Bhoomikamal by Rita Shukla

भूमिकमल
नीलेंदु का वह भयावह प्रलाप, ‘देख लूँगा! तुम सब बदमाशों को एक-एक करके सबक नहीं सिखाया तो मेरा नाम नहीं!’
सुरम्या मौसी के नवरात्र व्रत का अंतिम दिन था वह। बुझी हुई हवन-वेदिका सी वह काया उपासना कक्ष के बीच निश्‍चेष्‍ट पड़ी थी।
शेफाली ने बड़े यत्‍न से अंतिम प्रसाधन किया था—‘गौरांग बाबू, बड़ी दीदी की विदाई हो रही है। उनके लिए एक लाल रेशमी साड़ी और…’
गौरांग ने यंत्रचालित भाव से सभी औपचारिकताएँ पूरी की थीं। विश्‍वास बाबू और अन्य बुजुर्ग संजीदा थे—प्रतिमा-विसर्जन का जुलूस आगे बढ़े, मार्ग अवरुद्ध हो जाए, इसके पहले ही…
हलके गुलाबी रंग का भूमिकमल सुरम्या मौसी के पैरों के पास रखकर गौरांग शर्मा चुपचाप बाहर चले गए थे। सुनंदा चतुर्वेदी के करुण क्रंदन में ‘शारदा-सदन’ की आर्त मनुहार सिमट आई थी, ‘एक बार आँखें खोल बिटिया, तेरे विसर्जन का यही मुहूर्त तय था, सुरम्या…?’
—इसी पुस्तक से

पारिवारिक रिश्तों, समाज और सामाजिक संबंधों की सूक्ष्मातिसूक्ष्म उथल-पुथल की पड़ताल करता और मानवीय सरोकारों को दिग्दर्शित करता एक भावप्रधान व झकझोर देनेवाला कहानी-संग्रह।

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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