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Vishnu Prabhakar Ki Lokpriya Kahaniyan by Vishnu Prabhakar

सन् 1931 में जब विष्णु प्रभाकर 19 वर्ष के थे, उनकी पहली कहानी ‘दिवाली की रात’ लाहौर से निकलनेवाले ‘मिलाप’ पत्र में छपी। उसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ, वह 76 वर्ष सन् 2007 तक निर्बाध चलता रहा। उनके लेखन में विचार नारों की तरह शोरगुल में नहीं बदलता। मनुष्य मन की जटिल व्यवस्था हो या अमानवीय असामाजिक परिस्थितियाँ, विष्णु प्रभाकर उस मनुष्य की चिंता करते हैं, जिसे सताया जा रहा है और फिर भी निरंतर मुक्ति संग्राम में जुटा है। उनकी कथावस्तु में प्रेम, मानवीय संवेदना, पारिवारिक संबंध, अंधविश्वास जैसे विषय मौजूद हैं। विष्णुजी की अधिक रुचि मनुष्य में रही। उन्होंने उसके जीवन के झूठ और पाखंड को देखा, उसके छोटेसेछोटे क्रियाकलाप को बारीकी से परखा, उसके अंतर में चलते द्वंद्व को समझा, अपने दीर्घ अनुभव के साँचे में ढाला और करुणा के अंतर्निहित भावों को शब्द दिए। वे अपने प्रारंभिक त्रासद जीवन के प्रभाव से शायद कभी मुक्त न हो सके। उनका विपुल साहित्य उनके स्वयं के जीवन का ही प्रतिरूप है, जो सरल, सात्त्विक, अकृत्रिम व मानवीय मूल्यों को समर्पित है। मित्र, हमदर्द, सलाहकार, सहभागी और सहयात्री—विष्णु प्रभाकर अनेक रूपों में अपने कथापात्रों के साथ जीते हैं। यही जीना उनकी रचनाओं को रोचक बना देता है।

Vishva Ke Mahan Bhashan by Ed. Sushil Kapoor

विश्व के महान् भाषण—सं. सुशील कपूर “अब हमें पूर्ण संकल्प लेना चाहिए, ताकि शहीदों का बलिदान व्यर्थ न जाए, ताकि इस राष्ट्र में स्वाधीनता का नया जन्म हो, ताकि जनता की सरकार, जनता के द्वारा संचालित सरकार, जनता के निमित्त सरकार इस धरती से विनष्ट न हो जाए।” —अब्राहम लिंकन “मैं बंधन और पराधीनता को बिलकुल आवश्यक नहीं मानता। मेरे मन में हर व्यक्ति के लिए हमेशा से सम्मान रहा है; लेकिन हिंसा और गुटबाजी से मुझे नफरत रही है।” —अल्बर्ट आइंस्टीन “अपने से पूछिए कि आप भारत के लिए क्या कर सकते हैं। भारत को आज का अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश बनाने के लिए जो भी करने की जरूरत है, करिए।” —ए.पी.जे. अब्दुल कलाम “स्व-शासन का अर्थ कौन नहीं जानता? कौन उसे नहीं चाहता? क्या आप यह पसंद करेंगे कि मैं आपके घर में घुसकर आपकी रसोई अपने कब्जे में ले लूँ? अपने घर के मामले निपटाने का मुझे अधिकार होना चाहिए।”—बाल गंगाधर तिलक विश्व के महान् मनीषियों, विचारकों, राजनेताओं व युग-प्रवर्तकों की ओजस्वी वाणी हमारे अंतर्मन को छू जाती है। अब्राहम लिंकन, अल्बर्ट आइंस्टीन, गैलीलियो गैलिली, जॉन एफ. केनेडी, नेल्सन मंडेला, बराक ओबामा, मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे विश्व-प्रसिद्ध विदेशियों और महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, बाल गंगाधर तिलक, सुभाषचंद्र बोस, ए.पी.जे अब्दुल कलाम जैसी भारतीय विभूतियों के विचारों में एक समानता है—अपने राष्ट्र, अपने समाज के प्रति चिंता, उनके उत्थान के लिए चिंता। समाज को दिशा देनेवाले विचारोत्तेजक भाषणों एवं विचारों का प्रेरक संकलन।

Vishwa Dharohar Mahakumbh by Ramesh Pokhariyal ‘Nishank’

भारतीयों के प्रत्येक पर्व और त्योहार की नींव किसी ठोस वैज्ञानिक और तार्किक आधार पर रखी गई है। इन सभी पर्वों और त्योहारों की जड़ में कुछ-न-कुछ वैज्ञानिक रहस्य अवश्य होता है, जो आत्मशुद्धि और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक होता है। मनोविज्ञान के पारखी हमारे ऋषि-मुनियों ने तीर्थों-पर्वों की ऐसी व्यवस्था बनाई कि उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक देश के कोने-कोेने से लोग इन तीर्थ-पर्वों में आकर अपनी संस्कृति का साक्षात्कार करने के साथ-साथ शांति, सद्भाव और बंधुत्व के एक सूत्र में बँध सकें। कुंभ पर्व मानव जीवन में आलोक और अंतःचेतना का संचार करनेवाला एक ऐसा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है, जो राष्ट्रचेतना और अखंडता के साथ ही आध्यात्मिक चेतना का आधार स्तंभ भी है। मानव और मानवता के एकात्म हो जाने का महापर्व है महाकुंभ। विश्व कल्याण और मानव हितार्थ गोष्ठियों और कार्यशाला के रूप में शुरू हुआ यह क्रम वैदिक काल के पूर्व से चला आ रहा है, वह भी बिना किसी आमंत्रण-निमंत्रण या बिना किसी लोभ-लालच के। महाकुंभ का माहात्म्य और इसके सांस्कृतिक गौरव का बोध करानेवाली पठनीय पुस्तक।

Vishwa Hindu Parishad Ke Shilpi : Dada Saheb Apte by Dr. Kuldeep Chand Agnihotri

दादा साहेब आपटे के जीवन के बारे में किसी भी भाषा में लिखी गई यह पहली पुस्तक है। दादा साहेब आपटे अपने समय के उद्भट विद्वान् थे। उनकी पंद्रह से ज्यादा पुस्तकें अंग्रेजी व मराठी में प्रकाशित हुई थीं। लोकमान्य तिलक के मराठी दैनिक में वे नियमित लिखते थे। तमिलनाडु में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे। भारतीय भाषाओं की पहली संवाद समिति ‘हिंदुस्थान समाचार’ की स्थापना उन्होंने की थी। ‘विश्व हिंदू परिषद्’ के वे संस्थापक अध्यक्ष थे। वेद की स्थापना करने के लिए वे विश्व के अनेक देशों में गए। लेकिन अब तक उनकी कोई समग्र जीवनगाथा उपलब्ध नहीं थी। यह पुस्तक इसी कमी को पूरा करने का विनम्र प्रयास है। ‘हिंदुस्थान समाचार’ एवं विश्व हिंदू परिषद् की स्थापना की पृष्ठभूमि और निर्धारित दिशा का गंभीर आकलन पहली बार इस पुस्तक में हुआ है।

Vishwa Ka Itihas by Yogendra Prasad

इतिहास अतीत की घटनाओं का तथ्यात्मक वर्णन मात्र नहीं है, अपितु यह मानव केसुंदर भविष्य के निर्माण में भी अत्यंत सहायक है। इस प्रकार इतिहास हमारा पथ-प्रदर्शक है। ‘विश्व का इतिहास’ नामक इस पुस्तक में मानव सभ्यता केआरंभ से लेकर वर्तमान तक का विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। जैसा कि हम जानते हैं, इतिहास एक वृहद् विषय है तथा इसका आंकलन विभिन्न पक्षों, यथा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक इत्यादि को दृष्टिगत रखकर किया जाता है। जब हम विश्व के इतिहास की बात करते हैं तो इसे लिखना एक चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि इसमें घटनाओं की महत्ता को देखते हुए उनका चयन करना होता है। प्रस्तुत पुस्तक में मैंने विश्व की समस्त प्रमुख सभ्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है। इसमें विश्व के इतिहास की प्रमुख घटनाओं और स्थितियों को विवेचनात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है तथा तथ्यों की प्रामाणिकता के साथ-साथ विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण पर विशेष बल दिया गया है।

Vishwa Ke 20 Mahan Samaj Sudharak by Gopi Krishna Kunwar

समाज निरंतर परिवर्तनशील रहता है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि बाहर से कोई समुदाय या देश कितना स्थिर दिखता है, इसके भीतर कुछ निश्चित बल इसे हमेशा एक या दूसरी दिशा में धकेलते हैं, कभी-कभी एक ही समय में कई विभिन्न दिशाओं में और परिवर्तनों के इन अंतर्निहित बलों के कारण विचार, सोचने का तरीका और सामाजिक समूहों में जीने का एक निश्चित अंदाज समाप्त हो जाता है और दूसरा उसका स्थान ले लेता है। सामाजिक सुधार उन परिवर्तनों का उल्लेख करते हैं, जो उन समूहों की स्थिति को सुधारने के लिए लाए जाते हैं, जो मुख्यधारा की कुछ संस्थाओं, जैसे पितृतंत्र, तानाशाही या धर्म द्वारा दमित हैं। यह पुस्तक आधुनिक समाज के महानतम समाज-सुधारकों में से बीस के बारे में बताती है। इस पुस्तक को उन व्यक्तित्वों पर केंद्रित रखा गया है, जिन्होंने समाज की यथास्थिति में परिवर्तन लाने के प्रयास किए और सबसे महत्त्वपूर्ण है कि जिनके प्रयासों के कारण नए कानून बने या प्रचलित कानूनों में संशोधन हुए। यही कारण है कि मदर टेरेसा जैसे व्यक्तित्व सीधे तौर पर इस पुस्तक के क्षेत्र में नहीं आते हैं, जिनके कार्य मुख्यतः मानवतावादी थे। जिन सामाजिक सुधारकों पर इस पुस्तक में चर्चा की गई है, उनमें उन्नीसवीं सदी के मध्य के विचारक और साहसिक व्यक्तित्व जैसे राजा राममोहन राय, विद्यासागर, एलिजाबेथ कैडी स्टैनटोन और फ्लोरेंस नाइटिंगेल से लेकर अगली सदी के सामाजिक प्रचारक जैसे रॉबर्ट ओवन और फ्लोरेंस केली सम्मिलित हैं।

Vishwa Ke Pracheen Vaigyanik by Vinod Kumar Mishra

आप कल्पना कीजिए कि यदि पहिए का आविष्कार न हुआ होता तो क्या मानव विकास कर पाता! कंप्यूटर के बिना क्या आज के मानव जीवन की कल्पना की जा सकती है। अस्तु, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिस एक विधा ने मानव जीवन को एक नई दिशा और एक नया मार्ग दिखाया है, वह है विज्ञान। चिकित्सा, खगोल विज्ञान, कंप्यूटर, भू-विज्ञान आदि क्षेत्रों में विज्ञान की नई-नई खोजों, आविष्कारों और नवाचार ने पृथ्वी का स्वरूप ही बदल दिया। इन आविष्कारों और खोजों को करनेवाले महान् वैज्ञानिकों ने अप्रतिम योग्यता और प्रतिभा का परिचय देकर गहन अध्ययन, अनुसंधान और शोध करके नाना प्रकार की वस्तुएँ, तकनीक, सूत्र और प्रमेय ईजाद किए, जो कालांतर में मानव सभ्यता के विकास की नींव का पत्थर साबित हुए। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे ही विश्व विख्यात वैज्ञानिकों के व्यक्तित्व व कृतित्व का संक्षिप्त लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जा रहा है, जिन्होंने इस संसार को नए मापदंड दिए। इसमें उस समय की राजनीतिक परिस्थितियाँ, नई-नई खोजों के लिए उत्सुकता तथा उन वैज्ञानिकों के समक्ष आई कठिनाइयों का दिग्दर्शन है। अत्यंत पठनीय एवं प्रेरक वैज्ञानिक जीवनियों का संकलन।

Vishwa Ki 50 Shreshtha Kahaniyan by Ramesh Yayawar

लिओ टाल्सटाय, ओ’ हेनरी, एच.जी. वेल्स, मोपासाँ, अनतोन चेखव, साकी, ऑसकर वाइल्ड, एडमंड बर्क, हैंस क्रिश्चियन एंडरसन, मार्क ट्वेन की पठनीय कहानियों का संकलन, जो मानव जीवन के विविध रंगों का इंद्रधनुष प्रस्तुत करती हैं। इन कहानियों ने पाठकों के मन को छुआ, स्पंदित किया और चेतना जाग्रत् की। कालजयी कहानियों का अद्भुत संकलन।

Vishwa Ki Mahan Krantiyan by Sadanand Rai

क्रांति का अर्थ उस अवस्था को समाप्त करके, जिसमें रहना ही असहनीय होता जा रहा हो, नई व्यवस्था की स्थापना करना था। अतः जहाँ-जहाँ भी विश्व में क्रांतियाँ हुईं, वहाँ देशकाल और स्थितियों के अनुसार ही इनका सूत्रपात हुआ। दिन-प्रतिदिन बढ़ते साधनों ने क्रांति को नया रूप दे दिया था। हिंसक और अहिंसक दोनों ही रूपों ने इस क्रांति विचारधारा को प्रश्रय दिया और 17वीं शताब्दी के अंत में विश्व ने इस क्रांति से परिचय किया, जो आज 21वीं शताब्दी के घोर आधुनिक युग में भी अपनी आवश्यकता एवं प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। विश्व का यह आधुनिक और विहंगम स्वरूप इन्हीं क्रांतियों की देन है। तानाशाहों, साम्राज्यवादियों, निरंकुश और अयोग्य शासकों के चंगुल से निकलकर जनता ने आधुनिकता की ओर कदम रखे तो इन्हीं क्रांतियों के कारण, जिनमें प्राणों की आहुति दी गई और शत्रुओं को सबक भी सिखाया गया। इस पुस्तक में विश्व की उन महान् क्रांतियों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने विश्व का भविष्य तय कर दिया; जैसे— औद्योगिक क्रांति : क्रांतियों का आधार, वैज्ञानिक क्रांति, इंग्लैंड की महान् क्रांति, फ्रांस की गौरवपूर्ण क्रांति, इटली की संघर्ष-क्रांति, भारत छोड़ो आंदोलन, जर्मनी की एकीकरण क्रांति, तिब्बत की धार्मिक क्रांति, जापान की तकनीकी क्रांति।

Vishwa Prasiddh Kahaniyan -I by Suresh Kant

पुराने जमाने में रैंपसिनिटस नाम का एक राजा हुआ है। उसके पास बहुत खजाना था। राजा ने अपने खजाने की सुरक्षा के लिए पत्थर की एक ऐसी बड़ी कोठरी बनवाने की सोची, जिसका एक सिरा उसके महल की बाहरी दीवार का एक हिस्सा हो। कारीगर ने कोठरी बनानी शुरू कर दी। महल का बाहरी दीवारवाला हिस्सा बनाते समय उसके दिमाग में राजा का खजाना लूटने की बात आईं और उसने उस दीवार में एक पत्थर इस तरह जमा दिया कि उसे वहाँ से आसानी से निकाला जा सके । कोठरी कुछ दिनों में बनकर तैयार हो गई। राजा ने अपना खजाना वहाँ रखवा दिया। समय बीतता गया। कुछ समय बादवह कारीगर बीमार पड़ गया। अपनी मृत्यु निकट देखकर उसने अपने दोनों बेटों को अपने पास बुलाया और उन्हें राजा के खजानेवाली कोठरी के पत्थर की बात बताई। उसने कहा, मैंने तुम्हारे लिए ही यह सब किया है। राजा के खजाने को लूटकर तुम सारी जिंदगी मजे में बिता सकोगे।’’ ‘इसी पुस्तक से’

Vishwa Prasiddha Kahaniyan – Vol. Ii by Suresh Kant

रूस का एक छोटा सा कस्बा है—व्लादिमिर। उस कस्बे में एक व्यापारी रहता था, जिसका नाम था—इवान दमित्री एक्सीनोव। एक दिन व्यापार के सिलसिले में उसे निझनी के मेले में जाना था। वह अपनी घोड़ागाड़ी में बैठकर मेले के लिए निकल पड़ा। रास्ते में एक्सीनेव को एक अन्य व्यापारी मिला, जिसे वह पहले से जानता था। रात हुई तो दोनों रात बिताने के लिए एक सराय में ठहर गए। उनके कमरे पास-पास थे। उन्होंने इकट्ठे बैठकर चाय पी और फिर सोने के लिए अपने-अपने कमरे में चले गए। —इसी पुस्तक से

Vishwa Prasiddha Kahaniyan (Vol. Iii) by Suresh Kant

एक पुलिस अधिकारी बड़ी फुरती से सड़क पर गश्त लगा रहा था। रात के अभी मुश्किल से दस बजे थे, लेकिन हलकी-हलकी बारिश तथा ठंडी हवा के कारण सड़क पर बहुत कम आदमी नजर आ रहे थे। सड़क के एक छोर पर एक गोदाम था। ‘‘उस रात हमने निश्चय किया था कि अगली सुबह बीस वर्षों के लिए हम उएक-दूसरे से अलग हो जाएँगे। इन वर्षों में हम जीवन में कुछ बनने के लिए संघर्ष करेंगे और जो कुछ बन पाएँगे, बनेंगे। ठीक बीस वर्ष बाद इसी समय हम फिर यहीं मिलेंगे, चाहे इसके लिए कितनी ही दूर से क्यों न आना पडे़ तथा हमारी कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो।’’ ‘इसी पुस्तक से’

Vishwa Prasiddha Kahaniyan (Vol. Iv) by Suresh Kant

एक था राजा। वह कपड़ों का बहुत शैकीन था। कपड़ों के चक्कर में राजकाज तक में ध्यान नहीं देता था, हालाँकि उसके पास तरह-तरह के कपड़ों का ढेर लगा हुआ था। वह देश-विदेश के प्रसिद्ध दर्जियों को बुलवाकर उनसे कपड़ों के डिजाइनों के बारे में बातें करता रहता। यदि कभी कोई व्यक्ति आकर उसके कपड़ों की प्रशंसा कर देता तो वह उसे खूब पुरस्कार देता। एक बार दूसरे राज्य के दो ठगों को राजा के इस शौक का पता लगा। उन्होंने राजा को ठगने और सबक सिखाने की ठानी। उन्होंने राजा को संदेश भेजा कि वे सोने और हीरे के धागे से कपड़ा तैयार कर उसके लिए एक ऐसी सुंदर पोशाक बना सकते हैं, जिसके बारे में कभी किसी ने सपने में भी न सोचा होगा। किंतु उनकी शर्त थी कि उस अद्भूत पोशाक को कोई मूर्ख या अपने पद के अयोग्य व्यक्ति नहीं देख सकेगा। ‘इसी पुस्तक से’

Vishwa Shanti Guru Dalai Lama by Mayank Chhaya

विश्‍व शांति गुरु दलाई लामा—मयंक छाया महान् आध्यात्मिक धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा का जीवन जितना संघर्षपूर्ण रहा है उतना ही प्रेरक और पथ-प्रदर्शक भी रहा। दो वर्ष की आयु में उन्हें तेरहवें दलाई लामा के अवतार के रूप में स्वीकार किया गया और सन् 1940 में उन्हें विधिवत् अपने पूर्ववर्ती दलाई लामा का उत्तराधिकारी माना गया। इस दीर्घकालीन जीवन में दलाई लामा ने निरंतर सैद्धांतिक दृढ़ता और अहिंसा का परिचय दिया है। विश्‍व के ऐसे महान् दिव्य पुरुष के बारे में जानने की जिज्ञासा हर व्यक्‍ति के मन में रहती है। सन् 1997 में भारतीय पत्रकार मयंक छाया को परम पावन दलाई लामा ने अपने जीवन और काल के बारे में लिखने के लिए अधिकृत किया। परम पावन दलाई लामा के भरपूर सहयोग से लिखी गई इस आकर्षक और अद्यतन जीवनीपरक पुस्तक में व्यक्‍तिगत वर्णन से बढ़कर काफी कुछ है। उन्होंने तिब्बत और बौद्ध परंपरा के बारे में लिखा, जिसमें दलाई लामा का उदय हुआ। उन विचारों के बारे में बताया, जिसमें उनकी मान्यताएँ, राजनीति और आदर्शों ने आकार ग्रहण किया। लेखक ने इस शोधपूर्ण जीवनी में दलाई लामा के निर्वासित जीवन का चित्रण किया और उन विभिन्न भूमिकाओं के बारे में बताया है, जो उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए निभाईं। चीन और तिब्बत के अत्यंत जटिल विवाद पर उन्होंने प्रकाश डाला और चीनी कब्जे के प्रति दलाई लामा के अहिंसक रवैए से कुंठित तिब्बती युवाओं के बढ़ते असंतोष के बारे में अंदरूनी जानकारी दी है। दलाई लामा के दर्शन, उनके कार्य और संपूर्ण जीवन पर विहंगम दृष्‍टि डालती प्रेरणाप्रद जीवनी।

Vishwa Vandya Vivekananda by Triloki Nath Sinha

विश्‍व-वंद्य स्वामी विवेकानंद स्वामी विवेकानंदजी ने विश्‍व धर्म संसद् में अपने उद‍्बोधन से प्रतिनिधियों सहित सभी श्रोताओं की हृद्तंत्री को ऐसा झनझनाया कि वहाँ 17 दिन की सभा में आयोजकों को उन्हें 5 दिन बोलने का अवसर देना पड़ा। भारत के उस अंधकारपूर्ण युग में स्वामी विवेकानंदजी ने भारत की प्रतिष्‍ठा बढ़ाने व सम्मान दिलाने का अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने इस संपूर्ण भूमंडल में भारत की श्रेष्‍ठता की पहचान सर्वत्र करा दी। उन्होंने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी के दिव्य संदेश को विश्‍व में प्रचारित करने के साथ ही ‘नर सेवा—नारायण सेवा’ का एक अभिनव सूत्र धर्मप्रिय लोगों व संन्यासियों को देकर श्रीरामकृष्ण आश्रम की स्थापना करके उस सूत्र को व्यवहार में लाने का माध्यम प्रस्तुत कर दिया। स्वामी विवेकानंदजी के जीवन तथा विचारों से संबंधित विपुल साहित्य प्रकाशित हो चुका है, तथापि उनका विस्तृत समस्त विवरण इस छोटी सी पुस्तक के रूप में भारत के समाज-बंधुओं, विशेषकर नवयुवकों एवं विद्यार्थियों के लिए सुलभ कराने का प्रयत्‍न किया गया है। उनके विचारों को अधिकाधिक उन्हीं के शब्दों में उद‍्धृत करने का भरसक प्रयास किया गया है, जो उनकी उपलब्ध जीवनियों, पुस्तकालयों, पत्रिकाओं एवं विद्वानों के उद्धरणों से प्रयत्‍नपूर्वक ढूँढ़कर निकाले गए हैं। विश्‍व के जनमानस को उद्वेलित करनेवाले तथा दरिद्र नारायण की सेवा का मार्ग प्रशस्त करनेवाले स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायी जीवनी।

Vishwa Vyakti Kosh by Mukesh ‘Nadaan’

कोई भी व्यक्ति महान् तभी कहलाता है, जब वह कोई महान् कार्य करता है। विश्व में ऐसे अनेक व्यक्तियों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपने महान् कार्यों से अपने समाज का ही नहीं, वरन् अपने देश और संपूर्ण मानव जाति का उद्धार किया। मदर टेरेसा, महात्मा गांधी, अकबर, अमिताभ, सिकंदर, शेक्सपियर आदि अनेक ऐसे ऐसी अनेक तेजस्वी विभूतियों ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया तथा अपने जनहित के कार्यों से महान् बनकर इतिहास के पन्नों पर अमर हो गए और कहलाए—‘विश्वप्रसिद्ध महान् व्यक्ति’। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे ही अनेक विश्वप्रसिद्ध महान् व्यक्तियों का संक्षिप्त जीवन-परिचय प्रस्तुत किया गया है, ताकि मानवता के विकास में उनके उल्लेखनीय योगदान को रेखांकित किया जा सके। विद्यार्थियों, शिक्षकों, शिक्षण-संस्थाओं एवं पुस्तकालयों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर नामों के अकारादि क्रम में प्रस्तुत इस पुस्तक को उपयोगी एवं सार्थक बनाने का हरसंभव प्रयास किया गया है।

Vishwamanav Rabindranath Tagore by Narendra Jadhav

आलौकिक प्रतिभासंपन्न, साक्षात् प्रतिभासूर्य, भारतमाता के एक महान् सुपुत्र रवींद्रनाथ टैगोर। साहित्य, संगीत, कला— इन सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान देनेवाले गुरुदेव टैगोर सर्वार्थों में युगनिर्माता थे। आज के भूमंडलीकरण के युग में कई दशक पहले पूर्वपश्चिम संस्कृतियों को मिलाकर दुनिया में एक नई अक्षय संस्कृति निर्माण होने का सपना देखनेवाले द्रष्टा एवं विश्वमानव! रवींद्रनाथ की लोकोत्तर प्रतिभा, उनकी बहुश्रुतता, संवेदनशीलता, उनके अनुभवों की समृद्धि और उन अनुभवों को साहित्य, संगीत, कला के माध्यम से व्यक्त करने की असामान्य क्षमता रखनेवाले गुरुदेव वंदनीय हैं, अभिनंदनीय हैं। रवींद्रसाहित्य और रवींद्रसंगीत प्रभावशाली तथा लुभावने हैं। रवींद्रनाथ का साहित्य एक बार पढ़ा तो फिर भूल नहीं सकते। वह आपके मन में बारबार गूँजता रहता है। रवींद्रनाथ का पूरा जीवन काव्यसंगीत का, शब्दसुरों का, कलाओं का महोत्सव है, आनंदोत्सव है। वैश्वीकरण के दौर में पलीबढ़ी नई पीढ़ी को रवींद्रनाथ का परिचय मिले तो कैसे? इस उपन्यास में युगनिर्माता विश्वमानव रवींद्रनाथ टैगोर अलौकिक साहित्य रचना का, उनके सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के महान् कार्यों का अधिक परिपूर्ण ढंग से अध्ययन करने का मार्ग खुलेगा और पाठक ‘रवींद्र रंग’ में रँग जाएँगे।

Vishwambharnath Sharma Kaushik Ki Lokpriya Kahaniyan by Vishwambharnath Sharma Kaushik

कथा सम्राट् प्रेमचंद के समकालीन कथाकार विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ की सवा सौवीं जयंती पर साहित्य अकादेमी ने राष्ट्रीय संगोष्ठी कर उन्हें याद किया तो अच्छा लगा, क्योंकि सन् 1991 में जब उनकी जन्मशती पड़ी तो देश में कहीं भी कोई आयोजन नहीं हुआ—न तो हरियाणा में, जहाँ वे जनमे, न ही उत्तर प्रदेश में, जहाँ आखिरी साँस ली, जबकि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के सर्जक-संपादक रहे। चाहे कहानी हो, उपन्यास, हास्य-व्यंग्य लेखन या ‘हिंदी मनोरंजन’ पत्रिका का संपादन, कौशिकजी हर जगह छाप छोड़ते रहे। चाहे स्त्री की पीड़ा का चित्रण हो, संयुक्त परिवार की समस्या, हिंदू-मुसलिम मामला या विश्वयुद्ध, कौशिकजी की कलम हर जगह बेमिसाल रही। उनकी कृतियों में विधागत वैविध्य तो है ही, उन्होंने प्रयोग भी खूब किए, जबकि उनके समय के समकालीन लेखक प्रयोग करने से बचते रहे। सामाजिक सरोकारों और मानव के सूक्ष्म मनोभावों को कथारस में भिगोकर लिखनेवाले कथाकारों में विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का स्थान सर्वोपरि है। उन्होंने हिंदी कहानी को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस काल में हिंदी लेखन का प्रचलन कम था। लोग प्रायः उर्दू या अंग्रेजी में लिखते थे। उन्होंने तब हिंदी में लिखकर प्रशंसनीय काम किया। उनसे पहले जयशंकर प्रसाद और जी.पी. श्रीवास्तव हिंदी में लिख रहे। गुलेरी और प्रेमचंद उनके बाद आए। प्रेमचंद की तरह विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ ने भी तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। उन्हीं में से चुनी हुई उनकी लोकप्रिय कहानियाँ इस संग्रह में प्रस्तुत हैं।

Vishwaprasiddha Lokpriya Kahaniyan by Shri Tilak

यों तो कथावाचन-प्रवणता भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है, परंतु यथार्थपरक पाश्चात्य कथाशिल्प का गहन प्रभाव आधुनिक भारतीय साहित्य पर पड़ा है। एक ओर जहाँ कथा सरित्सागर, पंचतंत्र और जातक-कथाओं की परंपरा धरोहर में मिली है, वहीं अरबी-फारसी किस्सागोई के भी हम मुरीद हुए हैं। अंग्रेजी, रूसी और कुछ अन्य यूरोपियन भाषाओं के समाजोन्मुख यथार्थवाद का अनुसरण भी भारतीय भाषाओं के कथा-साहित्य में हुआ है। दुनिया के जाने-माने कथाकारों (मास्टर्स) की विश्वविश्रुत कहानियों को चुनकर वरिष्ठ साहित्य-मर्मज्ञ श्री तिलक ने उन्हें सहज-सरल और आम बोलचाल की भाषा में इस संकलन में प्रस्तुत किया है। विश्व वाङ्मय के बारह श्रेष्ठ कथा-लेखकों की प्रतिनिधि रचनाओं के इस नायाब चयन में लियो टालस्टॉय, एंटन चेखव, पुश्किन, बाल्जक, मोपांसा, जॉन कोलियर और ओ. हेनरी आदि दिग्गज किस्सागो अपनी अनोखी विशिष्टताओं, विलक्षण शिल्प और मनमोहक शैली के साथ हिंदी के पाठकों के समक्ष उपस्थित हैं।

Vishwaprasiddha Vaigyanik Mahilayen by Preeti Shrivastava

विश्‍व की प्रसिद्ध वैज्ञानिक महिलाएँ—प्रीति श्रीवास्तव इस पुस्तक के माध्यम से वैज्ञानिक चेतना का संचार हो सके तथा आज के विज्ञान के छात्र-छात्राएँ एवं भावी वैज्ञानिक, इसमें वर्णित महिला वैज्ञानिकों की अदम्य लगन से सीख ले सकेंगे कि धनाभाव अथवा कठिनाइयाँ भी दृढ़ विश्‍वासी की सफलता में बाधक नहीं हो सकतीं। इस विश्‍वास के साथ यह पुस्तक वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण रखने वाले प्रत्येक भारतीय को समर्पित है। नि:संदेह सारी महिला वैज्ञानिकों को संकलित करना दुष्कर कार्य था, फिर भी आदिकाल से अब तक के समय-चक्र में से चुनिंदा महिला वैज्ञानिकों का प्रेरणादायी परिचय सम्मिलित किया गया है। भारतीय महिला वैज्ञानिकों में डॉ. कमला सोहानी, प्रोफेसर जानकी अम्मल, डॉ. मंजू शर्मा समेत सैकड़ों महिलाएँ अनेक वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों में, देश-विदेश में कार्यरत रही हैं तथा आज भी अनेक वैज्ञानिक महिलाएँ ख्याति अर्जित कर रही हैं। कर्मशील युवक-युवतियों को कुछ कर दिखाने की प्रेरणा देनेवाली एक व्यावहारिक पुस्तक।

Vishwas Ka Jadu by Joseph Murphy

यह है वह नियम—‘मैं वह हूँ जैसा मैं अपने विषय में महसूस करता हूँ।’ ‘मैं’ की भावना को हर दिन इस कथन के साथ बदलने का अभ्यास करें—‘मैं आत्मा हूँ। मैं ईश्वर रूपी आत्मा के रूप में सोचता, महसूस करता, और जीता हूँ।’ (आपके भीतर का दूसरा मैं प्रजाति मन के रूप में सोचता, महसूस करता और कार्य करता है।) जब आप ऐसा लगातार करते हैं, तब आप स्वयं को ईश्वर के साथ एकाकार महसूस करते हैं। जिस प्रकार सूर्य धरती को अंधकार और निराशा से मुक्ति दिलाता है, उसी प्रकार आपके भीतर ईश्वर की उपस्थिति का अहसास आपके अंदर के उस व्यक्ति को बाहर लाएगा, जैसा आप बनना चाहते हैं—आनंदमय, उज्ज्वल, शांतिपूर्ण, संपन्न और सफल व्यक्ति, जिसका विवेक परमात्मा से प्रकाशित है। अपने आत्मविश्वास, जिजीविषा और स्वप्रेरणा को जाग्रत् करनेवाली पठनीय प्रेरक पुस्तक।

Vivek Ki Seema by N K Singh

विद्वान् लेखक एन.के. सिंह की पुस्तक ‘विवेक की सीमा’ अतीत और वर्तमान के बदलाव की राजनीति पर एक गंभीर टिप्पणी है। इसमें साक्ष्यों, उपाख्यानों और प्रतीकों के द्वारा दो बातों की व्याख्या की गई है—पहली, समूह या राष्ट्र तर्क के अनुसार नहीं चलते और दूसरी, हमें कभी-कभी अतर्कसंगत भी होना चाहिए। पुस्तक में सुधार की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का विश्लेषण तो किया ही गया है, साथ ही यह भी बताया गया है कि हमें अनुकंपाशील, भावप्रवण, रचनात्मक, आशान्वित, परहितवादी और कुछ मामलों में तर्क-विरुद्ध होना चाहिए। तभी हम परिवर्तन की राजनीति में जान फूँक सकते हैं, वरना परिवर्तन की राजनीति हितों का समझौता बनकर रह जाएगी। भारत को आज इसी रास्ते पर चलने की जरूरत है। एक दशक से भी अधिक समय पहले उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी। तब से देश ने काफी प्रगति की है, लेकिन रफ्तार सुस्त रही है। ‘सुधार के दिन’ अतीत बनते जा रहे हैं। अत: परिवर्तन की जरूरत बढ़ गई है। भारत अब भी गौरवशाली है, अतुल्य है; लेकिन इसमें एक ऐसा नैराश्य और अवसाद दिख रहा है, जो पहले कभी नहीं देखा गया। इसके कवच में पहले से अधिक दरारें दिखने लगी हैं। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहने के कारण श्री सिंह को भारत की नीति-निर्माण एवं नीति-कार्यान्वयन प्रक्रियाओं के विविध पहलुओं को करीब से देखने का दुर्लभ मौका मिला है। उसी के आधार पर इस चिंतनपरक पुस्तक में उन्होंने भारत के सुधारवाद के रास्तों का विश्लेषण किया है। लेखक ने अपने लोकप्रिय लेखों में आधारभूत ढाँचे को सुधारने, वित्तीय क्षेत्र को खोलने, केंद्र-राज्य संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाने, कीमतों को विनियमित करने, सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत के प्रति बदलते रवैए का विश्लेषण किया है, केवल विश्लेषण ही नहीं, बल्कि समालोचना और व्याख्या भी की है। पुस्तक में उठाए गए मुद्दे भारत के आर्थिक विकास के संदर्भ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

Vivek-Choodamani by Dr. Mridul Kirti

‘ब्रह्म सत्यं’ जगन्मिथ्येत्येवंरूपो विनिश्र्चयः, सोअयं नित्यानित्यवस्तुविवेकः समुदाहतः। —20 काव्यानुवाद—चौपाई छंद में ब्रह्म सत्य और जगत है मिथ्या। यहि दृढ़ अटल सत्य है तथ्या॥ अथ निश्चय दृढ़ अविचल एका। नित्यानित्यं वस्तु विवेका॥ आत्म-अनात्म विवेक, नित्य-अनित्य विवेक, सत्य-असत्य विवेक सारा ज्ञान द्वैतात्मक है—विलोम की स्थिति के बिना कैसे दूसरे पक्ष को जाना जा सकता है। संसार, शरीर और अनात्म विषयों में उलझे मन यह भूल जाते हैं कि यथार्थ साधना अंतःकरण में संपन्न होती है। आत्मा नित्य है, अतः इसका कोई मूल तत्त्व या उपादान कारण नहीं है, आत्मा को आत्म-तत्त्व से ही जान पाना संभव है। परम तत्त्व का अनुसंधान, ब्रह्म विषयक ज्ञान, उस असीम को ससीम से जान पाना संभव नहीं। अंतर्वर्ती अंतश्चेतना का जागरण करते हुए, जीव-जगत्-जन्म में अनावश्यक आसक्ति के प्रति सजग रहते हुए, सर्वत्र शुद्ध भगवद्-दृष्टि पाकर सर्वथा जीवन्मुक्त अवस्था से कैवल्य पाना ही सर्वोत्तम सिद्धि है, जिसका ज्ञान और प्राप्ति ही ‘विवेक-चूड़ामणि’ का कथ्य विषय है।

Vivekanand Aur Rashtravad by Major (Dr.) Parshuram Gupt

स्वामी विवेकानंद के जन्म को डेढ़ सदी बीत चुकी है। लेकिन आज भी उनके संदेश युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। संपूर्ण राष्‍ट्र के भविष्य की दिशा तय करने में भी उनके विचार निर्णायक भूमिका का निर्वहण करने की क्षमता रखते हैं। आज वेदांत-दर्शन को विज्ञान की मान्यता मिलने लगी है, जिससे स्वामीजी के विचार और भी प्रासंगिक हो गए हैं। स्वामीजी ने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था कि निराशा, कमजोरी, भय, आलस्य तथा ईर्ष्या युवाओं के सबसे बड़े शत्रु हैं। उन्होंने युवाओं को जीवन में लक्ष्य निर्धारण करने के लिए स्पष्‍ट संदेश दिया और कहा कि तुम सदैव सत्य का पालन करो, विजय तुम्हारी होगी। आनेवाली शताब्दियाँ तुम्हारी बाट जोह रही हैं। उन्होंने कहा था कि हमें कुछ ऐसे युवा चाहिए, जो देश की खातिर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हों। ऐसे युवाओं के माध्यम से वे देश ही नहीं, विश्‍व को भी संस्कारित करना चाह रहे थे। स्वामीजी प्रखर राष्‍ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि राष्‍ट्र के प्रति गौरवबोध से ही राष्‍ट्र का कल्याण होगा। हिंदू संस्कृति, समाजसेवा, चरित्र-निर्माण, देशभक्‍ति, शिक्षा, व्यक्‍तित्व तथा नेतृत्व इत्यादि के विषय में स्वामीजी के विचार आज अधिक प्रासंगिक हैं। स्वामीजी के संपूर्ण मानवता और राष्‍ट्र को समर्पित प्रेरणाप्रद जीवन का अनुपम वर्णन है—राष्‍ट्ररक्षा, राष्‍ट्रगौरव एवं राष्‍ट्राभिमान का पाठ पढ़ानेवाली, राष्‍ट्रवाद का अलख जगानेवाली इस अत्यंत जानकारीपरक पुस्तक में।

Vivekanand Ke Sapano Ka Bharat by Bajrang Lal Gupta & Laxminarayan Bhala

स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत गुरुभाइयों में सम्मानपूर्वक ‘स्वामीजी’ संबोधन प्राप्‍त करनेवाले नरेंद्रनाथ दत्त ने ऊहापोह की स्थिति में मठ छोड़कर भारत-भ्रमण करने का मन बनाया। अपने गुरुभाइयों को भी स्पष्‍ट निर्देश दिया कि अपना झोला उठाकर भारत का मानचित्र अपने साथ लो और भारत-भ्रमण के लिए निकल पड़ो। भारत को जानना एवं भारतवासियों को भारत की पहचान करा देना, यही हमारा प्रथम कार्य है। स्वामीजी ने धीर-गंभीर होकर कहा कि योगी बनना चाहते हो तो पहले उपयोगी बनो, भारतमाता के दुःख व कष्‍ट को समझो। उसे दूर करने के लिए अपने आपको उपयोगी बनाओ, तभी तो योगी बन पाओगे। आज की वर्तमान पीढ़ी भी वर्ष 2020 तक विश्‍व को नेतृत्व प्रदान करनेवाले भारत को अपने हाथों सँवारना चाहती है। भ्रष्‍टाचार-विरोधी आंदोलन, गोरक्षा, गंगा की पवित्रता, कालेधन की वापसी, राममंदिर-रामसेतु आदि मानबिंदुओं के सम्मान की रक्षा के आंदोलन, आसन्न जल संकट, पर्यावरण, कानून, सीमा-सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द, संस्कार-युक्‍त शिक्षा, संस्कृति रक्षा, राष्‍ट्रवादी साहित्य, महिला गौरवीकरण आदि के लिए हो रही गतिविधियाँ भारत निर्माण की छटपटाहट का ही प्रकटीकरण हैं। इन सभी क्रियाकलापों को नेतृत्व प्रदान करनेवाले लोग कम या अधिक मात्रा में स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा पाकर उनके सपनों का भारत बनाने में लगे हैं। स्वामी विवेकानन्द के सपनों के स्वावलंबी, स्वाभिमानी, शक्‍तिशाली, सांस्कृतिक, संगठित भारत के निर्माण को कृत संकल्प कृति।

Vivekanand Ki Atmakatha by Sankar

स्वामी विवेकानंद नवजागरण के पुरोधा थे। उनका चमत्कृत कर देनेवाला व्यक्‍तित्व, उनकी वाक‍्‍शैली और उनके ज्ञान ने भारतीय अध्यात्म एवं मानव-दर्शन को नए आयाम दिए। मोक्ष की आकांक्षा से गृह-त्याग करनेवाले विवेकानंद ने व्यक्‍तिगत इच्छाओं को तिलांजलि देकर दीन-दुःखी और दरिद्र-नारायण की सेवा का व्रत ले लिया। उन्होंने पाखंड और आडंबरों का खंडन कर धर्म की सर्वमान्य व्याख्या प्रस्तुत की। इतना ही नहीं, दीन-हीन और गुलाम भारत को विश्‍वगुरु के सिंहासन पर विराजमान किया। ऐसे प्रखर तेजस्वी, आध्यात्मिक शिखर पुरुष की जीवन-गाथा उनकी अपनी जुबानी प्रस्तुत की है प्रसिद्ध बँगला लेखक श्री शंकर ने। अद‍्भुत प्रवाह और संयोजन के कारण यह आत्मकथा पठनीय तो है ही, प्रेरक और अनुकरणीय भी है।