Hindi Literature
Viveki Rai Ki Lokpriya Kahaniyan by Viveki Rai
कथाकार विवेकी राय की लोकप्रिय कहानियों का यह संकलन एक बहुत बड़ी आवश्यकता की पूर्ति है। लगातार छह दशक तक कहानी-साहित्य की समस्त पीढि़यों और आंदोलनों को आत्मसात् करते हुए उक्त क्षेत्र में कलम चलाकर, ग्राम-जीवन के यथार्थ को, उसके सुख-दुःख को प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत करके उन्होंने एक कीर्तिमान स्थापित किया है। उनकी कहानियाँ अपने बृहत्तर रचनात्मक सरोकारों के साथ संपूर्ण भारत के स्वातंत्र्योत्तर गाँवों का साक्षात् कराती हैं। टुच्ची राजनीति और विकास के खोखले दावों से दो-दो हाथ करते दिखते हैं डॉ. राय। प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु के बाद गाँव की संवेदनशील पृष्ठभूमि पर लिखनेवाली पीढ़ी के सबसे सशक्त कथाकारों की श्रेणी में शिखरस्थ हैं। ग्राम्यांचल, कृषि, संस्कृति और अध्यापक-जीवन आदि के विभिन्न अनुभवों की झाँकियों से संपृक्त इन कहानियों में उन्होंने अपने अंदर के प्रौढ़ भाषाविद्, शैलीकार और कुशल कथा-लेखक को जमकर खटाया है। यही कारण है कि कथाकार राय की कहानियाँ नए संदर्भों के साथ अपनी अर्थवत्ता को ग्रहण कर सकी हैं। इस संकलन से हिंदी कथा-साहित्य का पाठक उनके समृद्ध कहानीकार रूप से परिचित हो सकेगा, ऐसा विश्वास है।
Volleyball: Khel Aur Niyam by Surendra Shrivastava
वॉलीबॉल
वॉलीबॉल एक व्यायाम वाला तथा मनोरंजक खेल है। इसके मैदान की लंबाई 18 मीटर एवं चौड़ाई 9 मीटर होती है। लंबाई में इसको दो बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। तत्पश्चात् दो इंच (5 सेमी.) चौड़ाई की रेखा से इस मैदान की सीमारेखा बना दी जाती है। किसी भी प्रकार की रुकावट मैदान के चारों तरफ, तीन मीटर तक और ऊँचाई में 7 मीटर तक नहीं होनी चाहिए। मध्य रेखा के समांतर दोनों तरफ उससे तीन मीटर की दूरी पर आक्रामक रेखा खींच दी जाती है। मैदान के पीछे की रेखा के साथ, बगल की रेखा से दोनों तरफ, क्रीड़ाक्षेत्र की ओर तीन मीटर की दूरी पर, मैदान के बाहर पीछे की ओर एक रेखा खींच दी जाती है। इसे सेवाक्षेत्र (Service Area) कहते हैं।
प्रत्येक दशा में एक टीम (दल) में छह खिलाड़ी ही खेलेंगे, लेकिन कोई भी दल 12 खिलाड़ियों से अधिक के नाम नहीं भेज सकता। बहुधा प्रतियोगिता तीन पाली की होती है, किंतु फाइनल मैच पाँच पाली का होता है। खेल के बहुत से नियम होते हैं, जिनका खिलाड़ियों को अनुपालन करना पड़ता है।
इस रोचक खेल की विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में दी गई है, जो खेल-प्रेमियों को रुचिकर तथा उपयोगी लगेगी।
Vrat-Upvas Ke Dharmik Aur Vaigyanik Adhar by Shashikant Sadaiv
भले ही व्रत-उपवास का वास्तविक अर्थ कुछ भी हो, लेकिन ये जनमानस में धर्म, आस्था एवं श्रद्धा का प्रतीक हैं। कुछ लोग इसे धर्म के साथ जोड़कर देखते हैं तो कुछ ज्योतिषीय उपायों की तरह लेते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इनके अलग लाभ हैं तो मनोविज्ञान की दृष्टि से इनका अपना महत्त्व है। शायद यही कारण है कि व्रत-उपवास का चलन सदियों नहीं, युगों पुराना है। एक तरफ हिंदू शास्त्र व्रत-उपवास जैसे धार्मिक कर्मकांडों की पैरवी करते नजर आते हैं तो दूसरी ओर खुद ही इसी बात पर जोर देते हैं कि भूखे भजन न होय गोपाला, अर्थात् भूखे पेट तो भगवान् का भजन भी नहीं हो पाता।
व्रत-उपवास हमारे आत्मिक बल और स्व-नियंत्रण को बढ़ाते हैं; इंद्रियों को वश में रखने की शक्ति देते हैं।
कुछ लोग व्रत-उपवास श्रद्धा से रखते हैं तो कुछ लोग भय से, कुछ लोग शारीरिक स्वास्थ्य के लिए रखते हैं तो कुछ लोग मानसिक शांति के लिए। कारण भले ही कोई हो, लेकिन लोगों के जीवन में व्रत-उपवास का विशेष स्थान है।
यह पुस्तक व्रत-उपवासों की महत्ता और उनकी वैज्ञानिकता प्रस्तुत करती है।
Vrindavan Lal Verma Ki Lokpriya Kahaniyan by Vrindavan Lal Verma
रज्जब को स्मरण हो आया कि पत्नी के बुखार की वजह से अंटी का बोझ कम कर देना पड़ा है और स्मरण हो आया गाड़ीवान का वह हठ, जिसके कारण उसको कुछ पैसे व्यर्थ ही देने पड़े थे। उसको गाड़ीवान पर क्रोध था, परंतु उसको प्रकट करने की उस समय उसके मन में इच्छा न थी।
बातचीत करके रास्ता काटने की कामना से उसने वार्त्तालाप आरंभ किया—
‘गाँव तो यहाँ से दूर मिलेगा।’
‘बहुत दूर। वहीं ठहरेंगे।’
‘किसके यहाँ?’
‘किसीके यहाँ भी नहीं। पेड़ के नीचे। कल सवेरे ललितपुर चलेंगे।’
‘कल का फिर पैसा माँग उठना।’
‘कैसे माँग उठूँगा? किराया ले चुका हूँ। अब फिर कैसे माँगूँगा?’
‘जैसे आज गाँव में हठ करके माँगा था। बेटा, ललितपुर होता तो बतला देता।’
‘क्या बतला देते? क्या सेंत-मेंत गाड़ी में बैठना चाहते थे?’
‘क्यों बे, रुपए लेकर भी सेंत-मेंत का बैठना कहता है! जानता है, मेरा नाम रज्जब है। अगर बीच में गड़बड़ करेगा तो यहीं छुरी से काटकर फेंक दँूगा।’
रज्जब क्रोध को प्रकट करना नहीं चाहता था, परंतु शायद अकारण ही वह भलीभाँति प्रकट हो गया।
—इसी संग्रह से
ऐतिहासिक लेखन के लिए प्रसिद्ध हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार बाबू वृंदावनलाल वर्मा की रहस्य, रोमांच, साहस और पराक्रम से भरपूर कहानियों का पठनीय संकलन।
Vyakti-Nirman Se Rashtra-Nirman by Arvind Pandey
आज के भौतिकवादी युग में चहुँ ओर मैं और मेरा पैकेज, मैं और मेरे परिवार में उपभोक्तावाद एवं भोगवाद का बोलबाला है, जिससे नवयुवकों में सही-गलत, सत्य-असत्य, नैतिकता-अनैतिकता, सदाचार-दुराचार आदि को जानने व समझने की शक्ति घटती जा रही है। विविधताओं को भिन्नता यानी भेद बनाकर भड़काया जा रहा है। मानवीय संवेदनाएँ बिखर न जाएँ, इसकी चिंता खाए जा रही है। ऐसे में इस पुस्तक की विषय-वस्तु लेखक के अपने अनुभवों से योग्य मार्गदर्शन, कुशल व्यक्तित्व-निर्माण के साथ-साथ स्वार्थ से निस्स्वार्थ यानी समाज व राष्ट्र की ओर बढ़ाने का सक्षम प्रयत्न है। विशेष रूप से लेखक ने युवा पीढ़ी को सामने रखकर लेखन किया है। युवा पीढ़ी का वर्तमान में जागत् होना, प्रेरित होना और सही दिशा में ऊर्जावान होना अत्यावश्यक है। खुशहाल व्यक्ति से ही खुशहाल समाज बनता है। स्वयं प्रसन्न रहो तथा दूसरों को प्रसन्नता दो, न कि स्वयं तनाव, हिंसा, शोषण में रहो तथा दूसरों को भी तनाव और हिंसा दो। ऐसे युवाओं से व्यक्तित्व बनता है, जो समृद्ध, समर्थ एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाते हैं। कहते हैं कि अहमियत और हैसियत का शत्रु अहं है। आप अहं छोड़कर देखिए, हैसियत बनी रहेगी और अहमियत बढ़ती जाएगी। प्रस्तुत पुस्तक में स्वयं के जीवन में घटित घटनाओं से प्राप्त सबक को कुशलता से सँजोया है। कुछ छोड़ने से ही कुछ प्राप्त होता है।
Vyavaharik Patra-Lekhan Kala by Braj Kishore Prasad Singh
पत्र-लेखन कला
पत्रों का मानव-जीवन से सीधा संबंध है। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो, जिसे जीवन में कभी पत्र लिखने की आवश्यकता न पड़ी हो। अगर किसी को पत्र लिखने का अवसर न मिला हो तो प्राप्त करने का तो अवश्य ही मौका मिला होगा।
आम आदमी के बीच आज के इलेक्ट्रॉनिक साधनों के कारण पत्र भले ही अति महत्त्वपूर्ण नहीं रह गया हो, लेकिन सरकारी कार्यालयों में आज भी इसकी आवश्यकता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है, बल्कि और बढ़ गई है।
यूँ तो पत्र-लेखन पर अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं, लेकिन किसी पुस्तक में शायद ही संपूर्णता हो। यह पुस्तक सर्वांगीण है, पत्र-लेखन के सभी वैशिष्ट्यों का इसमें समावेश है। कार्यालयों और सचिवालयों के कर्मियों के लिए विशेष कारगर सिद्ध होगी, जिन्हें पत्र-लेखन के बारे में इससे विशेष सहायता प्रप्त होगी।
आशा है यह सरल-सुबोध पुस्तक विद्यार्थियों, परीक्षार्थियों एवं कार्याल्यों के कर्मियों के लिए ही नहीं, पत्राचार करनेवाले सामान्य व्यक्ति के लिए भी उतनी ही उपयोगी और कारगर सिद्ध होगी।
Wah Zindagi, Wah! by Sunil Handa
वाह जिंदगी, वाह!
बच्चे-बड़े, विद्यार्थी-शिक्षक, स्त्री-पुरुष—सभी को कहानियाँ पसंद होती हैं। हर कहानी में पढ़नेवाला अपने आपको ढूँढ़ता है, खोजता है कि कहानी का कोई पात्र या घटना उसके जीवन से जुड़ी तो नहीं।
प्रस्तुत पुस्तक ‘वाह जिंदगी, वाह!’ ऐसी ही 333 कहानियों का संकलन है, जो आपके जीवन से जुड़ी हैं।
यह सीखों, नीतिकथाओं, सत्यों और बुद्धिमत्ता की पुस्तक है। यह पुस्तक कॉलेज के विद्यार्थियों, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और उस किसी भी व्यक्ति द्वारा अवश्य पढ़ी जानी चाहिए, जो जिंदगी की धूप-छाँव और लुका-छिपी के खेल से निराश हो जाता है; उसके मन में एक आशावाद जगाकर उसके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन करने की क्षमता रखती है यह पुस्तक।
जीवन के सुख-दुःख, लाभ-हानि, उन्नति-अवनति और हर रंग की छटा लिये इन प्रेरणाप्रद-रोचक कहानियों को पढ़कर आप बरबस ही कह उठेंगे—‘वाह जिंदगी, वाह!’
Walt Disney by Dinker Kumar
वॉल्ट डिज्नी को पूरी दुनिया जानती है। वे खुद को ‘वॉल्ट’ के संबोधन से पुकारा जाना पसंद करते थे। वे जहाँ ‘मिकी माउस’ के जनक थे, वहीं उन्होंने डिज्नीलैंड जादुई साम्राज्य की स्थापना की।
वॉल्टर इलियस डिज्नी का जन्म
5 दिसंबर, 1901 को शिकागो में हुआ। मेहनतकश वर्ग के प्रतिनिधि इलियस और फ्लोरा डिज्नी की वे चौथी संतान थे। सन् 1906 में डिज्नी परिवार शिकागो छोड़कर मार्सलीन (मिसूरी) में जाकर बस गया।
परिवार के कुछ सदस्यों ने चित्रांकन के प्रति वॉल्ट की दिलचस्पी को प्रोत्साहन दिया था और शिकागो में वापस आने पर उन्होंने आर्ट क्लासों में हिस्सा भी लिया था। वे रेडक्रॉस के पोस्टर और संपादकीय कार्टून बनाने लगे थे। सन् 1928 में वॉल्ट ने प्रथम ध्वनियुक्त कार्टून फिल्म ‘स्टीम वोट विली’ प्रदर्शित की। सन् 1948 में ‘ट्रू लाइफ एडवेंचर शृंखला’ की पहली फिल्म ‘सील्स इन अलास्का’ प्रदर्शित हुई, जिसे अगले साल ‘अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
इस पुस्तक में वॉल्ट डिज्नी के जीवन का चित्रण करते हुए इस बात की पड़ताल की गई है कि किस तरह उन्होंने मनोरंजन जगत्, शिक्षा क्षेत्र और इतिहास को प्रभावित किया तथा आनेवाली पीढि़यों के लिए प्रेरक आदर्श बन गए।
Warren Buffett Ke Investment Lessons by Pradeep Thakur
वॉरेन बफे को अब तक का सबसे बड़ा निवेशक कहा जाता है, लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है किवे निवेश करनेवाले सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों में से एक हैं। अपनी वार्षिक रिपोर्टों और अनगिनत साक्षात्कारों में वे स्वतंत्र रूप से अनमोल ज्ञान प्रदान करते हैं, जिसका उपयोग आप बेहतर निवेश करने और अपने वित्तीय लक्ष्यों तक जल्द पहुँचने के लिए कर सकते हैं।
इस पुस्तक में उनके निवेश जीवन के महत्त्वपूर्ण पाठ पिरोए गए हैं, जिन्हें जीवन में उतारकर निवेश की दुनिया में सरलता से सफल हुआ जा सकता है।
Warren Buffett Ke Management Sootra by Pradeep Thakur
वॉरेन बफे न केवल दीर्घकालिक निवेशक (लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर) रहे हैं, बल्कि व्यवसाय-प्रबंधक (बिजनेस मैनेजर) के रूप में भी अद्वितीय हैं। इन दोनों ही रूपों में बफे की सफलता का मूलमंत्र रहा है सही व्यवसाय का चयन।
जी हाँ, वॉरेन बफे निवेशक के रूप में पेशेवर जीवन शुरू करने से भी बहुत पहले इस रहस्य की खोज कर चुके थे कि सभी व्यवसायों का अर्थशास्त्र एक समान नहीं होता। लेकिन कुछ विशेष प्रकार के व्यवसाय ऐसे होते हैं, जिनके अर्थशास्त्र स्वाभाविक रूप से उनका पक्ष में इतना अधिक काम करता है।
अपने लंबे अनुभव, प्रखर चिंतन, दूरदृष्टि से बफे ने अपार सफलता प्राप्त की है। इस ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए उनके बिजनेस और मैनेजमेंट सूत्रों को इस पुस्तक में संकलित किया गया है, जो नए उद्यमियों और बिजनेसमैन की सफलता का द्वार खोलने में सहायक होंगे।
Weight Loss Ke 101 Tips by Dr. Anil Chaturvedi
मोटापा उठना-बैठना भी मुश्किल कर देता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति को बीमारियों के अलावा सुस्ती भी घेरती है। वास्तविकता तो यह है कि मोटापा और शरीर का वजन बढ़ना ऊर्जा के सेवन और ऊर्जा के उपयोग के बीच असंतुलन के कारण होता है। अधिक वसायुक्त आहार का सेवन करना भी मोटापे का कारण है। मोटापा एक ऐसी बीमारी है, जो किसी को भी हो सकती है।
जिस प्रकार खाँसी और कब्ज को रोगों का घर कहा जाता है, वैसे ही मोटापे को भी कई बीमारियों का जनक माना जाता है। दरअसल, अधिक मोटे व्यक्ति के शरीर में चरबी ही बढ़ती है, अन्य धातुएँ उतनी नहीं बढ़तीं। मोटा व्यक्ति भूख शांत करने के लिए नहीं खाता, बल्कि स्वाद की इंद्रियों को शांत करने के लिए कई तरह के भोजन करता है। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि अतिरिक्त भोजन मिलने पर, आराम-तलब होने पर और परिश्रम न करने पर हमारा शरीर अनावश्यक चरबी एकत्र करने लगता है। यही मोटापे का कारण है।
प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे उपयोगी तरीके बताए गए हैं, जिन पर अमल करते हुए कोई भी व्यक्ति अपने शरीर का वजन घटाकर अतिरिक्त मोटापे से निजात पा सकता है। वजन घटाने के व्यावहारिक टिप्स बतानेवाली अत्यंत उपयोगी पुस्तक।
Whatsapp Rishte Naton Ki Kahaniyan by Rashmi
रिश्ते फूलों की तरह खिलते हैं और महकते हैं; रिश्ते बादलों की तरह झूमते हैं और स्नेहसिक्त हो बरसते भी हैं। कभी-कभी यही रिश्ते हमारी जिंदगी में इंद्रधनुष के सातों रंगों की छटा बिखेर देते हैं तो अकसर यही हमारे इर्द-गिर्द भँवरे की गुंजन की तरह गुनगुनाते रहते हैं।
मित्रो! रिश्ते अनमोल होते हैं। कुछ रिश्ते हमें स्वत: ही प्राप्त होते हैं जबकि कुछ हम खुद अपनी रुचि और आदतों से मेल खाते लोगों के साथ बनाते हैं। रिश्ते प्रेम का पर्याय है और प्रेम उम्र, जाति, धर्म या किसी और तरह का बंधन नहीं मानता। ऐसा ही एक रिश्ता हमारा मोबाइल के साथ भी बन गया है। आज संचार क्रांति के साथ-साथ मोबाइल हम सभी के जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। हम सभी मोबाइल का प्रयोग करते हैं। तकनीक के क्षेत्र में हम नित नई ऊँचाइयाँ छू रहे हैं। आज प्राय: सभी व्हाट्सएप से परिचित हैं और अमूमन हम सभी इस एप का प्रयोग भी करते हैं। मित्रो! व्हाट्सएप पर की गई चैटिंग अकसर एक कहानी या संदेश छोड़ जाती है, यदि हम उसे पहचानने की कोशिश करें तो!
इस पुस्तक में व्हाट्सएप की उन्हीं चैटिंगों में से उभरती कहानी को आप सभी के सम्मुख लाने का प्रयास किया गया है। ये छोटी-छोटी कहानियाँ आपकी अपनी कहानियाँ हैं; आपके अपने रिश्तों की कहानियाँ हैं। इन कहानियों को पढ़ते हुए आप खुद को अपनों के करीब महसूस करेंगे।
हमें विश्वास है कि आप इन कहानियों की मिठास में डूब जाएँगे और उस मिठास को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी साझा करेंगे।
William Shakespeare by dinkar Kumar
सदी के महान् नाटककार विलियम शेक्सपीयर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 को इंग्लैंड में हुआ।
कुछ लोग मानते हैं किसान का बेटा किसान होता है, डॉक्टर का डॉक्टर और सैनिक का सैनिक आदि-आदि। लेकिन शेक्सपीयर के खानदान का लेखन से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था। उनके पिता पेशे से किसान थे, लेकिन शेक्सपीयर को खेती-किसानी नहीं भाई; बल्कि बचपन में उन्होंने एक नाटक देखा और शायद तभी फैसला कर लिया कि वह भी नाटककार बनेंगे। उनका सपना वर्ष 1592 में साकार हुआ, जब वह लंदन में थिएटर से जुडे़ और जल्दी ही एक सफल अभिनेता व कलाकार के रूप में लोकप्रिय हो गए।
उन्होंने दुखांत, सुखांत, मजाकिया—हर तरह के नाटक किए। उनके प्रसिद्ध नाटकों में ‘द कॉमेडी ऑफ एरर’,‘ रोमियो एंड जूलियट’, ‘द मर्चेंट ऑफ वेनिस’, ‘एज यू लाइक इट’, ‘हैमलेट’, ‘जूलियस सीजर’ इत्यादि शामिल हैं।
आज लगभग 400 साल बाद भी उनके नाटकों के प्रति लोगों का जुनून बरकरार है। प्रस्तुत जीवनी उन्हीं महान् नाटककार के जीवन की घटनाओं से हमें परिचित कराती है।
Wright Bandhu by Samuel Willard Crompton
राइट ब्रदर्स
पहले हवाई यात्री
ऑरविल और विलबर बचपन से ही उड़ान भरने की अवधारणा के प्रति आकर्षित थे। आकाश में उड़ने की प्रेरणा उन्हें अनेक स्रोतों से मिली, जिसमें जर्मन व्यक्ति ओटो लिलियेनथल और अमेरिकी नागरिक ओक्टावे चांटू का नाम सम्मिलित था। इन दोनों ने ही ग्लाइडर के साथ उड़ान भरने की अवधारणा पर व्यापक स्तर पर काम किया था। यहाँ पर संभवतः सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि राइट ब्रदर्स के द्वारा किए गए काम के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा बाजों व अन्य पक्षियों की उड़ान, आकाश में पलटने या अपने पंखों को फैलाने और सिकोड़ने के करतब बने, वे इस बात को अच्छी तरह से समझ चुके थे कि यह उनके पंखों का ही कमाल था, जो उन्हें आकाश में अपना संतुलन बनाए रखने हेतु मजबूत आधार देते हैं। राइट ब्रदर्स ने सन् 1900 में पहली बार अपने द्विपंखी विमान का निर्माण करने के लिए इस अवधारणा को आधार बनाया, जिसे उन्होंने ‘विंग्स वॉर्पिंग’ का नाम दिया। उन्होंने हवा में उड़ने के लिए तैयार विमान को बनाने से पूर्व अपने मॉडल विंग्स के 200 भिन्न-भिन्न संस्करण तैयार किए। अंततः 17 दिसंबर, 1903 को विलबर और ऑरविल को सफलता प्राप्त हुई। उस दिन ऑरविल ने आकाश में उड़ान भरने और पूर्ण रूप से चालक के नियंत्रण में रहनेवाले विमान पर सवार होकर इतिहास रचा। यह कारनामा उन्होंने उत्तरी कोरोलिना के किटी हॉक के रेत के टीलों पर किया। उन्होंने 12 सेकंड तक 120 फीट की ऊँचाई पर उड़ान भरी।
Yadon Ka Karvan by Deepak Mahaan
शोहरत की चकाचौंध से परे, हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय सितारे कैसे हँसते और सिसकते हैं, ऐसे सर्वथा अनछुए-अनजाने प्रसंगों के सफर का नाम है ‘यादों का कारवाँ’। सच्ची मगर अनूठी घटनाओं से प्रेरित यह पुस्तक पंद्रह तिलस्मी सितारों के अनमोल जीवन-दर्शन के साथ यह भी दरशाती है कि वे भी कैसे राग-द्वेष के शिकार होते हैं। सरल और सरस भाषा में यह पुस्तक सिनेमा-जगत् के उन पहलुओं से अवगत कराती है, जो आमतौर पर जनता के सामने उजागर नहीं होते। व्यक्तिगत प्रसंगों द्वारा सितारों के बाहरी आवरण के पीछे छिपे सार्थक व्यक्तित्व से मुलाकात के अलावा पुस्तक सत्यापित करती है कि संतों की सूक्ति ‘यश-अपयश विधि हाथ’ कितनी सटीक है, क्योंकि काल के मोहरे होते हुए भी ये कलाकार अगर प्रसिद्धि और धन-दौलत के शिखर फतह करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि प्रभु की इन पर विशेष कृपा होती है। संवेदनशील कथाओं के इस संकलन में प्रेरणा के अनेक ऐसे पुष्प गुँथे हैं, जिनसे हर पाठक अपनी जीवन-यात्रा को और अधिक सुरभित सुगंध से निखार सकता है।
Yadon Ke Jharokhon Se: Dr. R.P. Gupta by Dr. Anil Chaturvedi
डॉ. राम के व्यक्तित्व को कुछ शब्दों में बाँचना स्वयं में एक चुनौती है। उनके जीवन और व्यक्तित्व के इतने विविध आयाम हैं, उनकी कर्म-साधना के भिन्न-भिन्न स्तर हैं कि सभी को समग्रता व सहजता से समेटना संभव नहीं। एक सदाशय शल्य चिकित्सक, संस्कारों के सहज संरक्षक, परंपराओं के पोषक, शिक्षा के उन्नायक; वे इस युग में पुरुषोत्तम राम के पर्याय ही हैं। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के अनेकानेक आलोक दीप अंतर्मानस में झिलमिलाते रहते हैं।
‘यादों के झरोखों से’ डॉ. राम के जीवन का दस्तावेज है। स्नेहीजन, परिजन, सहयोगी और सहपाठी सभी ने अपनी भावांजलि, संवेदनाएँ, श्रद्धासुमन, हृदयोद्गार, कलमबद्ध कर इस स्मृति ग्रंथ को संपूर्णता प्रदान की है। अपने गुरु के प्रति श्रद्धा-मिश्रित निष्ठा के भाव का संज्ञान तो सभी करते हैं, किंतु राम ने तो इतिहास ही बदल दिया। एक गुरु की अपने श्रेष्ठतम शिष्य, सहयोगी और साथी के प्रति मार्मिक संवेदना की अभिव्यक्ति, श्रद्धेय गुरुवर स्वर्गीय डॉ. के.सी.महाजन का आलेख, पुस्तक की भूमिका में स्वत: ही परिणित हो गया। हमारे अग्रज श्री ओ.पी. गुप्ता ने जिस लगन व मनन से पल-पल दिन-रात एक कर आलेख, संस्मरण तथा श्रद्धा सुमन से संवेदनाएँ समेंटी एवं सजाईं, वह एक अग्रज के अपने अनुज के प्रति अटूट, असीम, अप्रतिम, अविस्मरणीय अपनत्त्व एवं आस्था का परिचायक है। उसी आशा एवं विश्वास के साथ ‘यादों के झरोखों से’ भावी पीढ़ी को प्रेरणा का स्रोत बन प्रेरित करता रहेगा।
—डॉ. अनिल चतुर्वेदी
Yagya by Dattatraya Kher / Sailja Raje
उपन्यास-लेखन में एक एकदम नई विधा को लेकर ' यज्ञ ' लिखा गया है । यह उपन्यासपरक जीवनी न होकर जीवनपरक उपन्यास है । किसी महानायक के महानिर्वाण के तुरंत बाद लिखा गया यह शायद पहला ही उपन्यास है ।
मराठी में यह नई विधा पहली बार लाने का श्रेय ' यज्ञ ' उपन्यास को जाता है । वास्तव में सावरकरजी सरीखे महानायक के जीवन पर तो एक सशक्त महाकाव्य रचा जा सकता है । इस उपन्यास में महाकाव्य के सभी रस, साहित्य के सभी प्रकार, सावरकरजी के व्याख्यान, उनकी काव्य-रचनाएँ नाटकीय प्रसंग आदि का ताना-बाना ऐसी कुशलता से बुना गया है कि न तो उसकी रोचकता कहीं कम हुई है, न ही कथ्य के साथ कोई अन्याय ।
महानायक के प्रति असीम भक्तिभाव रखते हुए भी उसके जीवन की वास्तविकता के साथ पूरी प्रामाणिकता लेखकों ने रखी है । किसी महानायक के जीवन को ऐसी ललित शैली में एक नई विधा में बाँधने का ' यज्ञ ' अपने में पहला उदाहरण है । उपन्यास जहाँ विधा में अभिनवता लिये है, वहीं वह रसप्रधान एवं रोमांचक भी है । कल्पना से सत्य अधिक सुंदर एवं अद्भुत होता है, इस कथन को उपन्यास अपने पन्ने-पन्ने में चरितार्थ करता है ।
कथ्य और उसकी रचना, दोनों दृष्टियों से, ' यज्ञ ' अभूतपूर्व रचना है । मराठी सारस्वत के लिए तो यह एक ललाम है ही, हिंदी के माध्यम से भारत भारती के भंडार को भी समृद्ध करने की क्षमता इसमें है ।
Yah Samvidhan Hamara Ya Angrejon Ka by Devendra Swaroop
यह पुस्तक या कहें विमर्श से इस तथ्य को रेखांकित करता है कि स्वाधीन भारत की 6 वर्ष लंबी यात्रा की परिणति भ्रष्टाचार, सामाजिक विखंडन, घोर व्यक्तिवादी, सत्तालोलुप राजनैतिक नेतृत्व के उभरने का दृश्य देखकर अनेक मित्रों के मन में प्रश्न उठा कि यदि संविधान हमारे राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करनेवाला पथ है तो 26 जनवरी, 1950 को हमने जिस सांविधानिक मार्ग पर चलना आरंभ किया, वह हमें उल्टी दिशा में क्यों ले जा रहा है? वहीं यह प्रश्न भी उभरता है कि क्या यह संविधान हमारी मौलिक रचना है या ब्रिटिश सरकार द्वारा आरोपित तथाकथित संविधान सुधार प्रक्रिया की अनुकृति? संविधान गलत है या हमारे जिस नेतृत्व ने इसे गढ़ा वह किसी भ्रम का शिकार बन गया था?
हमारे दुःखों का मूल संविधान में है। जो लोग आजादी के बाद से ही व्यवस्था परिवर्तन की पीड़ा से गुजर रहे हैं, वे इस पुस्तक से निदान पा सकते हैं। वह यह कि भारत का संविधान सन् 1935 के अधिनियम का विस्तार है। सिर्फ दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन इस संविधान में हैं। एक, विभिन्न वर्गों के आरक्षण को हटाया गया। दो, वयस्क मताधिकार दिया गया। प्रो. देवेंद्र स्वरूप की इस पुस्तक से यह समझ सकते हैं कि क्यों आजादी के इतने सालों बाद भी समाज का राज्यतंत्र से मेल नहीं बैठ पाया है? क्यों राज्यतंत्र देशज निष्ठाओं से दूर है? क्यों आमजन की सोच और समझ से उसका नाता नहीं जुड़ पाया? इन्हीं और ऐसे तमाम सवालों के जवाब इस पुस्तक में मिलते हैं। यह राजनीतिक इतिहास की वह पुस्तक है, जो भविष्य के सूर्योदय का भरोसा देती है।
Yaksh Prashnon Ke Uttar by Indresh Kumar
इस पुस्तक में उन प्रश्नों का उत्तर तलाशने की कोशिश की गई है, जो पिछले लगभग आठ सौ साल के इतिहास में से पैदा हुए हैं। ये प्रश्न इस देश में प्रेतात्माओं की तरह घूम रहे हैं। इन प्रश्नों का सही उत्तर न दे पाने के कारण ही देश का विभाजन हुआ और इसी के कारण आज देश में अलगाववादी स्वर उठ रहे हैं। ऐसा नहीं कि भारत इन प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम नहीं है। ऐसे प्रश्न हर युग में उत्पन्न होते रहे हैं और उस काल के ऋषि-मुनियों ने उनका सही उत्तर भी दिया, जिसके कारण समाज में भीतरी समरसता बनी रही; लेकिन वर्तमान युग में जिन पर उत्तर देने का दायित्व आया, उनकी क्षमता को संकुचित राजनैतिक हितों ने प्रभावित किया और वे जानबूझकर या तो इन प्रश्नों का गलत उत्तर देने लगे या फिर गलत दिशा में खड़े होकर उत्तर देने लगे। ऐसे उत्तरों ने भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को धुँधला किया और आमजन को दिग्भ्रमित किया। इस पुस्तक में राजनीति की संकुचित सीमाओं से परे रहकर प्रख्यात समाजधर्मी इंद्रेश कुमार ने इन प्रश्नों से सामना किया है। आशा करनी चाहिए कि इस मंथन और संवाद से जो निकष निकलेगा, वह देश के लिए श्रेयस्कर होगा।
वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों का वस्तुपरक व चिंतनपरक अध्ययन व व्यावहारिक उत्तर देने का सफल प्रयास है यह पुस्तक।
इस पुस्तक में प्रख्यात समाजधर्मी श्री इंद्रेश कुमार द्वारा कश्मीर समस्या को लेकर अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों और विचार गोष्ठियों में जो विचार व्यक्त किए, उनका संकलन है। लगभग दो दशक तक जम्मू, लद्दाख और कश्मीर में रहने के कारण लेखक की सभी वर्गों के लोगों—डोगरों, लद्दाखियों, शिया समाज, कश्मीरी पंडितों, कश्मीरी मुसलमानों, गुज्जरों, बकरवालों से सजीव संवाद रचना हुई। इस कालखंड में पूरा क्षेत्र, विशेषकर कश्मीर घाटी का क्षेत्र पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। अभिव्यक्ति का अवसर मिला। कश्मीर की त्रासदी को उन्होंने दूर से नहीं देखा, बल्कि नज़दीक से अनुभव किया है। इस पूरे प्रकरण में उनकी भूमिका द्रष्टा की नहीं, बल्कि भोक्ता की रही है। आतंकवाद से लड़ते हुए जिन राष्ट्रवादियों ने शहादत दे दी, उसका चलते-चलते मीडिया में कहीं उल्लेख हो गया तो अलग बात है, अन्यथा उन्हें भुला दिया गया। सरकार की दृष्टि में इस क्षेत्र के लोगों की यह लड़ाई है ही अप्रासंगिक!
जम्मू-कश्मीर की विषम-विपरीत परिस्थितियों का तथ्यपरक एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन और विश्लेषण का निकष है यह पुस्तक जो वहाँ की सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर विहंगम दृष्टि देगी।
Ye Jo Hai Zindagi by Oprah Winfrey
मनुष्य के दिल-दिमाग का बारीक अध्ययन कर जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्र बताने और सकारात्मक सोच विकसित करने में दक्ष विश्वप्रसिद्ध व्यक्तित्व ओपरा विनफ्रे की यह पुस्तक पठनीयता से भरपूर है। सालों से उन्होंने सर्वाधिक रेटिंग वाले अपने बहुचर्चित टॉक शो के जरिए इतिहास रचा है, अपना स्वयं का टेलीविजन नेटवर्क शुरू किया है, और देश की पहली अफ्रीकी-अमेरिकी अरबपति बनी हैं। उन्हें हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से मानद उपाधि और प्रेसीडेंशियल मेडल फॉर फ्रीडम से सम्मानित किया जा चुका है। अपने सारे अनुभवों से उन्होंने जीवन के सबक चुने हैं, जो उन्होंने चौदह सालों से ‘ओ-ओपरा मैग्जीन’ के लोकप्रिय स्तंभ ‘वॉट आय नो फॉर श्योर’ में प्रस्तुत किए हैं और जो हर माह पाठक को प्रेरित और आनंदित करते हैं।
अब पहली बार इन वैचारिक रत्नों का पुनर्लेखन, अद्यतन संग्रह करके एक पुस्तक में पेश किया गया है, जिसमें ओपरा विनफे्र ने अपने आंतरिक उद्गार प्रकट किए हैं। प्रसन्नता, लचक, संवाद, आभार, संभावना, विस्मय, स्पष्टता और शक्ति के भावों के रूप में संगठित ये लेख दुनिया की सर्वाधिक असाधारण औरत के दिल और दिमाग की दुर्लभ, सशक्त और आंतरिक झलक प्रस्तुत करते हैं। साथ ही पाठकों को सर्वोत्तम बनने में मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं। ‘ये जो है जिंदगी...’ में ओपरा विनफ्रे निर्भीक, मर्मस्पर्शी, प्रेरक और बार-बार परिहासपूर्ण शब्दों का इस्तेमाल करती हैं, जो सत्य की ऐसी जगमगाहट देते हैं कि पाठक उन्हें बार-बार पढ़ना चाहते हैं।
प्रस्तुत हैं भारत की किसी भी भाषा में जिंदगी का सार बतानेवाले ओपरा विनफ्रे के उद्गार।
Yeh Ram Kaun Hai? by Neerja Madhav
एक तरफ एक विशाल भारतीय जनसमुदाय अयोध्या, काशी और मथुरा के मंदिरों को लेकर भावुक है, दूसरी तरफ सत्ताधारी वोट बटोरने के चक्कर में इन मंदिरों पर हुए बर्बर आक्रमण और ऐतिहासिक सत्य को सत्य कहने में भी हिचकिचा रहे हैं तथा अल्पसंख्यक हितों की रक्षा के नाम पर एक चोट को सहलासहला कर कैंसर में बदल देना चाहते हैं। पड़ोसी देशों में पुनरुद्धार या विकास के नाम पर धड़ाधड़ राम, कृष्ण एवं शिव मंदिरों को ढहाया जा रहा है। शीतला माता मंदिर या ढाकेश्वरी माता के मंदिरों का स्थानांतरण किया गया है। ऐसा नहीं कि ये हमले आज ही हो रहें हैं। दरअसल इन हमलों का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। ईश्वर, अल्लाह और गॉड को एक ही परम सत्ता के भिन्नभिन्न नाम माननेवाला हिंदू अपनी उदारता और विश्वास की व्यापकता के कारण बहुदेववादी भी है, मूर्तिपूजक भी है और साथ ही परम सत्ता की मनोरम अभिव्यक्ति प्रकृति को भी उसी का एक रूप मान पूजता है। यह हिंदू आचारविचार की व्यापकता है। कणकण में व्याप्त एक अव्यक्त सत्ता।... मंत्रों और ऋचाओं की ऊर्जा से संपूरित मंदिर और मंदिर क्षेत्र ध्वस्तीकरण अथवा आक्रमण की बारंबारता के बिंदु बने।’’
—इसी संग्रह से
ललित निबंधों के माध्यम से जनजन के हृदय में बसे राम को देखने, जानने और अनुभव करने का एक सर्वथा अनूठा प्रयोग है यह पुस्तक, जो हर आयु वर्ग के पाठकों को समान रूप से रुचिकर लगेगी।
Yoddha Sannyasi : Vivekanand by Vasant Potdar
योद्धा संन्यासी विवेकानंद—वसंत गोविंद पोतदार
''उठिए, जागिए, मेरे देशबंधुओ! आइए, मेरे पास आइए। सुनिए, आपको एक ज्वलंत संदेश देना है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं कोई अवतार हूँ। ना-ना, मैं अवतार तो नहीं ही हूँ। कोई दार्शनिक अथवा संत भी नहीं हूँ। मैं हूँ, एक अति निर्धन व्यक्ति, इसीलिए सारे सर्वहारा मेरे दोस्त हैं। मित्रो! मैं जो कुछ कह रहा हूँ, उसे ठीक से समझ लीजिए। समझिए, आत्मसात् कीजिए और उसे जनमानस तक पहुँचाइए। घर-घर पहुँचाइए मेरे विचार। मेरे विचार-वृक्ष के बीजों को दुनिया भर में बोइए। तर्क की खुरदुरी झाड़ू से अंधविश्वास के जालों को साफ करने का अर्थ है शिक्षा। संस्कृति और परंपरा, दोनों एकदम भिन्न हैं, इसे स्पष्ट करने का नाम है शिक्षा।’ ’
स्वामी विवेकानंद के बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में उपर्युक्त कथन के बाद यहाँ कुछ अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। हमारे आज के जो सरोकार हैं, जैसे शिक्षा की समस्या, भारतीय संस्कृति का सही रूप, व्यापक समाज-सुधार, महिलाओं का उत्थान, दलित और पिछड़ों की उन्नति, विकास के लिए विज्ञान की आवश्यकता, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, युवकों के दायित्व, आत्मनिर्भरता, भारत का भविष्य आदि-आदि। भारत को अपने पूर्व गौरव को पुन: प्राप्त करने के लिए, समस्याओं के निदान के लिए स्वामीजी के विचारों का अवगाहन करना होगा।
मूल स्रोतों और शोध पर आधारित यह पुस्तक 'योद्धा संन्यासी’ हर आम और खास पाठक के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।
Yog Aur Yogasan by Swami Akshya Atmanand
महर्षि पतंजलि ने एक सूत्र दिया है- ' योगश्चित्त: वृत्ति निरोध: ' । इस सूत्र का अर्थ है-' योग वह है, जो देह और चित्त की खींच-तान के बीच, मानव को अनेक जन्मों तक भी आत्मदर्शन से वंचित रहने से बचाता है । चित्तवृत्तियों का निरोध दमन से नहीं, उसे जानकर उत्पन्न ही न होने देना है । '
' योग और योगासन ' पुस्तक में ' स्वास्थ्य ' की पूर्ण परिभाषा दी गई है । स्वास्थ्य की दासता से मुक्त होकर मानवमात्र को उसका ' स्वामी ' बनने के लिए राजमार्ग प्रदान किया गया है ।
' स्वास्थ्य ' क्या है? ' स्वस्थ ' किसे कहते हैं?
मृत्यु जिसे छीन ले, मृत्यु के बाद जो कुछ हमसे छूट जाए वह सब ' पर ' है, पराया है । मृत्यु भी जिसे न छीन पाए सिर्फ वही ' स्व ' है, अपना है । इस ' स्व ' में जो स्थित है वही ' स्वस्थ ' है ।
कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का वास होता है । यदि शरीर ही स्वस्थ नहीं होगा तो आत्मा का स्वस्थ रहना कहाँ संभव होगा । इस पुस्तक को पढ़कर निश्चय ही मन में ' जीवेम शरद: शतम् ' की भावना जाग्रत होती है ।
प्रस्तुत पुस्तक उनके लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है जो दवाओं से तंग आ चुके हैं और स्वस्थ व सबल शरीर के साथ जीना चाहते हैं ।
Yog Dwara Swastha Jeevan by Bks Iyengar
योग द्वारा स्वस्थ जीवन—बी.के.एस. आयंगर
‘योग’ एक तपस्या है। शरीर को निरोग एवं सशक्त बनाने की एक संपूर्ण विधि है ‘योग’। योग असाध्य रोगों को भी दूर भगाता है। आज संसार भर के लोग योग और इसके चमत्मकारी प्रभावों के प्रति आकर्षित हैं। विश्वप्रसिद्ध योगगुरु बी.के.एस. आयंगार की इस पुस्तक ‘योग द्वारा स्वस्थ जीवन’ में आसन किस प्रकार किए जाएँ, किस प्रकार होनेवाली गलतियों को टाला जा सकता है और अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है, इन बातों को आम लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है।
योग के द्वारा कैसे व्यक्तियों का उपचार किया जाए, इसका त्रुटिहीन अभ्यास करते हुए अधिकाधिक लाभ कैसे प्राप्त किया जाए—इसका सचित्र वर्णन किया गया है।
पुस्तक का उपयोग करना आसान व सरल हो, इस दृष्टि से पुस्तक के अंत में दो परिशिष्ट जोड़े गए हैं। परिशिष्ट 1 में आसन क्रमांक और आसनों के नाम देकर उनका वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया है। परिशिष्ट 2 में किस रोग में किस आसन से लाभ होगा, उनका वर्णन है।
स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखानेवाली सरल-सुबोध भाषा में योग पर एक अनुपम कृति।