Pragya Parmita by Rangnath Tiwari
काली माता बेतहाशा हँसने लगीं।
‘‘हँस क्यों रही हो?’’
‘‘वो हँसा रही है, तो मैं क्या करूँ?’’
‘‘वो कौन?’’
‘‘वो तुम्हारी काली माता।’’
‘‘वो तुम्हें हँसा रही हैं?’’
‘‘और नहीं तो क्या? तुम देखो न!’’
केशव मूर्ति की ओर देखने लगा, मूर्ति तो जैसी थी वैसी ही है।
‘‘कहाँ हँस रही हैं?’’
‘‘मुझे देखकर हँसती हैं, तुम्हें देखकर कैसे हँसेंगी? हम हँसे तो वो हँसती हैं। तुम तो ऐसे हो…’’
‘‘जैसा हूँ, ठीक हूँ; रहने दो।’’
केशव कालीमाता को हाथ जोड़कर मंदिर के बाहर घाट पर आ गया। अॅना उसके पीछे-पीछे थी।
‘‘अब कहाँ जाओगी?’’
‘‘मणिकर्णिका घाट पर’’
‘‘वहाँ…?’’
‘‘वहीं तो रहती हूँ…’’
‘‘वहाँ श्मशान भूमि में डर नहीं लगता?’’
—इसी संग्रह से
Publication Language |
Hindi |
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Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
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