Maa by Jagram Singh

माँ सृष्टि का बीज मंत्र है। इसमें समस्त दैवीय शक्तियाँ व्यक्त और अव्यक्त रूप में प्राण प्रतिष्ठित हैं। माँ शब्द का श्रवण नवधा भक्ति का स्रोत, संकेत मात्र का आचमन निर्विघ्न जीवन का महाप्रसाद, क्षणिक का स्पर्श परमगति का आलिंगन है। यह विविध रूपों में जन्म से लेकर मरण तक अविभाज्य परछाईं बनकर अनुगामी, सहगामी होता है। फिर चाहे जन्म देनेवाली कोख का निस्स्वार्थ संबल और ममता का सावनमय आँचल हो, धारण करनेवाली के विस्तीर्ण वक्ष का अमिययुक्त क्षुधा की पूर्ति का साधन हो, सीपमुख में पड़े स्वाति बूँदरूपी अनमोल मोती हो, त्रिताप हरनेवाली प्राणदायिनी महासंजीवनी हो, सुमन पालना सदृश कुटुंब, गाँव, समाज का अक्षुण्ण आनंदमयी सान्निध्य हो, निराशा भरी विजन डगर में निरा संभ्रमित पथिक को पाषाण स्तंभ का मूक दिशा-दर्शन और समस्त पापों से मुक्ति का यज्ञानुष्ठान हो, माँ की आदि शक्ति सी महत्ता, गगन सी उच्चता, सर्वेश्वर सी श्रेष्ठता, धरित्री सी विशालता, हिमगिरि सी गुरुता, महोदधि सी गहनता आदि के पावन कर्णप्रिय संबोधन पल-पल मातृत्व, कर्तव्य, नेतृत्व का आभास कराकर जीवन को सार्थक्य पथ की ओर प्रेरित, मार्गदर्शित करते हैं। जिसमें धन्यता का अनियमय आनंद जीवनदीप को प्रदीप्त कर मुक्ति का अधिकारी बनाता है और मातृत्व का साक्षात्कार कर पग-पग पर सुमन शय्या बनकर बिछ जाना ही अंततः अंतकरण को भाता है।
माँ की महत्ता, उसके ममत्व, त्याग, समर्पण और सर्वस्व बालक पर न्योछावर करने की अतुलनीय और अप्रतिम प्रकृति का नमन-वंदन करने हेतु कृतज्ञता स्वरूप लिखी यह पुस्तक हर पाठक के लिए पठनीय है।

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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