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Premyog by Swami Vivekananda
हम देखते हैं कि वे लोग, जो इंद्रिय-भोग के पदार्थों से बढ़कर और किसी वस्तु को नहीं जानते, धन-धान्य, कपड़े-लत्ते, पुत्र-कलत्र, बंधु-बांधव तथा अन्यान्य सामग्रियों पर कैसी दृढ़ प्रीति रखते हैं; इन वस्तुओं के प्रति उनकी कैसी घोर आसक्ति रहती है! इसीलिए इस परिभाषा में वे भक्त ऋषिराज कहते हैं, ‘‘वैसी ही प्रबल आसक्ति, वैसी ही दृढ़ संलग्नता मुझमें केवल तेरे प्रति रहे।’’ ऐसी ही प्रीति जब ईश्वर के प्रति की जाती है, तब वह भक्ति कहलाती है!
Publication Language |
Hindi |
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Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
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SKU:
9789384343026.pdf
Categories: Books, Hindi Books, Premium Hindi Books, Provisional Premium Books
Tag: Hindi Literature
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