Jeevan Ka Saar by Bhartendu Prakash Sinhal
मनुष्य सृष्टि की सर्वोत्कृष्ट रचना इसीलिए माना गया क्योंकि इस देहधारी द्वारा अत्यंत सच्चाई और ईमानदारी से किए गए थोड़े से ही प्रयास से असीम उपलब्धि संभव है। दूसरे शब्दों में मनुष्य योनि ही एकमात्र वह माध्यम है, जिसका सीधा रिश्ता नितांत सुलभता से अपने रचयिता से संभव है।
मानव जीवन जीने की मौलिक कला का वास्तविक सार इसी रहस्य में निहित है। अतः माँभारत का कहना है—“ऐ वत्स, अत्यंत दुर्लभ अपने मानव तन की अमूल्यता को तू थोड़ा सा स्वयं विचार करके पहचान। चाहे तो पूर्णता का कोई मार्ग अपना ले, या फिर आत्मा से प्रेरित गुणों का सृजन निर्भीकता से अपने अंदर कर डाल। उसके उपरांत दोनों ही मार्गों पर केवल चल पड़ने की देर है और तू सहज में ही असीम पुरुषार्थ, असीम शक्तिवाला व्यक्तित्व धारण कर लेगा। परमानंद तेरे जीवन के प्रत्येक क्षण में स्वतः व्याप्त हो जाएगा। जीना किसे कहते हैं, इसका बोध तुझे अनायास हो जाएगा। जीने की कला का यही सबसे दिव्य रहस्य है। अब और विलंब करने की गुंजाइश नहीं रही।
—इसी पुस्तक से
इस पुस्तक में जीवन को संस्कारवान् बनाने और उसे सही दिशा में ले जाने के जिन सूत्रों की आवश्यकता है, उनका बहुत व्यावहारिक विश्लेषण किया है। लेखक के व्यापक अनुभव से निःसृत इस पुस्तक के विचार मौलिक और आसानी से समझ में आनेवाले हैं।
जीवन को सफल व सार्थक बनाने की प्रैक्टिकल हैंडबुक है यह कृति।
| Publication Language |
Hindi |
|---|---|
| Publication Type |
eBooks |
| Publication License Type |
Premium |
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