Naukarshah Hi Nahin… by Anil Swarup

यह पुस्तक एक ऐसे लोकसेवक की संघर्षमय जीवन-यात्रा के बारे में बताती है, जिसने अपने कार्यकाल के दौरान उत्पन्न तमाम राजनीतिक विरोधों के बावजूद सफलता हासिल की थी। अनिल स्वरूप अपनी इस पुस्तक के माध्यम से अपने पाठकों के साथ अपने उन अनुभवों को साझा करते हैं, जिन्होंने उन्हें लोकसेवक के अपने श्रमसाध्य प्रशिक्षण के दौरान एक आकार दिया तथा व्यक्ति एवं व्यवस्था-जनित संकटों का सामना करने की शक्ति भी दी। एक लोकसेवक के रूप में अपने अड़तीस वर्षों के कार्यकाल में उनका सामना अनेक महत्त्वपूर्ण चुनौतियों से हुआ, जिनमें उत्तर प्रदेश के कोयला माफिया, बाबरी ढाँचा विध्वंस के बाद उपजा संकट तथा शिक्षा माफियाओं का सामना भी शामिल था।
अनिल स्वरूप के इन संस्मरणों में उनकी श्रमसाध्य पीड़ा और संकट भी शामिल हैं, जिनमें उनकी भूमिका निर्णय लेनेवाले तथा इस व्यवस्था के आंतरिक प्रखर अवलोकनकर्ता की भी रही। वे अपनी सफलताओं और हताशा—सार्वजनिक और वैयक्तिक तौर पर जिन्हें उन्होंने जिया है—का वर्णन बखूबी करते हैं। उनकी प्रखर लेखनी में एक नौकरशाह की प्रबंधकीय कुशलता भी नजर आती है।
यह पुस्तक राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के बहुत से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अनिल स्वरूप के प्रयासों और उनकी उत्साही संलिप्तता की पराकाष्ठा भी दरशाती है। ये संस्मरण नितांत व्यक्तिगत होने के साथ-साथ उनका यह विश्वास भी स्पष्ट करते हैं कि इससे अन्य लोगों में भी इसी तरह के कार्य करने की प्रेरणा जाग्रत् हो।

‘‘यह पुस्तक ईमानदारी और लगन के साथ एक ऐसे व्यक्ति ने लिखी है, जिसने जीवन भर संवेदनहीन व्यवस्था में काम किया। मैं तहे दिल से इसे पढ़ने की सलाह देता हूँ।’’
—गुरचरण दास, लेखक और स्तंभकार

‘‘काफी समय से हम एक नौकरशाह से शासन में प्रभावी नएपन के विषय में सुनना चाहते थे। यह उस उम्मीद को विश्वसनीय रूप से पूरा करती है।’’
—प्रभात कुमार, पूर्व कैबिनेट सचिव और पूर्व राज्यपाल, झारखंड

‘‘यह पुस्तक शासन में उनके कौशल का सटीक वर्णन करती है कि किस प्रकार उन्होंने सांप्रदायिक तनाव को शांत करना, पर्यावरण संबंधी स्वीकृतियों में ‘अंधाधुंध कमाई’ का पर्दाफाश करना सीखा।’’
—शेखर गुप्ता, संस्थापक संपादक, द प्रिंट और
पूर्व एडिटर इन चीफ, द इंडियन एक्सप्रेस

‘‘यह तमाम तरह के अनुभवों से भरे जीवन की हैरान करने वाली सच्ची कहानी है—सभी को जरूर पढ़ना चाहिए।’’
—तरुण दास, मेंटर, सीआईआई

‘‘तारीफ करने में दिलदार और आलोचना में धारदार, स्वरूप हमें भारतीय प्रशासन की पेचीदा दुनिया की अंदरूनी सच्चाई दिखाते हैं।’’
—डॉ अंबरीश मिट्ठल, पद्म भूषण, विख्यात एंडोक्राइनोलॉजिस्ट

‘‘सिविल सेवा में आने वाले नए लोगों को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए, क्योंकि लेखक ने नौकरशाही की प्रकृति और उसकी भावना की एक नई परिभाषा दी है।’’
—योगेंद्र नारायण, पूर्व मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश
और पूर्व महासचिव, लोक सभा

‘‘बेहद दिलचस्प…’’
—परमेश्वरन अय्यर, सचिव, ग्रामीण स्वच्छता
(स्वच्छ भारत), भारत सरकार

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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