Har-Har Gange by Shyamla Kant Verma
हर-हर गंगे
यह कलियुग है। मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है और दानवीय लीला का विकास। दुर्गुणों का बोलबाला है और सद्गुणों का लोप। चोरी, डकैती, हत्या आदि से मनुष्य संत्रस्त है। अनेक सामाजिक कुरीतियों—बाल-विवाह, विधवा-समस्या, दहेज प्रथा, भ्रूण-हत्या, बड़ा परिवार आदि ने मानव-मूल्यों को नष्ट कर रखा है। नैतिकता से कोई संबंध शेष नहीं रह गया है। समलैंगिक विवाह के पक्ष में भी लोग खड़े हो रहे हैं। प्रस्तुत सामाजिक उपन्यास ‘हर हर गंगे’ उपर्युक्त समस्याओं पर विमर्श प्रस्तुत करने के साथ ही निष्कर्ष भी उपस्थित करता है।
पात्रों के बीच सामाजिक समस्याओं पर विचार-विनिमय का ताना-बाना उपन्यास के कथ्य को बुनने में सहायक रहा है। पौराणिक कहानियों ने जरी के रूप में इस बनावट में चमक उत्पन्न की है। इस उपन्यास में हर व्यक्ति के जीवन की कहानी कही गई है। इसके सभी पात्र काल्पनिक हैं और सामाजिक औपचारिकताओं से बँधे हुए हैं। पौराणिक कहानियों का बोध कराने और विविध सामाजिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने में यह कृति सहायक सिद्ध होगी। अत्यंत रोचक, मनोरंजक और प्रेरणाप्रद उपन्यास।
Publication Language |
Hindi |
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Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
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