Vijaydan Detha Ki Lokpriya Kahaniyan by Vijaydan Detha

झोला की तीमारदारी में बहू और ग्यारह बरस का पोता भी लोगों के कहे-कहे जीप में बैठ गए।…और पीछे रह गई हञ्जा-माऊ—निपट अकेली! इतनी लंबी-लड़ाक जिंदगी में वह कभी अकेली नहीं रही। और न सपने में भी उसे अकेलेपन का कभी एहसास हुआ। घरवालों के बीच वह हरदम ऐसी आश्वस्त रहती थी, मानो सार-सँभाल के वज्र-कुठले में नितांत सुरक्षित हो! उसकी निर्बाध कुशलक्षेम में कहीं कोई कसर नहीं थी। और आज अकेली होते ही उसके अटूट विश्वास की नींव मानो अतल गहराई में धँस गई! बड़ी मुश्किल से पाँव घसीट-घसीटकर वह अस्पताल से अपने घर पहुँची।

वक्त तो कयामत की भी परवाह नहीं करता, फिर उस बामन की क्या औकात! रात-दिन का चक्र अपनी रफ्तार से चलता रहा और अपनी बारी से अमावस भी आ गई। इधर देवी परेशान थी। आखिर इस बखेडि़ये को यह क्या बेजा सूझी! अगर एक दफा लोगों के मन से देवी-देवताओं की आस्था उठ गई तो फिर कोई उनका नाम लेवा भी नहीं मिलेगा। दूसरे जीवों को तो अपने जीवन से परे कोई ध्यान ही नहीं। उनकी बला से भगवान् कल मरे या आज।
—इसी संग्रह से
भारतीय लोक संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं को नए प्रतिमान देनेवाले विजयदान देथा उपाख्य ‘बिज्जी’ ने अपनी प्रभावी लेखनी के माध्यम से शोषित, उपेक्षित और पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्यधारा में लाने का पुरजोर आग्रह किया। सामाजिक चेतना जाग्रत् करनेवाली उनकी प्रभावी लोकप्रिय कहानियों का पठनीय संकलन।

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

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