes and resultant effects of obesity. These have been carried out based on various components of health. He has given information regarding BMI, proteins, carbohydrates, caloric value of food and how to calculate them. Besides this, he has given schedule of controlled diets also. A practical handbook for losing weight and be healthy.

125 Ganit Paheliyan by Rajesh Kumar Thakur

125 गणित पहेलियाँ पहेलियाँ दिमाग का आलोड़न कर मस्तिष्क को तरोताजा रखने में मदद करती हैं। और जब बात हो गणित की, तब निस्संदेह पहेलियाँ गणित को एक मनोरंजक विषय बनाने में मददगार साबित होती हैं। महान् गणितज्ञ भास्कराचार्य ने अपनी पुस्तक ‘लीलावती’ में गणित को सहज-सरल पहेलियों के रूप में प्रस्तुत किया है, क्योंकि उनका मानना था कि पहेलियाँ गणित को सरस बनाती हैं। प्रस्तुत पुस्तक में भी लेखक ने गणित की बारीकियों को पहेली के माध्यम से सुगम बनाने का सफल प्रयास किया है। साथ ही प्रत्येक पहेली के पीछे छिपे गणितीय रहस्य को पाठकों के सामने लाकर गणित की जटिलता को समाप्‍त कर मनोरंजन के साथ-साथ इसे सारगर्भित बनाने का सराहनीय प्रयास भी किया है।

1857 Aur Bihar Ki Patrakarita by Md. Zakir Hussain

1857 और बिहार की पत्रकारिता बिहार शुरू से ही विभिन्न आंदोलनों का केंद्र रहा है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार में लगभग आठ सौ लोगों को फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। हजारों लोगों पर मुकदमा चलाया गया, सैकड़ों गाँव जलाए गए। इसमें शामिल विद्रोहियों की जमीन-जायदाद जब्त कर ली गई और उसे गद‍्दारों में बाँट दिया गया था। वैसे तो बिहार में 1857 के महायुद्ध पर कई पुस्तकें उपलब्ध हैं, पर मो. जाकिर साहब की इस पुस्तक की विशेषता है कि उन्होंने 1857 के दौरान उर्दू पत्र-पत्रिकाओं में इस विद्रोह के बारे में जो कुछ लिखा गया, उसे सिलसिलेवार ढंग से संकलित किया है। किसी भी विद्रोह या आंदोलन को तब की उपलब्ध रपटों और खबरों का अध्ययन कर समझा जा सकता है। इसमें अखबार-ए-बिहार, दिल्ली उर्दू-अखबार, अखबार-अल-जफर, सादिक-अल-अखबार और नदीम के बिहार विशेषांक में प्रकाशित 1857 से संबंधित खबरों और लेखों को शामिल किया गया है। सन् सत्तावन के विद्रोह के दो साल पहले पटना से ‘हरकारा’ प्रकाशित हुआ था और सन् 1856 में ‘अखबार-ए-बिहार’ प्रकाशित होने लगा था। लेखक ने उर्दू की पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन कर 1857 के गदर से जुड़ी सामग्रियों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है। ऐसे में यह पुस्तक अधिक प्रामाणिक और उपयोगी बन गई है।

1857 Ka Swatantraya Samar by Vinayak Damodar Savarkar

वीर सावरकर रचित ‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् १९०९ में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से १९४७ में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंतःकरणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी। पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् १८५७ का यथार्थ क्या है?क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था?योजना का स्वरूप क्या था?क्या सन् १८५७ एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा?भारत की भावी पीढि़यों के लिए १८५७ का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक देशभक्त भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!

೧೯ ಹಾಗೂ ೨೦ನೆಯ ಶತಮಾನದ ಬೆಳವಣಿಗೆಗಳು

ಟಿಪ್ಪು ಸುಲ್ತಾನನ ಮರಣಾನಂತರ ಬಂದ ಬ್ರಿಟಿಷ್‌ ಆಳ್ವಿಕೆಯು ಕರ್ನಾಟಕದಲ್ಲಿ ಹಲವಾರು ಬದಲಾವಣೆಗಳನ್ನು ತಂದಿತು.ಕನ್ನಡ ಮಾತನಾಡುವ ಸ್ಥಳಗಳನ್ನು ಹಲವಾರು ಸಣ್ಣ ಭಾಗಗಳಾಗಿ ವಿಂಗಡಿಸಿ, ಅವುಗಳನ್ನು ವಿವಿಧ ಆಡಳಿತಗಳಡಿಯಲ್ಲಿ ಇರಿಸಲಾಯಿತು.ಬ್ರಿಟಿಷರು ಮೈಸೂರನ್ನು ಪ್ರತ್ಯೇಕ ಆದರೆ ಕಡಿಮೆ ಪ್ರದೇಶವನ್ನುಳ್ಳ ಸಂಸ್ಥಾನವಾಗಿ ಉಳಿಸಿಕೊಂಡರು.ಕ್ರಿ.ಶ.1799ರಲ್ಲಿ ಮುಮ್ಮಡಿ ಕೃಷ್ಣರಾಜ ಒಡೆಯರು ಸಿಂಹಾಸನವನ್ನು ಏರಿದಾಗ ಇನ್ನೂ ಬಾಲಕರಾಗಿದ್ದರು; ಆಧುನಿಕ ಜಿಲ್ಲೆಗಳಾದ ಗುಲ್ಬರ್ಗಾ, ರಾಯಚೂರು, ಕೊಪ್ಪಳ ಹಾಗೂ ಬೀದರ್‍ನ ಪ್ರದೇಶಗಳನ್ನು ಹೈದರಾಬಾದ್ ನಿಜಾಮ್‍ಗೆ ಹಸ್ತಾಂತರಗೊಳಿಸಲಾಯಿತು.ಕೆನರಾ ಜಿಲ್ಲೆ (ಈಗಿನ ಉತ್ತರ ಕನ್ನಡ, ದಕ್ಷಿಣ ಕನ್ನಡ ಹಾಗೂ ಉಡುಪಿ ಜಿಲ್ಲೆಗಳು) ಹಾಗೂ ಬಳ್ಳಾರಿಗಳನ್ನು ಟಿಪ್ಪುವಿನಿಂದ ತೆಗೆದುಕೊಂಡು, ಅದನ್ನು ಮದ್ರಾಸ್ ಪ್ರೆಸಿಡೆನ್ಸಿಗೆ ಸೇರ್ಪಡೆ ಮಾಡಲಾಯಿತು.ಕ್ರಿ.ಶ.1818ರಲ್ಲಿ ಪೇಶ್ವೆಯಿಂದ ಧಾರವಾಡ, ಗದಗ್, ಹಾವೇರಿ, ಬಿಜಾಪುರ, ಬಾಗಲಕೋಟೆ ಹಾಗೂ ಬೆಳಗಾವಿ ಜಿಲ್ಲೆಗಳನ್ನು ಬಾಂಬೆ ಪ್ರೆಸಿಡೆನ್ಸಿಯಲ್ಲಿ ವಿಲೀನಗೊಳಿಸಲಾಯಿತು.ಕ್ರಿ.ಶ.1862ರಲ್ಲಿ, ಕೆನರಾ ಜಿಲ್ಲೆಯನ್ನು ಇಬ್ಭಾಗಿಸಿ ಉತ್ತರ ಕೆನರಾವನ್ನು ಬಾಂಬೆ ಪ್ರೆಸಿಡೆನ್ಸಿಗೆ ಸೇರಿಸಿದರೆ, ದಕ್ಷಿಣ ಕೆನರಾ ಮದ್ರಾಸ್ ಪ್ರೆಸಿಡೆನ್ಸಿಯಲ್ಲೇ ಉಳಿಯಿತು.ಜೊತೆಗೆ, ಸವಣೂರಿನ ನವಾಬನೂ ಸೇರಿದಂತೆ, ಇತರ 15 ರಾಜಕುಮಾರರು ಸಣ್ಣ ಪುಟ್ಟ ಕನ್ನಡ ಸಂಸ್ಥಾನಗಳನ್ನು ಆಳಿದ್ದು, ಅವರಲ್ಲಿ ಅನೇಕರು ಮರಾಠ ಅರಸರಾಗಿದ್ದರು.ಅವುಗಳ ಪೈಕಿ ಜಮಖಂಡಿ, ಔಂಧ್, ರಾಮದುರ್ಗ, ಮುಧೋಳ್, ಸಂಡೂರು, ಹಿರೇ ಕುರುಂದವಾಡ್, ಜತ್, ಸಾಂಗ್ಲಿ, ಕೊಲ್ಹಾಪುರ್, ಮೀರಜ್, ಕಿರಿಯ ಕುರುಂದವಾಡ, ಅಕ್ಕಲಕೋಟೆ, ಮುಂತಾದವು ಮರಾಠ ರಾಜಕುಮಾರರ ನಿಯಂತ್ರಣಕ್ಕೆ ಒಳಪಟ್ಟಿದ್ದವು.

1947 Ke Baad Ka Bharat by Gopa Sabharwal

स्वतंत्र भारत की यह तथ्यपरक गाइड हमें उन घटनाओं और व्यक्तियों तक ले जाती है, जिन्होंने सन् 1947 के बाद के 70 वर्षों में भारत को आकार दिया है। स्वतंत्रता दिवस से शुरू होकर वह उन दशकों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है, जिनमें यह उपमहाद्वीप में प्रजातंत्र का उदय, आत्म-निर्भरता के विचार से प्रेरित एक अर्थव्यवस्था का एक ऐसी अर्थव्यवस्था में रूपांतरण, जो वर्ष 1990 के दशक के आर्थिक सुधारों से संचालित हो तथा अब भी जारी उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण, जिन्होंने भारत की विकास दर में वृद्धि की—इन सभी का साक्षी रहा है। यह पुस्तक एक दल के प्रभुत्ववाले युग से गठबंधन की राजनीति के युग में संक्रमण को भी रेखांकित करता है। पुस्तक में शामिल की गई अन्य घटनाओं में ये भी हैं— भारत बना प्रजातांत्रिक गणराज्य पहले एशियन गेम्स हिंदी बनी राजभाषा भारत-पाकिस्तान एवं भारत-चीन युद्ध पहला हृदय प्रत्यारोपण पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण पहली त्रिशंकु संसद् शताब्दी ट्रेन की शुरुआत उड़ान आर.सी.-814 पर जा रहे विमान का अपहरण बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना हैदराबाद में केवल महिलाओं द्वारा संचालित महिला अस्पताल की स्थापना कालक्रम से व्यवस्थित : 1947 से भारत कृषि, पुरातत्त्व और कला से लेकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी, खेल व युद्धों और बीच में अन्य सभी विषयों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल करता है। प्रत्येक पृष्ठ पर आजादी और दिलचस्प लघु सूचना की एक अलग पंक्ति वाली रूपरेखा मुख्य घटनाओं को आकर्षक व पठनीय बनाती है।

1965 Bharat-Pak Yuddha Ki Anakahi Kahani by R.D. Pradhan

1965 भारत-पाक युद्ध की अनकही कहानी 1965 का युद्ध वर्ष 1947 में हुए विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहला पूर्ण युद्ध था। भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई.बी. चह्वाण ने 22 दिन तक चले इस युद्ध का विवरण स्वयं अपनी डायरी में दर्ज किया था। इस पुस्तक में बताई गई अंदरूनी बातों से पता चलता है— • पाकिस्तानी हमले के समय का पता करने में भारत का खुफिया विभाग बिलकुल विफल रहा। • कैसे और क्यों चह्वाण ने प्रधानमंत्री को सूचित किए बिना ही वायुसेना को हमला करने का आदेश दे दिया। • कैसे एक डिवीजन कमांडर को अभियान से अलग कर दिया गया। • कैसे एक सेना कमांडर ने अपनी ‘रेजीमेंट के महान् गौरव’ के लिए 300 से अधिक लोगों को कुरबान कर दिया। • भारतीय सेना ने लाहौर के अंदर कूच क्यों नहीं किया? • कैसे प्रधानमंत्री ने अपना धैर्य बनाए रखा और युद्ध के समय एक महान् नेता बनकर उभरे। • क्या यह युद्ध निरर्थक था, भारत ने युद्ध के मोर्चे पर जो कुछ जीता था, क्या वह सब ताशकंद में गँवा दिया था? और अंत में, राजनीतिक नेतृत्व ने कैसे रक्षा बलों के नेतृत्व के साथ फिर से अपने समुचित संबंध बहाल कर लिये और 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय पैदा हुई कड़वाहट को मिटा दिया। यह पुस्तक वायुसेना के सम्मान में लिखी गई है, जिसे स्वतंत्रता के बाद पहली बार युद्ध में लगाया गया था। यह उन बख्तरबंद रेजीमेंटों को भी श्रद्धांजलि है, जो इस युद्ध में बड़ी वीरता से लड़ीं और पैटन टैंकों के सर्वश्रेष्ठ होने के मिथक को तोड़ दिया।

1965 Bharat-Pak Yuddha Ki Veergathayen by Rachana Bisht Rawat

भारत व पाकिस्तान के बीच हुए सन् 1965 के ऐतिहासिक युद्ध को पचास वर्ष से अधिक हो गए हैं। यह पुस्तक उस युद्ध के वीरों, हुतात्माओं और उनके पराक्रम की शौर्यगाथा है। 1 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान द्वारा जम्मू व कश्मीर के छंब जिले पर हमले से ऐसे युद्ध की शुरुआत हुई, जिसमें बड़े पैमाने पर हथियारों व सैन्य-शक्ति का उपयोग किया गया। यह भारतीय सेना के सैनिकों का साहस व कुर्बानियाँ ही थीं, जिनके कारण हमने पाकिस्तानी घुसपैठ का समुचित उत्तर देते हुए देश को जबरदस्त सैन्य विजय दिलाई। सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना द्वारा लड़ी गई पाँच प्रमुख लड़ाइयों के ऐतिहासिक तथ्य और एक्शन-प्लान तथा युद्ध में लड़नेवाले सेवानिवृत्त सैनिकों के साक्षात्कारों द्वारा उन घटनाओं का भी विवरण दिया गया है, जिनका आज तक कभी खुलासा नहीं हुआ। इस पुस्तक में हाजी पीर, असल उत्तर, बार्की, डोगराई व फिल्लोरा में हुई लड़ाइयों और उनमें पराक्रम दिखानेवाले हमारे बहादुर युद्ध-नायकों से जुड़ी प्रेरणादायक कहानियों को भी स्थान दिया गया है। युद्ध-इतिहास की यह पुस्तक हमारे सैनिकों के अप्रतिम युद्ध-कौशल और उनके पराक्रम को नमन-वंदन करने का एक विनम्र प्रयास है।

1971 Bharat-Pak Yuddha by Lt Gen K K Nanda

1971 का भारत-पाक युद्ध सन् 1971 के अंत तक याह्या खाँ पूरी तरह से विश्वस्त हो चुके थे कि भारत के साथ पूर्व में युद्ध करना अनिवार्य हो चुका है। वे इस बात को लेकर भी विश्वस्त थे कि उनके लिए भारतीय सेनाओं को पराजित करना संभव नहीं है तथा वे पूर्वी पाकिस्तान का बलिदान करने के लिए तैयार थे। वहीं उन्हें यह भी विश्वास था कि वे पश्चिम में एक विशाल क्षेत्र पर कब्जा करके पूर्वी पाकिस्तान की क्षतिपूर्ति कर लेंगे तथा इसके द्वारा ‘वे न केवल भारत को नीचा दिखाने और अपना सम्मान बनाए रखने में सफल रहेंगे, अपितु युद्ध के अंत में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में होंगे।’ परंतु सन् 1971 में भारत के जाँबाज सैनिकों ने पाकिस्तान के नब्बे हजार सैनिकों को बंदी बनाकर ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जो सारी दुनिया में बेजोड़ था। इस पुस्तक में 1971 की शानदार विजय की गौरव गाथा के साथ-साथ उड़ी क्षेत्र में सन् 1947-48 तथा 1965 के दौरान 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड एवं अन्य सैन्य टुकड़ियों के द्वारा उनके नियंत्रण-क्षेत्रों में उनके द्वारा किए गए सैन्य अभियानों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है। लेफ्टिनेंट जनरल के.के. नंदा ने अपनी 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड का नेतृत्व करते हुए रक्षात्मक युद्ध लड़ा और अपनी बहादुरी एवं दूरदर्शिता से भारत की एक इंच भूमि भी दुश्मन के कब्जे में नहीं जाने दी। प्रस्तुत पुस्तक का अपना सामरिक महत्त्व है। भविष्य में युद्धों की योजना बनाते समय विभिन्न स्तरों के कमांडर इसके विवरणों से भरपूर लाभ उठाएँगे तथा भारत की सीमाओं की रक्षा में प्राणपण से सफल होंगे।