Ath Kaikeyi Katha by Rajendra Arun

अथ कैकेयी कथा
कैकेयी की कथा श्रेष्‍ठ मूल्यों से बिछलने की कथा है। जब यशस्वी मनुष्य स्वार्थवश अपने आचरण को संकुचित करता है तब जीवन में उत्पात और उपद्रव की सृष्‍टि होती है। इसीलिए बार-बार हमारे धर्म-ग्रन्थों ने दोहराया है कि उच्च पदस्थ व्यक्‍ति को अनिवार्यत: सदाचार करना चाहिए। जिस पथ पर श्रेष्‍ठ जन चलते हैं वही मार्ग है। कैकेयी चलीं, लेकिन उनकी यात्रा मार्ग नहीं बन पायी, क्योंकि वह आदर्शों से फिसल गयी थीं।
आचरण की प्रामाणिकता की पहचान आपदा के समय होती है। शान्त समय में हर व्यक्‍ति श्रेष्‍ठ और सदाचारी होता है। आपदा मनुष्य के आचरण को अपने ताप की कसौटी पर कसती है। जो निखर गया वह कुन्दन है, जो बिखर गया वह कोयला। कैकेयी आपदा के इस ताप में बिखर गयीं। ईर्ष्या, द्वेष और प्रतिशोध में फँसकर उन्होंने ‘परमप्रिय’ राम को दण्ड दे दिया।
जीवन में श्रेष्‍ठ एवं उदात्त मूल्यों की प्रतिष्‍ठा के लिए प्रतिबद्ध हिन्दू चित्त ने कैकेयी को राम पर आघात करने के लिए दण्ड दिया। उसने निर्ममतापूर्वक कैकेयी के नाम को हिन्दू परिवार की नाम-सूची से बाहर कर दिया। अशिव का तिरस्कार और शिव का सत्कार, यही हिन्दू चित्त की विशेषता है।

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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