Krishnam Vande Jagadgurum by Dinkar Joshi

कृष्ण विचलित नहीं हुए । अपने खुद के वचन की यथार्थता मानो सहजभाव से प्रकट होती है । नाश तो सहज कर्म है । यादव तो अति समर्थ है; फिर कृष्ण- बलराम जैसे प्रचंड व्यक्‍त‌ियों से रक्षित हैं- उनका सहज नाश किस प्रकार हो? उनका नाश कोई बाह्य शक्‍त‌ि तो कर ही नहीं सकती । कृष्ण इस सत्य को समझते हैं और इसलिए माता गांधारी के शाप के समय केवल कृष्ण हँसते हैं । हँसकर कहते हैं – ‘ माता! आपका शाप आशीर्वाद मानकर स्वीकार करता हूँ; कारण, यादवों का सामर्थ्य उनका अपना नाश करे, यही योग्य है । उनको दूसरा कोई परास्त नहीं कर सकता । ‘ कृष्ण का यह दर्शन यादव परिवार के नाश की घटना के समय देखने योग्य है । अति सामर्थ्य विवेक का त्याग कर देता है और विवेकहीन मनुष्य को जो कालभाव सहज रीति से प्राप्‍त न हो, तो जो परिणाम आए वही तो खरी दुर्गति है । कृष्ण इस शाप को आशीर्वाद मानकर स्वीकार करते हैं । इसमें ही रहस्य समाया हुआ है ।
-इसी पुस्तक से
न केवल भारतीय साहित्य में अपितु समग्र विश्‍व साहित्य में श्रीकृष्ण जैसा अनूठा व्यक्‍त‌ित्व कहीं पर उपलब्ध नहीं है । संसार में लोकोत्तर प्रतिभाएँ अगण्य हैं; परंतु पूर्ण पुरुषोत्तम तो श्रीकृष्ण के अलावा अन्य कोई नहीं है । श्रीकृष्ण के किसी निश्‍च‌ित रूप का दर्शन करना असंभव है । बाल कृष्ण से लेकर योगेश्‍वर कृष्ण तक इनके विभिन्न स्वरूप हैं । प्रस्तुत पुस्तक में श्रीकृष्ण के चरित्र को बौद्धिक स्तर से समझने का प्रयास किया गया है ।
वि‍श्‍वास है, पाठकों को यह प्रयास पसंद आएगा ।

Publication Language

Hindi

Publication Type

eBooks

Publication License Type

Premium

Kindly Register and Login to Tumakuru Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Tumakuru Digital Library.

Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Krishnam Vande Jagadgurum by Dinkar Joshi”