Tulsidas Bhakti Prabandh Ka Naya Utkarsh by Vidya Nivas Misra

तुलसी की रामकथा की रचना एक विचित्र संश्‍लेषण है । एक ओर तो श्रीमद‍्भागवत पुराण की तरह इसमें एक संवाद के भीतर दूसरे संवाद, दूसरे संवाद के भीतर तीसरे संवाद और तीसरे संवाद के भीतर चौथे संवाद को संगुफित किया गया है और दूसरी ओर यह दृश्य-रामलीला के प्रबंध के रूप में गठित की गई है, जिसमें कुछ अंश वाच्य हैं, कुछ अंश प्रत्यक्ष लीलायित होने के लिए हैं । यह प्रबंध काव्य है, जिसमें एक मुख्य रस होता है, एक नायक होता है, मुख्य वस्तु होती है, प्रतिनायक होता है- और अंत में रामचरितमानस में तीनों नहीं हैं । यह पुराण नहीं है, क्योंकि पुराण में कवि सामने नहीं आता है- और यहाँ कवि आदि से अंत तक संबोधित करता रहता है । एक तरह से कवि बड़ी सजगता से सहयात्रा करता रहता है । पुराण में कविकर्म की चेतना भी नहीं रहती-सृष्‍ट‌ि का एक मोहक वितान होता है और पुराने चरितों तथा वंशों के गुणगान होते हैं । पर रामचरितमानस का लक्ष्य सृष्‍ट‌ि का रहस्य समझाना नहीं है, न ही नारायण की नरलीला का मर्म खोलना मात्र है । उनका लक्ष्य अपने जमाने के भीतर के अंधकार को दूर करना है, जिसके कारण उस मंगलमय रूप का साक्षात्कार नहीं हो पाता- आदमी सोच नहीं पाता कि केवल नर के भीतर नारायण नहीं हैं, नारायण के भीतर भी एक नर का मन है नर की पीड़ा है ।

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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