Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav by Jawaharlal Kaul
वैश्वीकरण और प्रौद्योगिकी की आँधी में जब राष्ट्रीय सीमाएँ टूट रही हों, मूल्य अप्रासंगिक बनते जा रहे हों और हमारे रिश्ते हम नहीं, कहीं दूर कोई और बना रहा हो, तो पत्रकारिता के किसी स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में आशंकित होना स्वाभाविक है । अखबार और साबुन बेचने में कोई मौलिक अंतर रह पाएगा, या फिर समाचार और विज्ञापन के बीच सीमा- रेखा भी होगी कि नहीं?
अविश्वास, अनास्था और मूल्य- निरपेक्षता के इस संकटकाल में हिंदी भाषा और हिंदी पत्रकारिता से क्या अपेक्षा है और क्या उन उम्मीदों को पूरा करने का सामर्थ्य हिंदी और हिंदी पत्रकारिता में है, जो देश की जनता ने की थीं? इन और ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर खोजने के प्रयास में यह पुस्तक लिखी गई । लेकिन यह तलाश कहीं बाजार और विश्व-ग्राम की गलियों, कहीं प्रौद्योगिकी और अर्थ के रिश्तों, कहीं पत्रकारिता की दिशाहीनता और कहीं अंग्रेजी के फैलते साम्राज्य के बीच होते हुए वहाँ पहुँच गई जहाँ हमारे देश-काल और उसमें हमारी भूमिका के बारे में भी कुछ चौंकानेवाले प्रश्न खड़े हो गए हैं ।
Publication Language |
Hindi |
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Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
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