Rishtey by Sanjay Sinha

मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि मेरी माँ ने ही फेसबुक की कल्पना पहली बार की थी। मार्क जुकरबर्ग तो बहुत बाद में आए फेसबुक के इस संसार को लेकर। मेरी माँ उनसे बहुत पहले से अपने लिए फेसबुक का संसार रच चुकी थी। वो इस दुनिया में बहुत कम समय तक रह पाई, लेकिन जितने भी दिन रही, रिश्ते जोड़ती रही। मैंने उसे कभी किसी से रिश्ते तोड़ते नहीं देखा। कहती थी कि रिश्ते बनाने में चाहे सौ बार सोच लो, लेकिन तोड़ने में तो हजार बार सोचना। माँ कहती थी कि एक दिन वो नहीं रहेगी लेकिन ‘रिश्ते’ रहेंगे। सब एकदूसरे से जुदा होते चले जाएँगे, लेकिन रिश्तों का कारवाँ सबको एकदूसरे से जोड़े रहेगा। आदमी आता है चले जाने के लिए, लेकिन रिश्ते जिंदा रहते हैं यादों में, व्यवहार में, मस्तिष्क में।
सचमुच, माँ चली गई, फेसबुक पर माँ मिल गई। एक दिन भाई चला गया, फेसबुक पर भाई मिल गया। एक दिन मैं चला जाऊँगा, कोई मुझे फेसबुक पर ढूँढ़ लेगा।

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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