Bheegi Ret by Ravi Sharma
हर लहर से पनपती
बनती-बिगड़ती परछाइयाँ
बहती हुई खुशियाँ
या फिर सिमटी हुई तनहाइयाँ
कभी लम्हों से झाँकते वो
हँसी के हसीं झरोखे
कभी खुद से ही छुपाते
खुद होंठों से आँसू रोके
कभी दिलरुबा का हाथ पकड़ा
तो कभी माँ की उँगली थामी
कभी दोस्तों से वो झगड़ा
तो कभी चुपके से भरी हामी
कभी सवाल बने समंदर
तो कभी जवाब हुआ आसमान
कभी दिल गया भँवर में
तो कभी चूर हुआ अभिमान
कभी सपने थे व़फा के
तो कभी ज़फा से थे काँटे
कभी कमज़र्फ हुई धड़कन
तो कभी सबकुछ ही अपना बाँटे
कभी बिन माँगे मिला सब
तो कभी माँग के भी झोली खाली
कभी भगवान् ही था सबकुछ
तो कभी आस्था को दी गाली
कभी सबकुछ था पास खुद के
पर दूसरों पर नज़र थी
कभी सबकुछ ही था खोया
फिर भी नींद बे़खबर थी
कभी ख्वाब ही थे दुनिया
तो कभी टूटे थे सारे सपने
कभी अपने बने पराये
तो कभी पराये बने थे अपने
धड़कता हुआ कोई दिल था
या फिर सोया हुआ ज़मीर
फाके था रोज ही का
या था बिगड़ा हुआ अमीर
आँखें पढ़ी थीं सबकी
और पढ़े थे सभी के चेहरे
कभी किनारे पे खड़े वो
कभी पाँव धँसे थे गहरे
हज़ारों को उसने देखा
ठहरते और गुज़रते
कभी मर-मर के जीते देखा
कभी जी-जी के देखा मरते
हर इनसान के कदमों के
गहरे या हलके निशान
हर निशान में महकती
किसी श़ख्स की पहचान
कभी ढलकते आँसू
तो कभी इश़्क की रवानी
कभी मासूमियत के लम्हे
तो कभी तबीयत वो रूहानी
कहीं नाराज़गी किसी से
तो कभी यादें वो सुहानी
बचपन था किसी का
था बुढ़ापा या थी जवानी
न मिटेगी कभी भी
किसी पल की भी निशानी
सहेजी है उन सभी की
भीगी रेत ने कहानी!
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
Kindly Register and Login to Tumakuru Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Tumakuru Digital Library.
You must be logged in to post a review.
Reviews
There are no reviews yet.