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Tulsidas Bhakti Prabandh Ka Naya Utkarsh by Vidya Nivas Misra

तुलसी की रामकथा की रचना एक विचित्र संश्‍लेषण है । एक ओर तो श्रीमद‍्भागवत पुराण की तरह इसमें एक संवाद के भीतर दूसरे संवाद, दूसरे संवाद के भीतर तीसरे संवाद और तीसरे संवाद के भीतर चौथे संवाद को संगुफित किया गया है और दूसरी ओर यह दृश्य-रामलीला के प्रबंध के रूप में गठित की गई है, जिसमें कुछ अंश वाच्य हैं, कुछ अंश प्रत्यक्ष लीलायित होने के लिए हैं । यह प्रबंध काव्य है, जिसमें एक मुख्य रस होता है, एक नायक होता है, मुख्य वस्तु होती है, प्रतिनायक होता है- और अंत में रामचरितमानस में तीनों नहीं हैं । यह पुराण नहीं है, क्योंकि पुराण में कवि सामने नहीं आता है- और यहाँ कवि आदि से अंत तक संबोधित करता रहता है । एक तरह से कवि बड़ी सजगता से सहयात्रा करता रहता है । पुराण में कविकर्म की चेतना भी नहीं रहती-सृष्‍ट‌ि का एक मोहक वितान होता है और पुराने चरितों तथा वंशों के गुणगान होते हैं । पर रामचरितमानस का लक्ष्य सृष्‍ट‌ि का रहस्य समझाना नहीं है, न ही नारायण की नरलीला का मर्म खोलना मात्र है । उनका लक्ष्य अपने जमाने के भीतर के अंधकार को दूर करना है, जिसके कारण उस मंगलमय रूप का साक्षात्कार नहीं हो पाता- आदमी सोच नहीं पाता कि केवल नर के भीतर नारायण नहीं हैं, नारायण के भीतर भी एक नर का मन है नर की पीड़ा है ।

Tum Kab Aaoge Shyava by Suryakant Bali

सूर्यकांत बाली का यह उपन्यास वैदिक प्रेमकथा पर आधारित है। वैदिक काल के किसी कथानक को उपन्यास के माध्यम से पाठकों तक सशक्त और अत्यंत आकर्षक शैली में पहुँचाने वाले श्री बाली हिंदी ही नहीं, संभवतः समस्त भारतीय भाषाओं के प्रथम उपन्यासकार के रूप में हमारे सामने हैं। यह उपन्यास प्रसिद्ध वैदिक ऋषि श्यावाश्व आत्रेय के जीवन पर आधारित है। श्यावाश्व जिस कुल में पैदा हुए थे, उसे हम वैदिक अत्रि कुल के नाम से जानते हैं, और जब-जब भी अत्रि मुनि की बात करते हैं तो हमें उस ऐतिहासिक घटना का स्मरण हो जाता है, जब राम वनगमन के समय अत्रि और अनसूया के आश्रम में गए थे। उसी अत्रि कुल में पैदा हुए श्यावाश्व आत्रेय की प्रसिद्धि इस कारण भी हुई कि वे मन में ही संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का कारण मानते थे। श्यावाश्व जिस अत्रि कुल में हुए उसे हम ऐतिहासिक आधार पर त्रेतायुग का और चार से छह हजार वर्ष पूर्व का मानते हैं, जब वैदिक काल अपने शिखर पर था। प्रेम और दार्शनिकता से भरपूर प्रस्तुत कथा ‘तुम कब आओगे श्यावा’ में ऋषि श्यावाश्व की ऐतिहासिक जीवनगाथा के साथ-साथ प्राचीन वैदिक काल के आश्रमों, राजप्रासादों और सामान्य जीवनशैली को बड़े ही सजीव तरीके से पाठकों के समक्ष रख दि गया है।

Tum Yaad Aaoge Leelaram by Prakash Manu

‘तुम याद आओगे लीलाराम’ संग्रह वरिष्ठ कवि-कथाकार प्रकाश मनु की इधर लिखी गई, नई और ताजा कहानियों का संग्रह है। बिल्कुल अलहदा ढंग की कथन-शैली और गहरी मर्म पुकार लिये ये कहानियाँ अपनी अद्भुत किस्सागोई और अनौपचारिक लहजे के कारण अलग पहचान में आती हैं। सच तो यह है कि ‘तुम याद आओगे लीलाराम’ संग्रह प्रकाश मनुजी की कथा-यात्रा में एक सार्थक मोड़ की तरह है, और एक साथ कई विशेषताओं के कारण जाना जाएगा। संग्रह की कहानियाँ जिंदगी में इस कदर गहरे धँसकर अपनी बात कहती हैं कि पाठक चकित हुआ सा, खुद को अपनी तकलीफों, समूची वेदनाओं और आत्मिक द्वंद्वों के साथ इनमें पूरी तरह उपस्थित पाता है। लेखक और पाठक का इतना गहन तादात्म्य हिंदी कहानी के मौजूदा परिदृश्य में एक विरल चीज है। फिर अपने ही ढंग के ?विशिष्ट कथाकार प्रकाश मनुजी की ये कहानियाँ अकसर बतकही के-से अंदाज में अपनी बात कहती हैं। इनमें कविता सरीखी मर्म पुकार है तो आत्मकथा सरीखा निजत्व भी। कहानी और जिंदगी के फासलों को पाटनेवाली ये सादा और पुरअसर कहानियाँ अगर प्रेमचंद और मटियानी सरीखे दिग्गजों की याद दिलाएँ, तो कोई हैरत की बात नहीं। उम्मीद है, प्रकाश मनु की इन कहानियों की ताजगी पाठकों के दिलों में कभी फीकी न पड़नेवाली एक अलग छाप छोड़ेगी। और एक बार पढ़ने के बाद वे इन्हें कभी भूल नहीं पाएँगे।

Tumhare Liye, Bas by Madhup Mohta

इस संकलन में राजनैतिक विमर्श या इतिहास बोध की कविताएँ नहीं हैं; अधिकांश प्रेम कविताएँ हैं, जो एक लंबे अरसे में लिखी गईं। कई कविताएँ एक देश में प्रारंभ हुईं और किसी दूसरे देश में समाप्त हुईं। कई कविताएँ दूरदर्शन पर गाई जा चुकी हैं और कुछ व्यक्तिगत गोष्ठियों में। कुछ नज़्में और ़गज़लें ‘दिल है ऩगमा निगार’ और ‘तुम्हारे प्यार का मौसम’ सी.डी. में संकलित हुई हैं। कुछ कविताएँ मेरे मित्र फेसबुक ग्रुप ‘एप्रिल इज नॉट द क्रूएलेस्ट मंथ’ पर प्रसारित होकर प्रशंसित हो चुकी हैं। मन के भावों को पुस्तक का रूप देना आसान नहीं होता। विशेषकर भारतीय समाज में प्रेम कविताएँ लिखना और प्रकाशित करना एक बहुत बड़ा ़खतरा मोल लेनेवाली बात है। मैं इस बात का कोई जवाब नहीं दूँगा कि ये कविताएँ किसके लिए लिखी गई हैं। जिसके लिए लिखी गई हैं, उसे मालूम है। इसलिए इसका शीर्षक : तुम्हारे लिए, बस।

Tumhari Jay by Ashutosh Shukla

सृष्टिकर्ता की तरह साहित्यकार भी अपने अपने ढंग से अपने देश, उसकी संस्कृति, परंपरा और इतिहास को व्याख्यायित करता है, नई स्थापनाएँ देता है। जैसे गंगा में कई नदियों का पानी, अनेक पर्वतों की मिट्टी और औषधीय तत्त्व मिलकर उसे उर्वरता प्रदान करते हैं, उसी प्रकार साहित्य को भी अनेक विधाएँ समृद्ध करती हैं। आशुतोष शुक्ल प्रयोगधर्मी लेखक हैं, जिन्होंने एक नई ‘संभाषी’ विधा से साहित्य को समृद्ध किया है। उनके शब्द लगातार पाठकों से बतियाते रहते हैं। सहजै सहज समाना की तरह वह अपनी शैली में सिद्धहस्त हैं। कम शब्दों में कही गई उनकी बात पानी की बूँद की तरह फैलती जाती है और फैलकर पूरी नदी बन जाती है। छोटे-छोटे वाक्यों में गुरुत्वाकर्षण सा बल है। उनकी संभाषी विधा साहित्य में नया गवाक्ष खोलती है जहाँ से ‘तुम्हारी जय’ का आख्यान साफ-साफ देखा जा सकता है। ‘तुम्हारी जय’ उन छोटी-छोटी बातों की बात करती है जो सदियों से भारतवासियों को गढ़ रही हैं। ‘तुम्हारी जय’ अनुपम और संग्रहणीय कृति है और भारत के इतिहास और समाज को देखने का नया दर्पण भी।

Tweet Kahaniyan by Dr. Lata Kadambari Goel

तभी उनमें से एक इतिहास मर्मज्ञ गिद्ध चिल्लाया—इतने नीच नहीं हैं हम, जब सीता मैया का अपहरण कर रावण उन्हें लंका ले जा रहा था, तब हमारे प्रपितामाह जटायुजी ने उनकी रक्षा करने हेतु लहूलुहान होकर अपने प्राणों का परित्याग कर दिया था और ये अखबार वाले? इन नीच लड़कों की तुलना हमसे करते हैं? एक बार फिर समवेत स्वरों में वे चिल्लाने लगे। दूसरा चिल्लाया—हमारी दृष्टि की तारीफ तो सारी दुनिया करती है और एक ये हैं? कह...गुस्से में आकर अपने पंख फड़फड़ाने लगा। तभी उनके बीच से एक जागरूक बूढ़ा गिद्ध उठकर बोला—तुम सबकी बातों में दम है मेरे बच्चो, तुम सभी को अपने हक में जरूर आवाज उठानी चाहिए। माना कि हम नरभक्षी हैं, मांस हमारा प्रिय आहार है पर हम तो मरों को खाते हैं, पर ये? हरामी की औलादें तो जिंदों को ही खा डालना चाहती हैं। —इसी संग्रह से जीवन की अव्यक्त अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का प्रयास करती इन छोटी-छोटी ट्वीट कहानियों के माध्यम से लेखिका ने जीवन की छोटी-छोटी, लेकिन महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने के लिए जिंदगी का ताना-बाना बुनने का प्रयास किया है। इन कहानियों के कथ्य कैसे हैं? फंदे कैसे पड़े हैं? बुनावट कैसी है? कहानियों का भाषा-संयोजन कैसा है? यह देखना अब आपका काम है। वैसे भी चिड़ियों के समान ये कहानियाँ भी चहककर ट्वीट-ट्वीट कर रही हैं। ये छोटी-छोटी कहानियाँ आपको अपने आसपास के परिवेश, अपने संबंधों, अपने मनोभावों का आईना ही लगेंगी।

Ubharate Sawal by M. Hamid Ansari

भारत के उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी एक कुशल राजनयिक, समर्पित शिक्षाविद् तथा प्रखर वक्ता हैं। यह पुस्तक अनेक विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों, सेमिनारों, व्यवसायियों की बैठकों में, पुस्तकों के लोकार्पणों, समारोहों और औपचारिक उद्घाटनों में दिए गए महत्त्वपूर्ण भाषणों का संकलन है। इसमें विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के अनेक जटिल और अनुत्तरित प्रश्न तथा ज्वलंत मुद्दे शामिल हैं। इन भाषणों में राष्ट्रीय कार्यसूची के बहुत व्यापक विषय भी आ गए हैं, और ये भारत की वर्तमान और भविष्य की अवस्थाओं को बनानेवाले मूल तत्त्वों को प्रकट करते हैं। भारतीय लोकतंत्र विशाल है, तो इसकी समस्याएँ भी अधिक संख्या में हैं। भारत का भविष्य उज्ज्वल है, स्वर्णिम है। भारत वैश्विक स्तर पर उभर रहा है और आज पूरे विश्व में इसकी एक विशिष्ट पहचान है। उभरते भारत के समक्ष खड़े कुछ सवालों को भारत के द्वितीय सर्वोच्च नागरिक डॉ. हामिद अंसारी ने देखा-समझा है और अपनी चिंतनपरक लेखनी से इनका समाधान देने का प्रयास किया है।

Ujali Dhoop by Rashmi Gaur

इस देश में कथाकहानियों की परंपरा विश्व में सबसे प्राचीन है। घर के बड़ेबुजुर्ग कथाकहानियों के माध्यम से बच्चों की माँग पूरी करते हैं, साथहीसाथ उन्हें मनोरंजक बनाकर सुनाते भी हैं। इस कहानीसंग्रह में मुख्यतः बुजुर्ग वर्ग की पीड़ा बयाँ करती कहानियाँ हैं। 21वीं सदी की पीढ़ी बड़ी बेसब्री की हद तक महत्त्वाकांक्षी हो रही है। सबकुछ लेटेस्ट चाहिए उन्हें! बड़ीसेबड़ी गाड़ी, लेटेस्ट फोन, टेबलेट, घडि़याँ आदि। इस दौड़ में वे माँबाप को भूल जाती हैं, जिन्होंने उन्हें इस लायक बनाया है। ‘चिट्ठी आई है’, ‘डी.एन.ए.’, ‘धोबी का कुत्ता’ कहानियाँ नहीं हैं, हकीकत हैं, आज का सच हैं। ‘फरिश्ता’, ‘दादी : एक युग’, ‘उलटी पट्टी’ हलकीफुलकी चुटकियाँ हैं। ‘उजली धूप’ जीवनसंध्या की समस्या को लेकर है, वहीं टॉप करने की धुन में जीवन गँवानेवाली प्यारी सी बच्ची की मार्मिक दास्तान है ‘हजारों चाँद’। अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं पठनीय कहानियाँ, जो पाठक के अंतर्मन को छू लेंगी।

Ulata Latka Raja by Sudha Murty

क्या आप जानते हैं कि एक समय था, जब भालू बोलते थे, चाँद हँसता था और शिशु मछली के पेट में पाए जाते थे? क्या आपने कभी हजार भुजाओं वाले व्यक्ति को देखा है? इस संग्रह की कहानियाँ भगवान् विष्णु के दो सबसे प्रसिद्ध अवतारों—राम और कृष्ण—तथा उनके वंश के इर्द-गिर्द घूमती हैं। दोनों के ही विषय में अनगिनत कहानियाँ हैं, लेकिन वर्तमान पीढ़ी के दिल और दिमाग से उनमें से अधिकांश लुप्त होती जा रही हैं। लोकप्रिय लेखिका सुधा मूर्ति आपको एक मंत्रमुग्ध कर देनेवाली यात्रा पर ले जा रही हैं, और इस दौरान आपको उन दिनों के विषय में बताती हैं, जब राक्षस और देवता मनुष्यों के साथ रहते थे, जानवर बोला करते थे और देवी-देवता सामान्य लोगों को अद्भुत वरदान दिया करते थे। भारतीय पौराणिक कथाओं की रोचक प्रस्तुति।

Ummeed by Sanjay Sinha

कल शाम मैं एक रेस्त्राँ में बैठा था। बगलवाली मेज पर एक दंपती था। मैं हैरान था कि दोनों करीब आधा घंटा वहाँ रहे, लेकिन आपस में एक शब्द भी बात नहीं की। दोनों लगातार अपने-अपने मोबाइल फोन पर लगे रहे। आखिर तकनीक ने हमें एक-दूसरे के करीब किया है या दूर। दूसरी मेज पर भी वही हाल था। पुरुष अपने साथ आईपैड जैसी कोई चीज लिये हुए था और उसमें फिल्म देख रहा था। महिला लगातार फोन पर लगी थी। मुझे लगा आधुनिकता अपने साथ अकेलापन लेकर आगे बढ़ रही है। सड़कें चमचमा रही हैं, शहर जगमगा रहा है, पर आदमी तन्हा है। पता नहीं, लोग इस सच को समझते हैं या नहीं, पर अकेलापन एक सजा है। रेस्त्राँ में लोग एकांत की तलाश में आते हैं और अकेले होकर चले जाते हैं।

Unnat Bharat by Shankkar Aiyar

1947 में आजादी मिलने के बाद से आज 21वीं सदी का भारत काफी अच्छी स्थिति में है। इसके बावजूद, हमेशा ही यह देश तबाही की कगार पर डगमगाता दिखता है। आधुनिक भारत पर केंद्रित यह पुस्तक गँवा दिए जानेवाले अवसरों, योजना बनाने में कमी और खराब कार्यान्वयन को बताती है, जिनमें अच्छी पहल के कुछ-एक उदाहरण ही मिलते हैं, जो सच में फायदेमंद साबित हुए। ऐसा लगता है कि इस देश की जितनी भी उपलब्धियाँ रही हैं वे संयोगवश थीं, जिन्हें किसी आपदा ने प्रेरित किया। इस विद्वत्तापूर्ण और मौलिक रचना में शंकर अय्यर ने खेल को बदलकर रख देनेवाले सात अवसरों की समीक्षा की है—1991 का आर्थिक उदारीकरण, साठ के दशक की हरित क्रांति, 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण, सत्तर के दशक में ऑपरेशन फ्लड, 1982 की दोपहर के भोजन की स्कीम, नब्बे के दशक की सूचना क्रांति और 2005 में सूचना के अधिकार का अधिनियम। देश के इतिहास के ऐसे टर्निंग प्वॉइंट दूरदर्शिता या सावधानी से योजना बनाने के कारण नहीं आए, बल्कि उन बड़े संकटों के संयोगवश प्राप्त परिणाम थे, जिनसे हर हाल में निपटा जाना था। मील के इन पत्थरों की प्रत्यक्ष जाँच और एक गहरे विश्लेषण के माध्यम से, लेखक की दलील है कि प्रभावी होने के साथ ही स्थायी परिवर्तन के लिए, भारत के शीर्ष नेतृत्व को उन तरीकों पर फिर से विचार करने की जरूरत है, जिन्हें वे देश के सामने खड़ी अनेक चुनौतियों से निपटने के लिए अपनाना चाहते हैं। अतीत में हुई गलतियों का संज्ञान लेकर इनकी पुनरावृत्ति रोकने और उन्नत भारत बनाने का पथ प्रशस्त करती चिंतनपरक पुस्तक।

Upanishadon Ki Kathayen by Harish Sharma

उपनिषद् की कथाएँ हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने शिष्यों को अपने समीप बैठाकर ज्ञान प्रदान किया, वही ज्ञान उपनिषद् बनकर प्रसिद्ध हुआ। उपनिषद् को वेदों का अंतिम भाग भी कहा जाता है—यानी वेदांत, अर्थात् ‘उपनिषद्’ वेदों में प्रतिपादित ज्ञान का सार है। उपनिषद् का सारा अनुसंधान इस प्रश्न में निहित है—‘वह कौन सी वस्तु है, जिसे जान लेने पर सबकुछ जान लिया जाता है?’ और विभिन्न उपनिषदों में इस प्रश्न का एक ही उत्तर दिया गया है और वह है ‘ब्रह्म’। उपनिषद् ज्ञान का अजस्र स्रोत हैं। इनमें ज्ञान और कर्म का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। चरित्र-निर्माण की शिक्षा दी गई है। पितृ-महिमा, अतिथि-महिमा, आत्मा, प्राण, ब्रह्म, ईश्वर आदि का सूक्ष्म विश्लेषण है। मुगल-कुमार दाराशिकोह तो इनसे इतना प्रभावित हुआ कि कुछ उपनिषदों का उसने फारसी भाषा में अनुवाद कराया। कहा जा सकता है कि उपनिषदों को समझे बिना भारतीय इतिहास और संस्कृति को नहीं समझा जा सकता। भारतीय संस्कृति में आदर प्राप्त सभी आदर्श उपनिषदों में देखे जा सकते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इन्हीं उपनिषदों की शिक्षा को कथात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है, ताकि सामान्य पाठक भी इनका चिंतन-मनन कर ज्ञान अर्जित कर सकें।

Urmila Shirish Ki Lokpriya Kahaniyan by Urmila Shirish

उर्मिला शिरीष की कहानियाँ चाहे वह ‘प्रार्थनाएँ’ हो या ‘राग-विराग’ या ‘उसका अपना रास्ता’ या ‘बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु!’ संबंधों की ऐसी मर्मगाथाएँ हैं, जो पाठकों को भीतर तक उद्वेलित और आंदोलित कर देती हैं। अपने आसपास के परिवेश, समाज, पर्यावरण तथा सरोकारों की तसवीर प्रस्तुत करती इन कहानियों में जीवन के बिंब सघनता के साथ उभरकर आते हैं। वर्चस्व और सामंतवादी सोच के प्रतिरोध में खड़े उनके पात्र संवेदना, मनुष्यता और करुणा की रसधार से मन-मस्तिष्क को आप्लावित कर देते हैं। आज जब कहानियाँ सायास विचार और फॉर्मूला के बोझ से आक्रांत बना दी जाती हैं, ऐसे में उर्मिला शिरीष की कहानियाँ जीवन की समग्रता को समेटे ‘कहानीपन’ पठनीयता और सहजता जैसे अद्भुत गुणों की बानगी प्रस्तुत करती हैं। उर्मिला शिरीष की कहानियाँ प्रेमचंद की परंपरा से आती हैं, जहाँ जीवन का यथार्थ है तो जीने की इच्छा को फलीभूत करता मार्ग भी। उनकी कहानियों में स्त्री जीवन के कई रूप हैं, तो बच्चों की, युवाओं की एकदम ईमानदार भावछवि भी। वे वृद्ध जीवन के ऐसे अनदेखे पक्ष उजागर करती हैं, जहाँ हम प्रायः अपनी दृष्टि को ठहरा देते हैं। प्रेम और घृणा, संघर्ष और जिजीविषा के, राग और द्वेष के बीच बहते जीवन को उनकी मनोवैज्ञानिक दृष्टि पाठकों के सामने ऐसे सहज ढंग से रख देती है कि वे चकित रह जाते हैं। उर्मिला शिरीष के व्यापक रचना-संसार की कुछ लोकप्रिय कहानियों का संकलन।

Us Aangan Ka Akash by Smt. Mridula Sinha

प्रकृति, पशु-पक्षी, रीति-रिवाज, जीवन-मूल्य, पर्व-त्योहार और नाते-रिश्तों से हमारा विविध रूप, रंग-रस व गंध का सरोकार रहता है। हमारी प्रकृति व संस्कृति परस्पर पूरक हैं। परस्पर निर्भरता ही इनका जीवन-सूत्र है। हम उनके साथ रिश्तों के सरोकार से विलग नहीं रह सकते। लेकिन बदलते दौर में यह ऊष्मा लगातार कम हो रही है। इन सरोकारों में आई कमी कहीं-न-कहीं हमारे मन को कचोटती है। प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण के लिए इन सरोकारों को बचाए रखना बहुत जरूरी है। यह सच है कि प्रकृति के विभिन्न अवयवों, रूपों और मनोभावों के साथ समायोजन ही मानवीय जीवन है। इस समायोजन में जितनी कमी आएगी, हम इनसे जितना दूर जाएँगे, हमारा जीवन दूभर होता जाएगा। इन दिनों जिसे देखो, बेचैन है। हम अपनी बेचैनी के कारण ढूँढ़ रहे हैं, पर वे मिल नहीं रहे। धन के प्रभाव में कहाँ मिलेगा दुःख और उदासी का कारण। स्थिति हो गई है ‘कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूँढ़े वन माहिं।’ पुरानी पीढ़ी सब प्रकार के अभावों में भी आनंदित रहती थी। धन का अभाव था; किंतु पशु-पक्षी, नदी-पहाड़, खेत-खलिहान, रिश्ते-नातों का नहीं। प्रकृति के साथ अपनेपन का संबंध अभाव में भी आनंदित करता था। इस पुस्तक में आनंद के इन्हीं सूत्रों को ढूँढ़ने का प्रयास किया गया है।

Usha Kiran Khan Ki Lokpriya Kahaniyan by Ushakiran Khan

प्रस्तुत संग्रह में वरिष्ठ कथाकार उषा किरण खान की छोटीबड़ी चौबीस कहानियों में नई और लोकप्रिय कथाएँ शामिल हैं। आत्मवंचना के युग में कई अच्छेभले शिक्षित युवक आतंकवाद की राह में फँसा दिए जाते हैं—‘अम्मा मेरे भइया को भेजो...’ ऐसी ही कहानी है। ‘किसी से न कहना’, ‘लौट आ ओ समय’ तथा ‘गए माघ उनतीस दिन बाकी’ एक कथासीरीज है। अपने समय से संवाद करती बाल सखियाँ उम्र के चौथेपन में मिलती हैं। एकदूसरे को अपने दिल की कहनेसुनने पर चाहकर भी सबकुछ बाँट नहीं पातीं, कि कहीं साथी इसके दुःख से अधिक दुःखी न हो जाएँ। इनमें स्त्री विमर्श इसी प्रकार का है। लेखिका अपने गाँव, महानगरों में बसी गाँव की स्त्रियों के भूख की, सम्मान की, अस्मिता की तनी गरदनवाली स्त्री की कहानी कहती है। उनके सारे पात्र यथार्थ से उपजे हैं, कल्पना से नहीं। सामाजिक संवेदना और मर्म को छूती लोकप्रिय कहानियों का अनूठा संग्रह।

Uska Shivalaya by Rajkumar Chaudhary

अब हीरा ज्यादा ही घबरा गया था और सोचने लगा अब क्या करूँ! उसने फिर कॉल किया। रिंग होते ही बोला, ‘‘मैडम कॉल काटिएगा नहीं...मैं पल्लवी के भले के लिए बोल रहा हूँ।’’ ‘‘आप कौन हैं?’’ हीरा ने बिना देर किए सीधे बोला, ‘‘जी पल्लवी का एक्सीडेंट हो गया है...मैं उसे हॉस्पिटल लेकर आया हूँ।’’ ‘‘एक्सीडेंट?’’ ‘‘जी हाँ!’’ ‘‘ओ माई गॉड!...कैसी है वो!’’ ‘जी ठीक नहीं है...डॉक्टर तुरंत इनके गार्जियन को खोज रहे हैं...मैं इनके गर्जियन के बारे में कुछ नहीं जानता...!’’ ‘‘जी मेरा नाम अनुजा है...अभी पल्लवी कहाँ हॉस्पिटलाइज है?’’ हीरा, ‘‘जी अभी मगध मेडिकल कॉलेज में है।...अभी पल्लवी बेहोश है...इसलिए मैं आपको तकलीफ दे रहा हूँ...कृपया इनके गार्जियन का नंबर और पता दे सकती हैं?...आप भी आकर देख लेती इनकी हालत...ठीक नहीं है।’’ —इसी संग्रह से

Uth Jaag Musafir by Viveki Rai

प्रस्तुत संकलन ‘उठ जाग मुसाफिर’ के ललित-निबंधों में पग-पग पर पाठकों को उल्लास-उमंग भरी शब्द-सुगंध का प्रसार मिलेगा, और वह भी वैचारिक छुअन के साथ। सृजित ललित-प्रसार अनुरंजन के साथ-साथ टूटते-बिखरते और सिमटते हताश जनों को जीने के प्रति आश्‍वस्त करता है। कसौटी है तृप्‍ति की, जो पाठकों को भरपूर रूप में मिलेगी। देश-काल और जीवन-दर्शन के साथ अपनी कृषि-संस्कृति, अपनी जमीन, गाँव-घर और इनसे जुड़े हुए पर्यावरणीय संदेश, संबंधित चिंतन-मंथन कृति को गंभीरता प्रदान करते हैं। आस्था, सकारात्मक भाव और सुलझाव रचनाओं के केंद्रीय भाव-तत्त्व हैं। इन्हीं के साथ चलकर लेखक अपने प्रिय गाँवों की विस्तार से सुधि लेता है। आकर्षण में विवश होकर पाठक को भी उसके साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलना पड़ता है। आप भी आमंत्रित हैं। विश्‍वास है कि पठनानंद से आपकी झोली भर जाएगी!

Vaad-Samvaad by Ramesh Chandra Shah

‘‘...अनूठे शोधकर्ता और गांधी के सच्चे उत्तराधिकारी धर्मपाल की खोजों ने बखूबी दरशाया है कि किस तरह घोर पराधीनता के युग में तमाम जकड़बंदी और शरण के बावजूद हमारा समाज निःसत्त्व नहीं हुआ था। उसकी शैक्षिक और अन्न-जल संबंधी स्वावलंबी व्यवस्था भी जैसे-तैसे कायम रही आई थी। हाल के बरसों में अनुपम मिश्र और राजेंद्र सिंह सरीखे कर्मज्ञों ने भी इस खोज को आगे बढ़ाया है। सच्चा आत्मविश्वास पाने के लिए जाहिर है, हमें इस धारा को अपनाते हुए अपने कर्म और विचार की सही दिशा पकड़नी होगी।...’’ ‘‘...सवाल सिर्फ गांधी या श्री अरविंद के प्रति हमारे तथाकथित बौद्धिकों की उदासीनता का नहीं है। सवाल स्वयं इस ‘बुद्धि’ की स्वाधीनता और प्रामाणिकता का है। सवाल मानवता के भविष्य का है, जो धर्म-चेतना के बिना नहीं रह सकती, किंतु धर्मोन्माद से तथा उतनी ही मूल्यमूढ़ और सर्वग्रासी राजनीति से भी उबरना चाहती है।...’’ ‘‘...मुक्तिबोध को जो ‘उदासी से पुती गायें’ दिखाई दी थीं, क्या उनका सीधा संबंध निराला की इस कविता के ‘मूक भाषा पशु सदृश’ दीन-हीन कंकालों से ही नहीं है।...’’ ‘‘...हर वादी का यह स्वभाव है कि वे दूसरे को भी वादी के रूप में ही देख पाता है। वह नहीं सोचता कि वादी के ऊपर एक संवादी भी होता है। मैं वस्तुतः परंपरा-संवादी ही नहीं, नवनवोत्तरवादी-संवादी भी हूँ। परंपरा मुझे पीछे नहीं ले जाती, निरंतर आगे की ओर ठेलती है।...’’

Vaad-Vivad Evam Sambhashan by Smt. Shradha Pandey

‘वाद-विवाद का अर्थ है— सार्वजनिक बैठक में आयोजित विभिन्न विषय अथवा एक ही विषय पर की गई औपचारिक चर्चा, जिसमें लोग एक-दूसरे के तर्कों का विरोध करते हैं।’ बोलना जीवन की स्वाभाविक क्रिया होने के साथ-साथ एक कला भी है, जिसकी नींव छात्र जीवन में ही पड़नी आरंभ हो जाती है। विद्यालयों में एक तरफ जहाँ पठन-पाठन पर जोर दिया जाता है, वहीं दूसरी तरफ पाठ्येतर गतिविधियों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है, ताकि छात्र का सम्यक् विकास हो सके। विद्यालयों में कविता पाठन, संभाषण तथा वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन करके छात्रों की प्रतिभा को तलाशने व निखारने का कार्य किया जाता है। यह पुस्तक उन सभी अभिभावकों, छात्रों तथा अध्यापकों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है, जिनकी इस विषय की पुस्तक की सदैव तलाश रही है। सभी वाद-विवाद विविध विषयों पर आधारित तथा तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं। विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस पुस्तक के प्रायः सभी वाद-विवाद तथा संभाषण पुरस्कृत हैं।

Vah Ek Aur Man… by Shri Praveen Kumar

ये ज़रूरी नहीं कि सबका सच एक हो जाए, सबके अहसासात एक हो जाएँ, सबके नज़रिए, सबके फलस़फे एक हो जाएँ न मैं अपने जज़्बों को खुद थाम पाया कहाँ होंठ सीना, न मैं जान पाया सर्दजोशी का आलम, सुलगती़िफज़ाएँ न वो चुप हुआ है और न मैं बाज़ आया। रु़खसती रु़ख बदलने का भी नाम है बेरु़खी रोकना आज़माइश मेरी आँसुओं सा निकलकर कहाँ चल दिए धूल सी भर गई है नुमाइश मेरी। —इसी संग्रह से इस काव्य-संकलन में मानवीय रिश्तों का स्थायी भाव प्रेम, यत्र-तत्र-सर्वत्र है और उसी में रूबरू हुए दिल को छूनेवाले तमाम मंजरों का मर्यादित तस्करा भी है। समय के प्रवाह में जज्बातों को थामने, उनसे गुफ्तगू करने की कशिश गीतों और नज्मों में मुसलसल है, तो मसरूफियत के आगोश में अपनों से दूर हो जाने की पीड़ा भी कमोबेश इसमें शामिल है।

Vaha Taan Kahan Se Aayi by Aacharya Jankivallabh Shastri

जानकीवल्लभ शास्त्रीजी ने कविता की नई आत्मा गढ़ी है। इस आत्मा में प्रकाश और लय की भाषा निहित है। अमृत विचारों से अपने साहित्य को श्रीसंपन्न करते हुए आशा और विश्‍वास का सूर्य उगाने का काम इन्होंने लगातार किया। अडिग आस्था की स्थायी भाव-संपदा से भरी हुई इनकी कविताएँ पीढि़यों को सांस्कारित करने की अकूत क्षमता का हुनर, भाषा की तमीज और कहने का कौशल कैसे विकसित हो इसका ज्ञान कराती इनकी रचनाएँ सतत प्रवाहित एक सम्यक् सम्वादी की भूमका का निर्वाह करती है। कविता को कविता की दृ‌ष्‍ट‌ि से देखने और पढ़ने के बाद ही समझने का प्रयास बहुत दूर तक सफल होता है। शास्त्रीजी के शब्द ही नहीं चिहन भी बोलते हैं। संघटना ही नहीं संरचना भी संवाद करती है। कविता में अंतर्निहित लय का संस्पर्श अर्थ को विस्तार देता है। बिना लय से जुड़े हुए शास्त्रीजी की रचनाओं को पूरी इमानदारी और गहराई से नहीं समझा जा सकता है। शास्त्रीजी के गीत उनकी आत्मा की सृजनात्मक बेचैनी की तीव्र लयात्मक प्राण-चेतना है। उनका सृजन कोई उच्छवास नहीं कि अनछुआ रह जाए। वे तो गान में प्राण की झलक देखने के आग्रही हैं। सुप्रसिद्ध गीत ‘बाँसुरी’ की यह पंक्‍त‌ियाँ— ‘‘मसक-मसक रहता मर्म-स्थल/मर्मर करते प्राण/कैसे इतनी कठिन रागिनी/ कोमल सुर में गाई!/किसने बाँसुरी बजाई?’’ शास्त्रीजी की रचना-प्रक्रिया को उजागर करती है। शास्त्रीजी के गीत गीत नहीं गीता है। वे शब्द नहीं मंत्र लिखते रहे।

Vaigyanik Bharat by Apj Abdul Kalam

वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारे में प्रश्‍न करना या वैज्ञानिक खोजों की आवश्यकता के लिए भी प्रश्‍न करना आजकल फैशन हो गया है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जब लाखों भारतीय कष्‍ट भोग रहे हैं, तब भारत को चंद्रयान मिशन पर इतना धन क्यों बरबाद करना चाहिए? चंद्रमा पर जाने में हमारे लिए अच्छा क्या है? भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें प्रत्येक वर्ष ग्रामीण विकास पर वाकई कितना खर्च करती हैं? चंद्रयान पर हुए खर्च से आप इस आँकड़े की तुलना किस प्रकार कर सकते हैं? क्या चंद्रयान परियोजना या नाभिकीय कार्य, जो कि काफी संसाधनों को बचाते हैं, ग्रामीण विकास के लिए उपलब्ध हैं? आपके पास सभी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं हो सकते हैं, फिर भी प्रश्‍न पूछना महत्त्वपूर्ण है। —इसी पुस्तक से --- परमाणु शक्‍ति-संपन्नता से लेकर ‘मिशन मून’ और ‘अग्नि-V’ तक भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियाँ शानदार रही हैं। भारत के पूर्व राष्‍ट्रपति और कुशल वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम तथा उनके निकट सहयोगी वाइ.एस. राजन का मानना है कि यह तो केवल प्रारंभ है, आनेवाला समय भारत के उत्कर्ष का है। विज्ञान के प्रति हमारी सोच और दृष्‍टि को एक धार, एक दिशा देनेवाली पुस्तक, जो इक्कीसवीं शताब्दी में भारत के तकनीकी विकास का ब्लूप्रिंट प्रस्तुत करती है।

Vaigyanik Sant Dr. Kalam by Lakshman Prasad

ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक साधारण से परिवार में मानवतावादी गुणों के साथ अवतरित हुए। अनेक भाग्यशाली व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न क्षेत्रों जैसे—विज्ञान, तकनीकी, आध्यात्मिक, शिक्षा, सामाजिक आदि में साक्षात् रूप में उनके साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस ग्रंथ के विद्वान् लेखकों एवं लेखिकाओं ने डॉ. कलाम के आत्मीय एवं मानवीय गुणों के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी श्रद्धांजलि में लिखा है कि कलाम के रूप में भारत ने एक हीरा खो दिया है। लेकिन उस हीरे की चमक और रोशनी हमें उस मंजिल तक पहुँचाएगी, जो उस स्वप्नद्रष्टा ने सोची थी। उनके एक घनिष्ठ सहयोगी एवं वैज्ञानिक मित्र डॉ. वाई.एस. राजन ने लिखा है कि ‘वे इतिहास रचने आए थे, रचकर चले गए।’ इसी प्रकार एक वैज्ञानिक साथी ने ‘संत के रूप में’ और दूसरे साथी ने ‘आदर्श इनसान के रूप में’ उनका आकलन किया है। कुछ लेखक डॉ. कलाम के गुणों और कार्यों को ‘एक सच्चे कर्मयोगी एवं विज्ञान ऋषि’ के रूप में देखते हैं। एक वरिष्ठ विज्ञान लेखक ने लिखा है ‘न भूतो न भविष्यति : देवोपम डॉ. कलाम।’ एक लेखिका ने अपने पिताश्री के साथ डॉ. कलाम से दोस्ती को ‘कलियुग में कृष्ण-सुदामा जैसी मित्रता’ की संज्ञा दी है। डॉ. कलाम के साथ एक फोटो के प्रभाव से 15 वर्षीय विद्यार्थी को गंभीर उपचार में जीवनदान मिलने के विषय में उसने अपने लेख ‘किसी के लिए आशीर्वाद, किसी के लिए जीवनदान’ भावों से कलाम साहब के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है। भारत रत्न डॉ. कलाम के महान् प्रेरणाप्रद जीवन की अनुपम झाँकी है यह पुस्तक।

Vaishvik Yug Ka Bharat : Aarthik Sudhar Aur Samaveshi Vikas Ka Aadhar by Vandna Dangi

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था का संरचनात्मक स्वरूप बहुत तेजी से बदला। फिर चाहे नोटबंदी जैसा कठोर फैसला हो या फिर जी.एस.टी. जैसे चिरप्रतीक्षित बदलाव को आखिरकार लागू करने में सफलता, कई मायनों में भारत का अर्थतंत्र ऐसे अनेक निर्णयों, नीतियों और प्रणालियों के क्रियान्वयन से प्रभावित हुआ है। वर्षों से गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन की समस्याओं से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे तेज गति से विकास कर रही अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करना वाकई यह दर्शाता है कि किस तेजी से भारत में सर्वांगीण विकास करने की दिशा में भरपूर कोशिशें की गईं। वैश्वीकरण के इस युग में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे नीतिगत, भू-राजनैतिक तथा आर्थिक बदलावों से भी प्रभावित होती है। जहाँ एक ओर वैश्विक आर्थिक विकास दर में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था लाभान्वित हुई, वहीं दूसरी ओर ब्रेक्सिट और अमेरिकी संरक्षणवाद जैसी नीतियों ने कई चुनौतियाँ भी पेश की हैं। देश-विदेश में हो रहे परिवर्तनों के सामान्य जनजीवन से लेकर व्यापक अर्थतंत्र पर पड़ रहे प्रभावों का विश्लेषण करती तथा सुनहरी, सशक्त, समृद्ध, समुन्नत भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूपका दिग्दर्शन कराती एक पठनीय कृति।

Vali Kaveri by Ashok Drolia , Rajani Drolia

संगम साहित्य के रूप में संगृहीत गीत और ‘मणिमेहलै’ तथा ‘शिलप्पडिहारम्’ रचनाएँ भारतीय समाज और संस्कृति की मूल प्रवृत्तियों के बहुत निकट हैं। इनमें जीवन का जो चित्र उमड़ता है, उसे हृदयंगम किए बिना दक्षिण भारत ही नहीं, संपूर्ण भारत के इतिहास और सांस्कृतिक विकास को ठीक-ठीक समझ पाना कठिन है। दूसरी बात यह है कि इन काव्यों में तत्कालीन जीवन का जो चित्रण हुआ है, वह अपने आप में इतना पूर्ण है कि उसमें बहुत परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। हिंदी में यह सामग्री अब भी विरल रूप से ही उपलब्ध है। अंग्रेजी में इसके कुछ अच्छे अनुवाद हुए हैं, परंतु वे हिंदी पाठकों के लिए दुरूह हैं और दुर्लभ भी। अत: इस कथा के रूप में इनका परिचय कराकर हिंदी पाठकों को इस अमूल्य निधि की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है। प्रस्तुत है यह कथा, उन्हीं की, लोक-प्रभव, शुभ, सकल सिद्धिकर। विघ्नेश्‍वर तो सरल हृदय हैं, योगक्षेम के उन्नायक हैं, बस थोड़ा सम्मान चाहिए, प्रेमपूर्ण व्यवहार चाहिए, मार्ग हमारा सुकर करें वे, उनसे यह वरदान चाहिए।

Vande Matram by Milind Prabhakar Sabnees

वंदे मातरम् ऋषि बंकिमचंद्र की अलौकिक काव्य प्रतिभा की अभिव्यक्ति है। वैदिक काल से अर्वाचीन काल तक मातृभूमि के प्रति हमारे मन में बसनेवाले अनन्य प्र्रेम का अव्यक्त रूप यानी वंदे मातरम्! मातृभूमि के प्रति यह प्रेम शाश्वत है, चिरंतन है। जिस भूमि ने मुझे जन्म दिया, जिसने मेरा पालन-पोषण किया, मुझे समृद्धता दी और अंत में जिस भूमि में मैं मिल जाने वाला हूँ, वह भूमि यानी यह हमारी भूमाता, मातृभूमि! उसे हमारा शत-शत प्रणाम! भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त मातृपूजन, भूमिपूजन, इस जगन्माता का पूजन इन सबके प्रतीक बने शब्द हैं ‘वंदे मातरम्’! मातृभूमि के प्रति यह प्रेम प्रत्येक व्यक्ति के मन में सहज-स्वाभाविक होता है। जैसा अपनी जननी-माता के प्रति होता है ठीक वैसा ही! वह प्रेम हम प्रत्येक के हृदय में है। उस पर केवल निराशा के पुट चढ़े हैं, जिन्हें दूर हटाना होगा। अंतरतम की तह से ‘वंदे मातरम्’ के उच्चारण से उन्हें निश्चय ही दूर किया जा सकता है। वंदे मातरम्!!

Vardan by Premchand

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी साहित्य के कालजयी कथाकार हैं। कथा-कुल की सभी विधाओं—कहानी, उपन्यास, लघुकथा आदि सभी में उन्होंने लिखा और अपनी लगभग पैंतीस वर्ष की साहित्य-साधना तथा लगभग चौदह उपन्यासों एवं तीन सौ कहानियों की रचना करके ‘प्रेमचंद युग’ के रूप में स्वीकृत होकर सदैव के लिए अमर हो गए। प्रेमचंद का ‘सेवासदन’ उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि वह हिंदी का बेहतरीन उपन्यास माना गया। ‘सेवासदन’ में वेश्या-समस्या और उसके समाधान का चित्रण है, जो हिंदी मानस के लिए नई विषयवस्तु थी। ‘प्रेमाश्रम’ में जमींदार-किसान के संबंधों तथा पश्चिमी सभ्यता के पड़ते प्रभाव का उद्घाटन है। ‘रंगभूमि’ में सूरदास के माध्यम से गांधी के स्वाधीनता संग्राम का बड़ा व्यापक चित्रण है। ‘कायाकल्प’ में शारीरिक एवं मानसिक कायाकल्प की कथा है। ‘निर्मला’ में दहेज-प्रथा तथा बेमेल-विवाह के दुष्परिणामों की कथा है। ‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास में पुनः ‘प्रेमा’ की कथा को कुछ परिवर्तन के साथ प्रस्तुत किया गया है। ‘गबन’ में युवा पीढ़ी की पतन-गाथा है और ‘कर्मभूमि’ में देश के राजनीति संघर्ष को रेखांकित किया गया है। ‘गोदान’ में कृषक और कृषि-जीवन के विध्वंस की त्रासद कहानी है। उपन्यासकार के रूप में प्रेमचंद का महान् योगदान है। उन्होंने हिंदी उपन्यास को भारतीय मुहावरा दिया और उसे समाज और संस्कृति से जोड़ा तथा साधारण व्यक्ति को नायक बनाकर नया आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने हिंदी भाषा को मानक रूप दिया और देश-विदेश में हिंदी उपन्यास को भारतीय रूप देकर सदैव के लिए अमर बना दिया। —डॉ. कमल किशोर गोयनका

Vasundhara Raje Aur Viksit Rajasthan by Vijay Nahar

वसुंधरा राजे भावुक एवं संवेदनशील हृदय वाली महिला हैं। राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है। राजघराने की होने के कारण प्रशासनिक क्षमता घुट्टी में उन्हें अपने परिवार से मिली है। विनम्रता एवं देशभक्ति की भावना उन्हें अपनी माता राजमाता विजयाराजे सिंधिया से मिली है, आत्मगौरव का भाव माता एवं पिता से मिला है। भावुकता एवं संवेदनशीलता का ही परिणाम है कि उन्होंने प्रशासन में रहते हुए महिला सशक्तीकरण, निःशक्तजन का कल्याण, वृद्धजनों की सेवा, ग्रामीण एवं गरीब के सुख-दुःख में सहभागिता, मूक पशुओं एवं भारतीय श्रद्धा का बिंदु गो-संरक्षण, मंदिरों एवं देवालयों की भव्यता आदि पर विशेष ध्यान दिया।

Ve Kamal Ke Phool by Mukul Rani Varshney

यादों के झरोखे से मेरा प्रथम प्रयास है, जिसमें मैंने अपनी कृतियों को संगृहीत किया है। मैं कोई महान् लेखिका तो नहीं, पर अपने विद्यार्थी जीवन से ही मुझे साहित्य पढ़ने व लिखने का शौक रहा। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने के साथ मुझे निबंध और कहानी लिखने का भी शौक था। दसवीं कक्षा में मुझे मेरी कहानी स्मृति पर प्रथम पुरस्कार भी मिला। जीवन में अनेक व्यक्तियों के संपर्क में आना हुआ और उन्हें निकट से देखने-परखने का अवसर मिला। मैंने उन्हीं के चरित्र, व्यक्तित्व एवं घटनाओं को सच्चाई के साथ कागज पर उतारने की चेष्टा की है। कुछ पात्र मनोरंजक हैं तो कुछ अति करुण, तो कुछ मन और मस्तिष्क को छूनेवाले हैं। वे कमल के फूल तो मेरे लिए अविस्मरणीय ही हो गए हैं। शेष सभी पात्र भी मुझे अतिप्रिय हैं। मैंने पात्रों को अपनी मिठास भरी लोक भाषा ही बोलने दी है। आशा करती हूँ कि पढ़कर आपको भी आनंद आएगा। यह तो मेरी अपनी राय है। आपकी राय जानने की प्रतीक्षा रहेगी। ——1—— मानवीय संवेदना, पारिवारिक संबंध सामाजिक सरोकार और जीवन के विविध रंगों का समुच्चय है यह कहानी-संग्रह ‘वे कमल के फूल’। ये मर्मस्पर्शी कहानियाँ आपके हृदय को स्पंदित करेंगी और आपके मनोभावों को झंकृत कर देंगी।

Ve Pandrah Din by Prashant Pole

उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया। माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो'' ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र' उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी' हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे। कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे। फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में। स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।