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Deendayal Upadhayaya : Kritatva Evam Vichar by Mahesh Chandra Sharma
दीनदयाल उपाध्याय का जीवन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भारतीय जनसंघ के साथ एकात्म था। भारतीय जनसंघ उनकी निर्णायक भूमिका व नेतृत्व के कारण भारतीय राजनीति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दल बना। दीनदयाल उपाध्याय संविधानवाद को धर्मराज्य के रूप में स्वीकार करते थे। वे मिश्रित किंवा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के आलोचक थे। भारत की एक महान् संस्कृति है। भारत की राष्ट्रीयता एकात्म है, उसकी पहचान मजहबी या राजनीतिक नहीं वरन् भूसांस्कृतिक है। वे संघात्मक शासन के विरोधी तथा विकेंद्रीकृत एकात्मशासन के पक्षधर थे। वे भारत की राजनीतिक व्यवस्था में पाश्चात्य अवधारणाओं के आरोपण के विरुद्ध थे, मौलिकता व भारतीयता के प्रतिपादक थे। वे राजनीति को जीवन का सर्वस्व माननेवाली विचारधारा को गलत मानते थे। दीनदयाल अर्थनीति के प्रखर अध्येता थे। वे उपभोगवादी (पूँजीवाद) एवं सरकारवादी (साम्यवाद) आर्थिक मानव की पाश्चात्य कल्पना को अमानवीय मानते थे। वे उत्पादन में वृद्धि, उपभोग में संयम तथा वितरण में समता के पक्षधर थे। उन्होंने ‘अदेव मातृका कृषि’ व ‘अपर मात्रिक उद्योग’ का विचार प्रस्तुत किया। उनके चिंतन का प्रतिफलन ‘एकात्म मानववाद’ के रूप में हुआ, जो एक संपूर्ण जीवनदर्शन है। यह व्यक्ति एवं समाज को विभक्त नहीं करता; शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा के घनीभूत सुख की चिंता करता है तथा विराट् पुरुष के धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष—इन चतुर्पुरुषार्थों की संकलित साधना करता है। दीनदयाल उपाध्याय एकात्मता व पूरकता के लिए प्रकृति साक्षी रूप में प्रस्तुत करते थे। वे एकांगी अथवा खंड दृष्टि नहीं वरन् समग्रता के दृष्टिपथ के राही थे।
Publication Language |
Hindi |
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Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
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