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Maheep Singh Ki Lokpriya Kahaniyan by Maheep Singh
‘‘ओह! बड़े ही नेक बंदे थे! खुदा उन्हें अपनी दरगाह में जगह दे!’’ उनमें से एक ने अफसोस प्रकट करते हुए कहा। कुछ क्षणों के लिए सब में खामोशी छा गई।
‘‘भरजाई, तेरे बच्चे कैसे हैं?’’
‘‘वाहेगुरु की किरपा है, सब अच्छे हैं?’’ माँ ने धीरे से कहा।
‘‘अल्लाह उनकी उम्र दराज करे।’’ कई आवाजें एक साथ आईं।
‘‘भरजाई, तुम अपने बच्चों को लेकर यहाँ आ जाओ।’’ किसी एक ने कहा और कितनों ने दुहराया, ‘‘भरजाई, तुम लोग वापस आ जाओ… वापस आ जाओ।’’ प्लेटफॉर्म पर खड़ी कितनी आवाजें कह रही थीं—
‘‘वापस आ जाओ।’’
‘‘वापस आ जाओ।’’
मैंने सुना, मेरे पीछे खड़े मामाजी कुढ़ते हुए कह रहे थे, ‘‘हूँ…बदमाश कहीं के! पहले तो हमें मार-मारकर यहाँ से निकाल दिया, अब कहते हैं, वापस आ जाओ…लुच्चे!’’
प्लेटफॉर्म पर खड़े लोगों ने उनकी बात नहीं सुनी थी। वे कहे जा रहे थे—
‘‘भरजाई, तुम अपने बच्चों को लेकर वापस आ जाओ। बोलो भरजाई, कब आओगी? अपना गाँव तो तुम्हें याद आता है? भरजाई, वापस आ जाओ…।’’
—इसी संग्रह से
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सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. महीप सिंह की लेखनी से निःसृत कहानियों ने मानवीय संवेदना, सामाजिक सरोकार, जातीय संघर्ष, पारस्परिक संबंधों का ताना-बाना प्रस्तुत किया। पठनीयता से भरपूर इन कहानियों ने वर्ग-संघर्ष और सामाजिक कुरीतियों का जमकर विरोध किया।
प्रस्तुत है उनकी लोकप्रिय कहानियों का संग्रहणीय संकलन।
Publication Language |
Hindi |
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Publication Type |
eBooks |
Publication License Type |
Premium |
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