Apane Bheetar Ka Meghdoot by Amarendra Khatua

‘आत्मा बेचारी कितनी गहराई में होती है
हाड़-मांस-चर्म की पोशाक पहन,
इंद्रियों का साम्राज्य बना
सामने की दुनिया में खुद को
प्रकट और नामित कर।’

‘याद रखो
जो सुख का है वह सबका है
जो दु:ख का है सिर्फ अपना है।’

‘वजह हो या न हो मेरी कविता में
मेरे समय के और बाद के
हर कवि की कविता के अणुओं और
परमाणुओं में
हो प्रचुर शक्‍ति।’

‘अपनी अंगिक असफलता समझने को
कवि के पास नहीं होते शब्द।’

‘अभव के इस चकित महापर्व से ही तो
जन्म लेते हैं हमारे अल्पायु संबंध।

‘इतनी गहरी यातना को
क्या घाव की तरह
नहीं पहना जा सकता
रोजाना की पोशाक के नीचे?’

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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