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Shiksha Ke Dwandwa by Pawan Sinha

शिक्षा के बारे में एक विचार सदैव आपके-हमारे मन पर हावी रहता है और वह यह कि बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी केवल और केवल शिक्षक की ही है। जरा सोचिए, आखिर बच्चे स्कूल क्यों जाते हैं? पढ़ने के लिए न! कौन पढ़ाता है? शिक्षक। तो इस लिहाज से बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी शिक्षक की ही हुई। शिक्षा के संदर्भ में यह सवाल अकसर उठता है कि क्या शिक्षा केवल स्कूल से जुड़ी हुई है? नहीं। लेखक की दृष्टि में शिक्षा और स्कूलिंग दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। शिक्षा एक बृहत् संकल्पना है और स्कूलिंग संकीर्ण संकल्पना। । 'शिक्षा के द्वंद्व' शिक्षा से जुड़े अनेक चिंतनीय और संवेदनशील मुद्दों पर बहुत खुलकर आपकी-हमारी चेतना की परीक्षा लेती है और हमारे चिंतन को जाग्रत् भी करती है; टिप्पणी करती है और सवाल भी उठाती है। मूल्य, धर्म, अभिभावक, शिक्षक, स्कूल, नीतियाँ और भारतीय समाज-सभी के संदर्भ में गहन चर्चा करती है। यह पुस्तक उन सभी के चिंतन को दिशा देती है, जो शिक्षा एवं इससे जुड़े मुद्दों को गहराई से समझना चाहते हैं। । शिक्षा, बच्चों और समाज से सरोकार रखने वाले हर आयु-वर्ग के पाठक के लिए एक पठनीय पुस्तक है।

Shiksha: Vikalp Evam Aayam by Atul Kothari

किसी भी देश के विकास या उत्थान की नींव शिक्षा होती है, परंतु हमारे देश में स्वतंत्रता के 21 वर्षों के बाद प्रथम शिक्षा नीति 1968 में बनी, दूसरी 1986 में बनी; इसके पश्चात् अभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई जा रही है। देश में शिक्षा में सुधार हेतु जो भी आयोग या नीतियाँ बनाई गईं, उन्होंने कई अच्छी अनुशंसाएँ दीं, परंतु राजनीतिक इच्छा-शक्ति के अभाव में उनका जमीनी क्रियान्वयन नहीं किया गया। उदाहरण के लिए, 1968 में कोठारी आयोग ने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की बात कही थी, इसे 1986 की शिक्षा नीति में स्वीकार भी किया गया था, परंतु आज तक यह व्यवहार में नहीं आया है। यदि परतंत्र भारत की बात छोड़ भी दी जाए तो स्वतंत्रता के बाद अभी तक हम शिक्षा का लक्ष्य तय नहीं कर पाए हैं। स्वामी विवेकानंद के अनुसार देश की शिक्षा का लक्ष्य (चरित्र निर्माण एवं व्यक्ति को गढ़ना अर्थात् व्यक्तित्व का विकास करना) होना चाहिए। इस बात को और अनेक महापुरुषों ने भी कहा है। इस विषय से संबंधित लेखों का भी पुस्तक में समावेश है। इसी प्रकार, शिक्षा की वर्तमान समस्याओं तथा उनके कारण एवं निवारण हेतु हमने एवं अनेक शैक्षिक संस्थानों तथा व्यक्तियों ने विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में आधारभूत प्रयोग एवं नवाचार किए हैं। इन मौलिक अनुभवों को शब्दबद्ध करके आलेखों और शोध-पत्रों को लिखा गया है, जिनका संकलित रूप यह पुस्तक है।

Shikshaprad Kathayein

Moral values play an important role in moulding the attitude and approaches of children in their life. Moral values help the children go through the entire cycle of life as good human beings. So it is vital to impart moral values to children.Moral Stories comprises 30 amazing, educative and heart-touching stories with a moral at the end of each story, which will explain the importance and usefulness of moral values in life. Here you will find fun and education at the same place. With awesome illustrations in four-colour this book brings stories to life in an imaginative and soothing way. Read to your children (and to yourself as well) and help them improve their imagination and mould their life in a better way.A well-chosen companion for every child!

Shikshashashtri/B.Ed. Pravesh Pariksha

A Modern Approach to pass various competitive exams based on the current syllabus and helpful to excel in Shikshashashtri/B.Ed. Pravesh Pariksha exams and perform best in their career and comes with detailed solutions, not just the answer key, for each and every question included in it. It promotes self-evaluation by enabling you to not only practice and revise concepts but also keep track of your progress. This book allows you to clarify your doubts and remove the fears generally associated with exams, improve your concentration and hone your time management skills, enabling you to answer the questions within the given time frame.

Shirdi Ke Sai Baba by Rachna Bhola ‘Yamini’

साईं सबके भीतर विराजमान हैं। साईं का अपने भक्तों से ऐसा अटूट नाता है, जो जन्म-जन्मांतर तक बना रहता है। वे माता, पिता, सखा, गुरु व अभिभावक के रूप में हर क्षण अपने भक्तों के साथ हैं। साईं की लीला न्यारी है। यदि उन्हें अपने हृदय में विराजमान करना हो तो अपने अंत:करण को लोभ, मोह, माया, क्रोध आदि विकारों से मुक्त करना होगा। हृदयरूपी बगिया में प्रेमरूपी पुष्प खिलाने होंगे। साईं की प्रतिमा को शुद्ध व पवित्र अंत:करण में प्रतिष्ठित करने के पश्चात् ही उनके अलौकिक रूप व छटा का पान किया जा सकता है। सर्वभूतों में व्याप्त साईं सकल जगत् से नाता रखते हैं। तभी तो सभी धर्मों के अनुयायी उन्हें पूरी श्रद्धा व आस्था के साथ पूजते हैं, फिर भले ही वे हिंदू हों या मुसलमान। साईं ने सदैव सत्य का प्रतिपादन किया और धार्मिक आडंबरों व कट्टर रूढ़ियों में उलझे समाज को एक नई दिशा दी। प्रस्तुत पुस्तक में साईं बाबा के जीवन-दर्शन व संदेशों को सरल व बोधगम्य भाषा-शैली में प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास किया गया है। बाबा के उपदेश आज भी जनमानस को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं—दिन-प्रतिदन साईं धाम शिरडी में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या इस तथ्य की साक्षी है। साईं की शिक्षाओं, चमत्कृत करनेवाली कथाओं एवं प्रेरणादायी उपदेशों के द्वारा जीवन पथ आलोकित करनेवाली आस्थापूर्ण पुस्तक।

Shishtachaar by Pk Arya

शिष्‍टाचार का जीवन में अहम स्थान है। शिष्‍टाचार आईने के समान है, जिसमें मनुष्य अपना प्रतिबिंब दरशाता है। शिष्‍टाचार अच्छे विचारों से आता है। जिस प्रकार कोई दीवार नींव के बिना खड़ी नहीं रह सकती, वैसे ही शिष्‍टाचार के बिना व्यक्‍ति का, समाज का और राष्‍ट्र का निर्माण नहीं हो सकता। शिष्‍टाचार एक संस्कार है, जिसकी नींव बचपन में ही पड़ जाती है—शिक्षा इसके आड़े नहीं आती। खूब पढ़-लिखकर भी जिस व्यक्‍ति में शिष्‍टाचार का अभाव हो, लोग उसे पढ़ा-लिखा मूर्ख ही कहेंगे, और उसे समाज में सम्मान नहीं मिलेगा। शिष्‍टाचार द्वारा अनजान व्यक्‍ति भी समाज में सम्मान पाता है, वहीं शिष्‍टाचार रहित व्यक्‍ति परिजनों द्वारा भी दुत्कारा जाता है। शिष्‍टाचार व्यक्‍ति को फर्श से अर्श तक पहुँचा सकता है, कठिनतम कार्य को आसान बना सकता है और अँधेरे में भी आशा की किरण दिखा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक व्यक्‍ति को शिष्‍टाचार युक्‍त बनाने की दिशा में अग्रसर करती है।

Shishtachar by Mahesh Sharma

शिष्‍ट + आचार = शिष्‍टाचार— अर्थात् विनम्रतापूर्ण एवं शालीनतापूर्ण आचरण । शिष्‍टाचार वह आभूषण है जो मनुष्य को आदर व सम्मान दिलाता है । शिष्‍टाचार ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है, अन्यथा अशिष्‍ट मनुष्य तो पशु की श्रेणी में गिना जाता है । शिष्‍टाचार का हमारे जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है । कहने को तो शिष्‍टाचार की बातें छोटी-छोटी होती हैं, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण होती हैं । व्यक्‍त‌ि ‌अपने शिष्‍ट आचरण से सबका स्नेह और आदर पाता है । मानव होने के नाते प्रत्येक व्यक्‍त‌ि को शिष्‍टाचार का आभूषण अवश्य धारण करना चाहिए । विद्वान् लेखक ने इस पुस्तक में शिष्‍टाचार के विविध पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डाला है । इसमें घर में शिष्‍टाचार, मित्रों से शिष्‍टाचार, आस-पड़ोस में शिष्‍टाचार, उत्सव-समारोह में शिष्‍टाचार, खान-पान एवं मेजबानी के समय शिष्‍टाचार, बातचीत तथा पत्र-लेखन में शिष्‍टाचार आदि अनेक शीर्षकों के माध्यम से विषय को स्पष्‍टता के साथ समझाया गया है । आशा है, पाठकगण इस उपयोगी और प्रेरक पुस्तक का अध्ययन कर शिष्‍टाचार की आवश्यकता को समझकर, उसका अनुकरण व अनुसरण कर अपने जीवन को सुखमय एवं व्यक्‍त‌ित्व को सफल-सार्थक बना सकेंगे ।

Shishtachar Evam Vyaktitva Vikas

"Kisee bhee manushy kee sapaphalata ya asapaphalata meen usakee vyaktitv kee aham bhuumika hootee hai. Samaaj meen sapaphal hoonee kee liee loog apanee vyaktitv koo nikhaarana caahatee hain. Vyaktitv hee unakee pahacaan hootee hai. Apanee vyaktitv kee dam par hee vyakti aam loogoon meen kuch khaas nazar aata hai. Pratyeek vyakti jeevan meen kuch khaas tatha kuch khaas banana caahata hai karana caahata hai. Baajaar kee jaruurat aur aam aadamee kee maang koo dhyaan meen rakhakar yah pustak shishtaacaar eevan vyaktitv vikaas prakaashit kee gayee hai. Prastut pustak aadhunik koors par aadharit hai. Pratyeek bhaag koo bhee chootee-chootee sambhaagoon meen baanta gaya hai. Sabhee sambhaag apanee aap meen puurn hain. Pustak meen pratyeek paath koo saral eevan spasht shabdoon meen samajhaaya gaya hai. Yah pustak vyaktitv vikaas kee sampuurn gunoon see ootaproot hai.(Personality and etiquette of a person play a large part in his success. People want to improve their personality in order to be successful in society. They wish to be appreciated by everyone around their lives. Etiquette and manners speak through his body language, which is an extension of inner personality. The author explains the concept of personality development, defines the leadership qualities and, how to develop a good personality, etc. ) #v&spublishers"

Shishu Health Guide by Dr Alok Khanna & Dr Vijayalakshmi Sood

शिशु हैल्थ गाइड—डॉ. आलोक खन्ना/ डॉ. विजयलक्ष्मी सूद आधुनिक जीवन-शैली व छोटे परिवार होने के कारण बच्चों के लालन-पालन में आमतौर पर परिवार के बड़ों—दादा-दादी, नाना-नानी—का सहयोग नहीं मिल पाता है। शिशु व छोटे बच्चों के लालन-पालन में अनुभवहीन माता-पिता कई बार स्वयं को संशय की स्थिति में पाते हैं। वे बच्चों का लालन-पालन करते हुए सदैव सोचते हैं कि क्या वे उनकी परवरिश ठीक से कर रहे हैं? इस पसोपेश को दूर करने के लिए प्रस्तुत है 'शिशु हैल्थ गाइड’ । सरल भाषा में लिखी इस पुस्तक में बालपन की आम समस्याओं पर ही अधिक जोर दिया गया है। शिशु की उत्तम देखभाल कैसे करें, शिशुओं को लेकर माता-पिता के आम सवाल, आधुनिक जीवन-शैली से उपजी समस्याएँ, शिशुओं के सामान्य रोग—उपचार व बचाव। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से माता-पिता एवं अभिभावक बच्चों की रोजमर्रा की समस्याओं व उनके निदान का वैज्ञानिक आधार जान पाएँगे। इससे उपचार की परेशानी, समय और पैसे की बचत होगी। साथ ही यह पुस्तक मेडिकल, आयुर्वेद व नर्सिंग के छात्रों के लिए भी वरदान साबित होगी। बच्चों के स्वस्थ पालन-पोषण में सहायक एक उत्तम प्रैक्टिकल हैल्थ गाइड।