Louis Braille by pratyush Kumar
दो साल का एक बालक सुई से खेलते-खेलते अचानक अपनी बाईं आँख फुड़वा लेता है। उसकी एक आँख चली जाती है और संक्रमण के कारण चार साल की उम्र में उसकी दूसरी आँख भी चली जाती है और वह पूरी तरह नेत्रहीन हो जाता है। यह दर्दनाक कहानी सन् 1809 में फ्रांस में जनमे लुई ब्रेल की है।
नेत्र ज्योति खोने के बावजूद ब्रेल हताश नहीं हुआ। वह होशियार छात्र था। दस साल की आयु में उसे नेत्रहीन बच्चों के लिए स्थापित विश्व के पहले स्कूल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्ड्रन, पेरिस में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली। 1821 में इंस्टीट्यूट में एक पूर्व सैनिक का भाषण हुआ। उसने बताया कि वे डॉट तकनीक से अँधेरे में भी संचार कर लेते थे। उसके इस भाषण से ब्रेल को नेत्रहीनों के लिए एक लिपि विकसित करने का आइडिया मिला। उसने जो लिपि ईजाद की, वह ‘ब्रेल लिपि’ के नाम से जानी जाती है और दुनिया भर में नेत्रहीनों की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। इस लिपि में अनेक प्रसिद्ध पुस्तकें अनूदित हुई हैं। एक तरह से कहा जा सकता है कि ब्रेल का नेत्रहीन होना दुनिया भर के नेत्रहीनों के लिए वरदान बना।
अद्भुत परोपकारी और मानवता के अनन्य सेवक तथा दृष्टिहीनों की दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलानेवाले लुई ब्रेल की प्रामाणिक जीवन-कथा।
Publication Language |
Hindi |
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Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
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