You must be logged in to post a review.
Dwarka Ka Suryasta by Dinkar Joshi
‘ दाऊ!” बलराम के पास जाकर कृष्ण ने तनिक झुककर उनसे पूछा, ” किस सोच में डूबे हैं आप?”
” कृष्ण! प्रभासक्षेत्र के आयोजन एवं गांधारी के शाप की समयावधि के बीच.. ”
” बड़े भैया!” कृष्ण जैसे चौंक उठे, ” आप… आप.. .यह क्या कह रहे हैं?”
” माधव!” बलराम ने होंठ फड़फड़ाए ” महर्षि कश्यप के शाप को हमें विस्मृत नहीं करना चाहिए । ”
” वह मैं जानता हूँ संकर्षण! उसकी स्मृति हमें ऊर्ध्वगामी बनाए ऐसी प्रार्थना हम करें । ”
” उस प्रार्थना के लिए ही मैं इस समुद्र- तट पर योग-समाधि लेना चाहता हूँ । योग- समाधि पूर्व के इस पल में मैं तुमसे एक क्षमा-याचना करना चाहता हूँ भाई । ”
” यह आप क्या कह रहे हैं, दाऊ? आप तो मेरे ज्येष्ठ भ्राता.. ”
बलराम ने कहा, ” मद्य-निषेध तो एक निमित्त था, परंतु वृष्णि वंशियों के लिए उनका सनातन गौरव अखंड रखने के लिए यह निमित्त अनिवार्य था । फिर भी हम उसे सँभाल न सके । अब इस असफलता को स्वीकार करने में कोई लज्जा या संकोच नहीं होना चाहिए । यादवों को यह गौरव प्राप्त होता रहे, इसके लिए तुमने बहुत कुछ किया; परंतु यादव उस गौरव से वंचित रहे, उस अपयश को मुझे स्वीकार करना चाहिए । समग्र यादव वंश को तो ठीक परंतु कृष्ण.. ” बलराम का कंठ रुँध गया, ” भाई, मैंने तुमसे भी छल… ”
” ऐसा मत कहिए बड़े भैया!” बलराम के एकदम निकट बैठते हुए कृष्ण ने उनके हाथ पकड़ लिये, ” हम तो निमित्त मात्र हैं । कर्मों का निर्धारण तो भवितव्य कर चुका होता है । ”
-इसी उपन्यास से
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
Kindly Register and Login to Tumakuru Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Tumakuru Digital Library.
Reviews
There are no reviews yet.